नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट (SC on freebies distribution) ने बुधवार को कहा कि राजनीतिक दलों और व्यक्तियों को संवैधानिक दायित्वों को पूरा करने के उद्देश्य से चुनावी वादे करने से नहीं रोका जा सकता तथा फ्रीबीज (मुफ्त सौगात) शब्द और वास्तविक कल्याणकारी योजनाओं के बीच अंतर को समझना होगा. शीर्ष अदालत ने महात्मा गांधी ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) का उल्लेख करते हुए कहा कि मतदाता मुफ्त सौगात नहीं चाह रहे, बल्कि वे अवसर मिलने पर गरिमामय तरीके से आय अर्जित करना चाहते हैं.
अदालत ने कहा, 'हम सभी को एक पुरानी कहावत याद रखनी चाहिए कि 'बिना मेहनत के कुछ नहीं मिलता'. चिंता सरकारी धन को खर्च करने के सही तरीके को लेकर है.' प्रधान न्यायाधीश एनवी रमना की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा, 'आभूषण, टेलीविजन, इलेक्ट्रॉनिक वस्तुओं को मुफ्त बांटने के प्रस्ताव और वास्तविक कल्याणकारी योजनाओं की पेशकश में अंतर करना होगा.'
पीठ में न्यायमूर्ति जेके माहेश्वरी और न्यायमूर्ति हिमा कोहली भी शामिल हैं. यह पीठ चुनावों में मुफ्त सौगात के वादों के मुद्दे पर विचार-विमर्श के लिए एक विशेषज्ञ समिति बनाने पर विचार कर रही है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मुफ्त चीजों के वितरण को नियमित करने का मुद्दा जटिल होता जा रहा है. पीठ ने जनहित याचिका पर सुनवाई के लिए 22 अगस्त की तारीख तय करते हुए सभी हितधारकों से प्रस्तावित समिति के संबंध में अपने सुझाव देने को कहा.