नई दिल्ली : गृह मंत्रालय द्वारा पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया यानी पीएफआई पर बैन लगाते ही राजनीति गरम हो गई है. समाजवादी पार्टी, एआईएमआईएम, वामपंथी पार्टियां और तमाम ऐसे विपक्षी पार्टियां जो इन संस्थाओं की मुखालफत करती रही हैं उन लोगों ने सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल लिया है. मगर पीएफआई के बैन की कहानी काफी दिन से लिखी जा रही थी जिसे अब अंजाम दिया गया है.
सूत्रों की माने तो पुख्ता सबूत मिलने के बाद ही सरकार ने यह कदम उठाया है. जिनमें टेरर फंडिंग का मामला तो सामने आया ही है साथ ही साथ, आईएसआईएस से संबंध और देश विरोधी गतिविधियों संबंधी मामलों की भी एनआईए को मिली पुख्ता जानकारी के बाद ही गृह मंत्रालय ने पीएफआई समेत इससे जुड़ी और आठ संस्थाओं पर बैन लगाया है.
सूत्रों की माने तो एनआईए की छापेमारी के दौरान यह भी पता चला है कि पीएफआई को सबसे ज्यादा फंडिंग गल्फ कंट्री से मिलती थी. पीएफआई अपने सदस्यों का कभी खुलासा या संख्या नहीं बता रही थी, जबकि वो खुद को एक समाजसेवी संस्था करार देती थी. यही नहीं सूत्रों के अनुसार ऑपरेशन ऑक्टोपस चलाकर एनआईए, एटीएसऔर राज्य की पुलिस ने जो जानकारी हासिल की, वो चौंकाने वाली थी. जिसमे इन जांच एजेंसियों को पीएफआई के मिशन 2047 का पता चला, जिसके मुताबिक भारत को सिविल वार जोन में झोंकना और 2047 तक आपरेशन गजवा ए हिंद को अंजाम देते हुए इस्लामिक कानून लागू करना मकसद था.
ईटीवी भारत संवाददाता की रिपोर्ट पीएफआई पर बैन लगाते ही देश में सियासत गरमा गई. विपक्ष के अलग अलग नेताओं ने अलग अलग मांग की. कांग्रेस की तो पार्टी के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह ने कहा कि वीएचपी यानी विश्व हिंदू परिषद पर भी सरकार को बैन लगाना चाहिए. वहीं आरजेडी के नेता लालू यादव ने मांग की कि आरएसएस पर भी बैन लगाया जाना चाहिए, और ये सरकार हिंदू मुस्लिम कर देश को तोड़ रही है, जबकि ओवैसी ने कहा कि पीएफआई पर बैन का वो समर्थन नहीं करते हैं, कुछ लोगों की सोच भले ही संगठन में गलत हो, मगर पूरी संस्था पर बैन लगाना गलत है.
इसी तरह समाजवादी पार्टी के नेता शफिकुर रहमान बर्क ने तो यहां तक कह दिया कि पीएफआई पढ़े लिखों का संगठन है, पढ़े-लिखों की पार्टी है. मुसलमानों को रिप्रेसेंट करती है. मुसलमानों पर होने वाली ज्यादती पर खड़ी होती है, इसलिए बैन कर दिया गया है.
जबकि भारतीय जनता पार्टी के नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी का कहना है कि जो लोग मजहब को सुरक्षा कवच बनाकर मुल्क के खिलाफ शैतानी षड्यंत्र की मानसिकता से काम कर रहे थे, लेकिन अफसोस की बात है की कुछ पार्टियां अपनी राजनीतिक सियासत के लिए इन्हें प्रश्रय दे रहीं थीं वही लोग आज उनके बैन पर सवाल उठा रहे हैं, ये वही लोग हैं जो देश कि कभी सुरक्षा पर सवाल करते हैं, कभी सर्जिकल स्ट्राइक के सबूत मांगते हैं , ये वही लोग हैं जो आतंकवादियों के मरने पर आंसू बहाते हैं और वही लोग आज देश की सुरक्षा और संप्रभुता पर निशाना साधते हुए ऐसे संगठनों के बैन पर भी सवाल उठा रहे हैं.
यही नहीं इन संगठनों के बैन पर काफी दिनो से भाजपा के नेता और उससे जुड़े कई संगठन मांग कर रहे थे, जिनमे केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह, केंद्रीय मंत्री अश्विनी चौबे, समेत कई नेताओं ने सरकार के इस कदम का बढ़ चढ़कर स्वागत किया.
अखिल भारत हिन्दू महासभा के रास्ट्रीय अध्यक्ष स्वमामी चक्रपाणी ने मांग की कि PFI पर 5 साल की जगह सम्पूर्ण बैन होना चाहिए, ताकि PFI की जो देश मे आतंक का एक संगठन भारत मे फल फूल रहा है उसपर पूरी तरह अंकुश लग सके, उन्होंने कहा की की उनका संगठन काफी दिनों से ये मांग कर रहा था और आज सरकार के इस कदम का वो स्वागत करते हैं.
कुल मिलाकर देखा जाए तो मामला देश कि सुरक्षा और संप्रभुता और जांच एजेंसियों से जुड़ा है लेकिन राजनीतिक पार्टियां पीएफआई के बैन को लेकर दो फाड़ हो चुकी हैं. कुछ लेफ्ट पार्टियां तो इसपर विरोध प्रदर्शन की योजनाएं भी बनाने में जुट गई हैं यानी टोटल ध्रुवीकरण की राजनीति में पार्टियां जुट गई है, और इसके बैन से और बैन की खिलाफत कर किसे फायदा हों रहा सभी इसपर पार्टियों ने नफा नुकसान की जोड़ तोड़ पर मंथन शुरू कर दिया है.
अब आगे आनेवाले राज्य और 2024 चुनावों के मद्देनजर कौन सी पार्टी इसपर कैसे मुद्दे उठाती है ये भी दिलचस्प होगा लेकिन जब बात देश की सुरक्षा की हो तो एक तबके को छोड़ ज्यादातर जनता सुरक्षा को ही महत्व देती है इसलिए भी कांग्रेस के तमाम नेताओं में कुछ ने ही इसपर टिप्पणी भी की है बाकी बचते रहे. लेकिन इसके विपरीत सरकार के इस बैन का उत्तर प्रदेश के कुछ मौलानाओं और उलेमाओं ने समर्थन भी किया और इसे जरूरी कदम बताया,जो अपने आप में एक बड़ा कदम है.
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