हैदराबाद: देश में भले इन दिनों चुनावी मोर्चे पर शांति छाई हो लेकिन सियासत का खेला बंगाल से बिहार और कर्नाटक से पंजाब और राजस्थान तक चल रहा है. और इस खेला में सिर्फ कांग्रेस ही नहीं बीजेपी आलाकमान के चेहरे पर भी शिकन की लकीरें खींच दी हैं.
पंजाब में अमरिंदर बनाम सिद्धू
पंजाब में अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं. पंजाब में फिलहाल कांग्रेस की सरकार है और कैप्टन अमरिंदर सिंह मुख्यमंत्री. लेकिन कैप्टन साहब से कई विधायक नाराज बताए जा रहे हैं. इन विधायकों ने मुख्यमंत्री के खिलाफ मोर्चा खोला और अगुवाई में नवजोत सिंह सिद्धू का चेहरा सामने आ गया. वैसे सिद्धू और कैप्टन का रिश्ता शुरू से ही सुर्खियों में रहा है. बीजेपी से कांग्रेस में आए सिद्धू को अमरिंदर सिंह ने कैबिनेट में जगह तो दी लेकिन फिलहाल ना सिद्धू मंत्री हैं और ना ही कोई और पद उनके पास है. वजह अमरिंदर और सिद्धू का रिश्ता ही माना जाता है.
पंजाब में कैप्टन बनाम सिद्धू फिलहाल पंजाब में पोस्टर वॉर चल रही है. कहीं सिद्धू का चेहरा चमक रहा है तो कहीं अमरिंदर सिंह का, आलाकमान भी सब ठीक होने की बात तो कर रहा है लेकिन ऐसा लग नहीं रहा. दो बड़े नेताओं के पीछे विधायकों के धड़े विरोधियों के लिए बड़ा मुद्दा तो हैं ही लेकिन चुनाव से कुछ महीने पहले सामने आई ये अनबन कांग्रेस का नुकसान करा सकती है.
राजस्थान में पायलट का क्या होगा ?
ये सवाल बीते कई महीनों से राजस्थान की सियासत में जस का तस बना हुआ है. राजस्थान और पंजाब में कांग्रेस के लिए फर्क सिर्फ इतना है कि राजस्थान में चुनाव के बाद हालात बिगड़े और अगला चुनाव फिलहाल दूर है. बीते विधानसभा चुनाव में जीत के बाद मुख्यमंत्री कौन के सवाल के जवाब में गहलोत और सचिन पायलट का नाम आगे आया लेकिन बाजी फिर से गहलोत के हाथ लगी. गहलोत राजस्थान के 'पायलट' यानी सीएम बन गए और सचिन 'को-पायलट' यान उप मुख्यमंत्री बना दिए गए. लेकिन बीते साल उठे बगावत के तूफान में एक बार लग रहा था कि बीजेपी राजस्थान में भी मध्य प्रदेश दोहरा लेगी.
पायलट अपने विधायकों के साथ होटल के कमरों में बंद हो गए और कांग्रेस की सांसे फूलती रही. लेकिन ऐन वक्त पर आलाकमान ने पायलट को मना लिया, पर तब तक गहलोत खेल कर चुके थे. पायलट की उपमुख्यमंत्री और प्रदेश अध्यक्ष दोनों कुर्सियां गई, साथ ही उनके विधायकों की भी कैबिनेट से छुट्टी हो गई. गहलोत चाहते हैं कि उनके विधायकों को कैबिनेट से लेकर तमाम नियुक्तियों में जगह दी जाए, बगावत के बवंडर के बाद 3 सदस्यों की कमेटी भी बनाई गई. लेकिन आज तक पायलट के हाथ कुछ नहीं लगा है. ऐसे में एक बार फिर पायलट खेमे में हलचल तेज हो गई है, यहां भी कांग्रेस आलाकमान की सुस्ती मुसीबत को बढ़ा सकती है. वो भी उस वक्त में जब ज्योतिरादित्य सिंधिया के बाद जितिन प्रसाद भी कांग्रेस का हाथ छोड़कर बीजेपी में चले गए हैं.
कर्नाटक में सियासी 'नाटक'
ऐसा नहीं है के हर राज्य में कांग्रेस की ही मुश्किल बढ़ रही है. भाजपा के लिए भी ये दौर मुश्किलें लेकर आया है. कर्नाटक के सहारे दक्षिण भारत में पहली बार जीत का कमल खिलाने वाली बीजेपी यहां भी मुश्किलों से घिर रही है. मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा के खिलाफ बगावत के सुर बुलंद हो रहे हैं. बीजेपी के विधानपरिषद सदस्य एच विश्वनाथ ने मुख्यमंत्री पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए हैं साथ ही उनके स्वास्थ्य से लेकर उनकी अगुवाई की क्षमता पर भी सवाल उठाए हैं. उनकी मानें तो येदियुरप्पा मुख्यमंत्री बने रहने लायक नहीं हैं.
कर्नाटक में सियासी 'नाटक' वैसे येदियुरप्पा पर भ्रष्टाचार के आरोप पहले भी लगे हैं लेकिन इस बार आवाज अपनी ही पार्टी के अंदर से बुलंद हो रहे हैं. एक बीजेपी विधायक ने अपनी सरकार पर फोन टैपिंग के आरोप भी लगाए हैं. कर्नाटक में अंदरूनी कलह बढ़ती देख प्रभारी अरुण सिंह पहुंच गए. लेकिन ये कर्नाटक में बीजेपी की कलह गाथा बता रही है कि यहां बीजेपी में सबकुछ ठीक ठाक नहीं है.
