नई दिल्ली : संसद के निचले सदन को भंग करने के पीएम ओली के फैसले के बाद नेपाल के सुप्रीम कोर्ट के फैसले आने के बाद हिमालयी राष्ट्र में राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप का खेल जारी है. अब यह देखा जाना बाकी है कि काठमांडू में राजनीतिक स्थिति अनिश्चितता के रूप में किस तरह सामने आती है, देश में अस्थिरता बढ़ रही है, जिससे लोग यह अनुमान लगा रहे हैं कि जब आठ मार्च से पहले प्रतिनिधि सभा के अगले सत्र को बुलाया जाएगा, तो क्या होगा?
इस संबंध में ईटीवी भारत ने पूर्व राजदूत एसडी मुनि और एक अन्य विशेषज्ञ से बात करने की और यह जानने की कोशिश की कि जब नेपाली संसद अगली बैठक करेगी और तो क्या होगा?
केपी शर्मा ओली की पार्टी द्वारा संसद में हेरफेर करने की कोशिश की गई है, ताकि उसके खिलाफ अविश्वास का वोट न आए, लेकिन यह एक अभ्यास है जो सत्ता में आने के बाद कोई भी करेगा. ओली के सामने सबसे पहली समस्या यह है कि क्या अन्य राजनीतिक दल उनका का समर्थन करने के लिए तैयार हैं या नहीं.
एसडी मुनि ने कहा कि दूसरी परेशानी यह है कि नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी औपचारिक रूप से विभाजित नहीं हुई है, इसलिए, तकनीकी रूप से ओली यह दावा कर सकते हैं कि वह सत्ता में हैं और इस तरह का बयान ओली सार्वजनिक रूप से दे रहे हैं. उन्हें पद से हटाने के लिए पुष्पा कमल दहल प्रचंड के नेतृत्व वाला एनसीपी गुट अलग से ओली को हटाने की चुनौती दे रहा है. यह एक सत्ता पाने के लिए संघर्ष है, जो जल्द ही खत्म हो जाएगा.
पूर्व राजदूत ने कहा कि यह ऐसी चीज नहीं है, जिसका वैज्ञानिक रूप से अनुमान लगाया जा सकता है कि क्या होगा, लेकिन बहुत कुछ इस बात पर निर्भर करेगा कि नेपाली कांग्रेस क्या करती है, क्योंकि प्रचंड गुट या ओली गुट में शामिल होकर उनके पास नई सरकार बनाने के लिए पर्याप्त संख्या है.
मुनि ने कहा कि अगले प्रधानमंत्री का नाम बताना मुश्किल हो सकता है. अगला प्रधानमंत्री पार्टियों के गठबंधन पर निर्भर करेगा. यदि नेपाली कांग्रेस दोनों गुटों में से किसी एक का समर्थन करता है, तो वे अपने नेता को अगले प्रधानमंत्री बनने की मांग कर सकते हैं.
नेपाली कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष देउबा ने पहले ही अपना दांव खेल दिया है. यह रेखांकित करता है कि नेपाल की राजनीति में अस्थिरता बनी रहेगी.
राजनीतिक संदर्भ में वहां कोई प्रगति नहीं हुई है, कोविड के मोर्चे पर कोई आर्थिक स्थिरता नहीं है, आर्थिक सुधार हिमालयी राष्ट्र में एक दूर की कौड़ी लगता है. कुल मिलाकर पर्याप्त मुद्दे हैं और देश को उन मुद्दों का सामना करना पड़ेगा.
उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री महत्वपूर्ण नहीं है, लेकिन सरकार का एजेंडा क्या होगा यह अधिक महत्वपूर्ण है. यह एजेंडा सरकार के गठबंधन पर निर्भर करेगा और कौन सी पार्टी किसका समर्थन करने को तैयार है.