डिलिस्टिंग पर छत्तीसगढ़ में राजनीति रायपुर :छत्तीसगढ़ में एक बार फिर जनजातीय सुरक्षा मंच धर्म बदलने वालों के खिलाफ बड़ा आंदोलन करने वाली है. डिस्लिटिंग को लेकर रणनीति बनाई जा रही है. बीजेपी और आदिवासी समाज डिलिस्टिंग के समर्थन में हैं. वहीं कांग्रेस, आम आदमी पार्टी और ईसाई धर्म अपना चुके लोग इसे एक राजनीतिक षडयंत्र मान रहे हैं.
क्या है डिलिस्टिंग :छत्तीसगढ़ समेत पूरे देश में आदिवासी या दूसरे समुदाय के ऐसे लोगों ने धर्म परिवर्तन कर लिया, जिन्हें जिन्हें आरक्षण का लाभ मिल रहा था. कुछ मुस्लिम बन गए तो कुछ ने ईसाई धर्म अपनाया. लेकिन धर्म बदलने के साथ उन्होंने ना ही खुद और ना ही अपने परिवार को आरक्षण के तौर पर मिलने वाली सुविधाओं से दूर किया. यानी धर्म बदलने के बाद भी वो आरक्षण का लाभ ले रहे हैं. जनजातीय सुरक्षा मंच की मानें तो ऐसे लोगों की संख्या 18 फीसदी है. ऐसे में एक बड़ा वर्ग, जिन्हें आरक्षण का लाभ मिलना चाहिए, उन्हें नहीं मिल पा रहा. इसे देखते हुए डिलिस्टिंग की मांग उठी है. डिलिस्टिंग लागू होने पर ऐसे लोगों को चिन्हित करके उन्हें आरक्षण से वंचित किया जाएगा. ईसाई समुदाय इसका विरोध कर रहा है.
डिलिस्टिंग को लेकर क्यों है विवाद :डिलिस्टिंग में आदिवासी समाज की कैटेगरी का विवाद है. धर्म और जाति के आधार पर जातिगत आरक्षण की मांग हो रही है. धर्म परिवर्तन कर ईसाई या मुस्लिम बने SC और SC-ST आरक्षण कैटेगरी से बाहर करने की मांग हो रही है. जनजातीय गौरव मंच के लोग डिलिस्टिंग की मांग के साथ ईसाई धर्म अपना चुके लोगों पर झूठी जानकारी देने की बात करते हैं. छत्तीसगढ़ आदिवासी बाहुल्य राज्य है, इसलिए यहां धर्मांतरण भी अधिक देखा गया. आदिवासी समाज के लोग ईसाई धर्म अपना चुके हैं. लेकिन शासकीय दस्तावेजों में वो अपना धर्म हिन्दू लिखते हैं. यह पूरा मामला सीधे आरक्षण से जुड़ता है. क्योंकि अनुसूचित जाति को मिलने वाले आरक्षण की कैटेगरी इसी के आधार पर तय की जाती है.
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राजनीतिक पार्टियों की सोच : डिलिस्टिंग को लेकर बीजेपी अपना स्टैंड क्लियर कर रही है. वहीं कांग्रेस और दूसरी पार्टियां इसे बीजेपी की चाल बता रहीं हैं. बीजेपी के मुताबिक जरुरतमंदों को आरक्षण का लाभ देने के लिए डिलिस्टिंग जरुरी है. लेकिन दूसरी पार्टियां ये मानती हैं कि बीजेपी वोटों का ध्रुवीकरण कर चुनावी लाभ लेना चाहती है. इसलिए डिलिस्टिंग के मुद्दे को हवा दी जा रही है. वहीं आम आदमी पार्टी का कहना है कि बीजेपी और कांग्रेस एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप लगा रहे हैं. यदि सरकारें आदिवासियों पर ध्यान दें तो वह अपना धर्म ही परिवर्तन नहीं करेंगे.
डिलिस्टिंग को लेकर क्यों है विवाद क्या है आदिवासियों का कहना :इस मुद्दे में आदिवासियों का भी अलग रूख देखने को मिल रहा है. आदिवासी धर्मांतरण के खिलाफ तो हैं लेकिन खुद को हिंदू नहीं मानते. आदिवासियों के मुताबिक हिंदू धर्म में मूर्ति पूजा होती है. जबकि आदिवासी प्रकृति पूजन करते हैं. ऐसे में आदिवासियों को हिंदू कहना गलत है.
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डिलिस्टिंग के पक्ष में हिंदू धर्मगुरु: पुरी मठ के मठाधीश स्वामी निश्चलानंद सरस्वती ने भी डिलिस्टिंग का समर्थन किया है.शंकराचार्य की माने तो '' सेवा के नाम पर देश में हिंदुओं का धर्म परिवर्तन किया गया. हिंदुओं को अल्पसंख्यक बनाकर देश को अपनी मुट्ठी में लेने का षड़यंत्र है. इसलिए इनकी इस इच्छा को विफल करना जरुरी है. रोम में मौजूद ईसा मसीह की मूर्ति पर भी वैष्णव तिलक लगा हुआ है. उनके साथ ही सभी के पूर्वज हिंदू ही थे. तो हिंदू राष्ट्र या हिंदूवाद से किसी को कोई परेशानी नहीं होनी चाहिए.''
क्या है जानकारों की राय :वहीं डिलिस्टिंग को लेकर जानकारों का कहना है भले ही राजनीतिक दल और आदिवासियों के मत डिलिस्टिंग को लेकर एक ना हो.लेकिन हकीकत यही है कि धर्म परिवर्तन तेजी से हो रहा है. धर्म परिवर्तन को रोकने लिए डिलिस्टिंग जरुरी है. क्योंकि पैसों और संसाधनों की लालच में आदिवासी अपनी मिट्टी से अलग हो रहा है.इसलिए ऐसे धर्मांतरण करने वाले आदिवासियों को पहचान कर, उन्हें अलग श्रेणी में करना बेहद जरुरी है.ताकि जिन्हें जरुरत है उन्हें आरक्षण सुविधा का लाभ मिल सके.