बंगाल में चुनाव खत्म, 'खेला' शुरू
बंगाल चुनाव में सरकार बनाने का सपना धरा का धरा रह गया लेकिन अब कुनबा बिखरने की नौबत आती दिख रही है. दीदी का साथ छोड़ बीजेपी में गए मुकुल रॉय की घर वापसी हो चुकी है और कहा जा रहा है कि उनके साथ बीजेपी में गए नेताओं की भी घर वापसी हो सकती है. ये कब होगा ? होगा या नहीं ? इसका जवाब तो भविष्य के गर्त में है लेकिन बीजेपी के माथे पर शिकन जरूर आ गई है. बीजेपी के 70 विधायक जीते लेकिन जब नेता विपक्ष शुभेंदु अधिकारी की अगुवाई में राजभवन पहुंचे तो सिर्फ 50 विधायक ही नजर आए.
टीएमसी नेता बंगाल में बीजेपी के बिखरने की बातें करने लगे हैं. कहा जा रहा है कि मुकुल रॉय के बाद कई लोग घर वापसी की लाइन में है. सियासी पंडित पश्चिम बंगाल के राज्यपाल जगदीप धनखड़ के दिल्ली दौरे को भी इससे जोड़कर देख रहे हैं. क्योंकि अगर बंगाल बीजेपी में टूट हुई तो डर है कि पार्टी को बंगाल में 70 सीट तक पहुंचाने की सारी मेहनत पर पानी फिर जाएगा.
त्रिपुरा पर बंगाल का असर
बंगाल में हैट्रिक के साथ ही ममता बनर्जी ने पार्टी के विस्तार की बात कही थी और कहा जा रहा है कि इसकी शुरुआत त्रिपुरा से होगी. अगले साल त्रिपुरा में भी चुनाव हैं. बीते विधानसभा चुनाव में टीएमसी छोड़कर बीजेपी में आए विधायक सीएम विप्लव देव से नाराज बताए जा रहे हैं. ऐसे में बीजेपी मान मनौव्वल पर उतर आई है. बागियों और नाराज विधायकों से बात करने के लिए बीजेपी महासचिव बीएल संतोष भी त्रिपुरा पहुंचे थे.
दरअसल पिछले विधानसभा चुनाव के दौरान मुकुल रॉय की भूमिका त्रिपुरा में भी अहम रही. कहा जाता है कि मुकुल रॉय के कहने पर कुछ विधायकों ने टीएमसी छोड़कर बीजेपी का दामन थामा था. अब जब मुकुल वापस टीएमसी में लौट चुके हैं तो इन विधायकों की घर वापसी भी तय लग रही है जो बीजेपी के लिए मुश्किल का सबब बन सकती है.
यूपी में बीजेपी के लिए सब ठीक ठाक है?
ये सवाल इसलिये क्योंकि देश का सबसे बड़ा सूबा सियासी समर की दहलीज पर खड़ा है लेकिन मुख्यमंत्री के चेहरे को लेकर किसी के पास जवाब नहीं है. जबकि योगी आदित्यनाथ के कार्यकाल की तारीफ पार्टी का हर नेता, विधायक, सांसद यहां तक कि प्रधानमंत्री कर रहे हैं. खैर ये सियासत का दस्तूर है लेकिन उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य से कुछ दिन पहले मुख्यमंत्री के चेहरे पर सवाल हुआ तो उन्होंने इसकी टोपी आलाकमान के सिर पहना दी.
इससे पहले दबी जुबान में ही सही सीएम योगी और केंद्रीय आलाकमान के रिश्तों में खटास की बात भी होने लगी. सीएम योगी को जन्मदिन की बधाई ना देने पर सोशल मीडिया पर सवाल उठने लगे. राज्य कैबिनेट विस्तार में एके शर्मा की राह में रोड़े अटकाने के लिए भी योगी और केंद्रीय आलाकमान के रिश्तों पर सवाल उठे. हालांकि सीएम योगी आदित्यनाथ ने पीएम मोदी से मुलाकात कर सबकुछ ठीक ठाक का है का संदेश देने की कोशिश की. लेकिन चुनावी समर से पहले इस तरह के सवाल किसी भी पार्टी या सरकार की सेहत के लिए अच्छी बात नहीं है.
बिहार में चाचा बनाम भतीजा
बिहार की लोक जनशक्ति पार्टी में इन दिनों चाचा भतीजे के बीच सियासी खेला चल रहा है. पूर्व केंद्रीय मंत्री और पार्टी सुप्रीमो रामविलास पासवान के भाई पशुपति पारस और बेटे चिराग पासवान आमने-सामने हैं. पार्टी के 6 में से 5 सांसदों ने पशुपति पारस को अपना अध्यक्ष चुन लिया और अब तक अध्यक्ष की कुर्सी पर बैठे चिराग पासवान अकेले रह गए. बिहार विधानसभा चुनाव में एनडीए से अलग होकर चुनाव लड़ने और सिर्फ जेडीयू उम्मीदवारों के खिलाफ अपने प्रत्याशी उतारने को लेकर पार्टी के नेता नाराज बताए जाते हैं.
फिलहाल पांचों सांसदों ने लोकसभा में पशुपति पारस को एलजेपी संसदीय दल का नेता मान लिया है. चाचा भतीजे के बीच दूरियां इतनी बढ़ गई कि चिराग पासवान पशुपति पारस से मिलने पहुंचे लेकिन चाचा की भतीजे से मुलाकात नहीं हुई. अब पार्टी दफ्तर पर भी नए अध्यक्ष का बोर्ड टांग दिया गया है. चिराग मुख्यमंत्री नीतीश के खिलाफ कड़वे बोल बोलते रहे हैं लेकिन पशुपति पारस नीतीश की तारीफ करते हैं. ध्यान देने वाली बात ये ही कि एलजेपी और जेडीयू दोनों ही एनडीए का हिस्सा हैं.
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