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कोरोना का बढ़ रहा डर, उनको शर्म नहीं आती मगर...

पुरानी कहावत है यथा राजा, तथा प्रजा...देश में लोकतंत्र है लिहाजा प्रजा तो वही है. अलबत्ता राजे-रजवाड़ों की तरह सम्मान अब नेताओं को हासिल हैं. वो जो करेंगे, जनता जाहिर तौर पर उनका अनुसरण करेगी. लेकिन दिल्ली में जिस तरह से नेता बर्ताव कर रहे हैं, उससे लगता है कि जनता के लिए नियम अलग हैं और नेताओं के कायदे अलग...मामला कोरोना की रोकथाम के लिए बनाए गए नियमों की पालना का है, जिसमें नेताओं का बेपरवाह मिजाज सुर्खियों में है.

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Published : May 2, 2022, 10:59 PM IST

फर्स्ट पंच

विशाल सूर्यकांत

पुरानी कहावत है यथा राजा, तथा प्रजा...देश में लोकतंत्र है लिहाजा प्रजा तो वही है. अलबत्ता राजे-रजवाड़ों की तरह सम्मान अब नेताओं को हासिल हैं. वो जो करेंगे, जनता जाहिर तौर पर उनका अनुसरण करेगी. लेकिन दिल्ली में जिस तरह से नेता बर्ताव कर रहे हैं, उससे लगता है कि जनता के लिए नियम अलग हैं और नेताओं के कायदे अलग...मामला कोरोना की रोकथाम के लिए बनाए गए नियमों की पालना का है, जिसमें नेताओं का बेपरवाह मिजाज सुर्खियों में है.

दरअसल, दिल्ली में कई जगहों पर ऐसे आयोजन हो रहे हैं, जिसमें खुद नेता कोरोना को लेकर बेफिक्री दिखा रहे हैं. दिल्ली आपदा प्रबंध प्राधिकरण (DDMA) दिल्ली में एक बार फिर मास्क अनिवार्य कर चुका है, लेकिन राजनीतिक और सामाजिक कार्यक्रमों की अगुवाई करने वालों के चेहरों पर यह अनिवार्यता कहीं नजर नहीं आ रही. जुर्माने से लेकर लॉकडाउन की गाज तो वैसे भी आम जनता पर ही गिरी है. सरकार के ही आंकड़े बता रहे हैं कि दिल्ली सरकार ने 2021-22 के बीच कोरोना संबंधी नियम उल्लंघन के लिए करीब 154 करोड़ रुपये से अधिक का जुर्माना लगाया है, जिसमें सबसे अधिक जुर्माना सार्वजनिक स्थानों पर मास्क नहीं पहनने को लेकर है.

दिल्ली में दोबारा मास्क अनिवार्य कर दिया गया है.

17 अप्रैल 2021 से लेकर 6 अप्रैल 2022 के बीच एक अरब 54 करोड़ से भी ज्यादा का जुर्माना लगाया गया. ये अलग बात है कि इसमें से सिर्फ 16 करोड़ रुपये की ही वसूली हो पाई है. लेकिन एक दिलचस्प बात देखिए कि खबरों में कहीं आपने सुना है कि राजनीति और समाज के बड़े चेहरों पर कहीं जुर्माना लगा हो ? किसी पर कार्रवाई हुई हो ? क्या सारे नियम-कायदे जनता के लिए ही हैं ? नेताओं और आला अधिकारियों की जिम्मेदारी कौन तय करेगा ? आपकी नजर में नेताओं और बड़े अधिकारियों पर जुर्माने का कोई केस किसी के ध्यान में हो तो जरूर शेयर कीजिएगा क्योंकि ऐसी नजीर मेरे ध्यान में तो अब तक सुर्खियों में नहीं आई. राजनीतिक कार्यक्रमों से लेकर सम्मान समारोह और सम्मेलनों के आयोजनों पर भले रोक न हो, लेकिन जिन कारणों से कोरोना फैलता है उन कारणों की अनदेखी कैसे की जा सकती है ?

ये हाल तब है जब देश में कोरोना के बढ़ते मामलों के बीच दिल्ली फिर कोरोना की राजधानी बनती जा रही है. बीते एक सप्ताह में दिल्ली में एक्टिव केसेज की संख्या पांच गुना तक बढ़ गई है, लेकिन कई तस्वीरें आ रही हैं, जिसमें नेताओं के लिए आयोजन हो रहे हैं और सोशल डिस्टेंसिंग और मास्क कहीं नजर नहीं आ रहे. सारे एक्सपर्ट कह चुके हैं कि कोरोना इतनी आसानी से अभी नहीं जाने वाला है. लिहाजा सोशल डिस्टेन्सिंग और मास्क हटा देना या लगाने के लिए सिर्फ सरकारी आदेशों पर निर्भर हो जाना ठीक नहीं. नेता, अधिकारियों और जनता का अपना विवेक खत्म नहीं होना चाहिए.

दिल्ली में पांच हजार से ज्यादा लोग अभी कोरोना संक्रमित हैं.

हाल ही में, दिल्ली आपदा नियंत्रण प्राधिकरण की बैठक में एक बार दिल्ली में मास्क की अनिवार्यता लागू कर दी गई है, लेकिन खुद नेता और समाज की अगुवाई करने वाले बड़े चेहरे ही बड़ी बेशर्मी से मास्क और सोशल डिस्टेन्सिंग के नियमों की धज्जियां उड़ाते दिख रहे हैं. राजनीतिक दलों की बैठकों से लेकर सामाजिक और धार्मिक आयोजनों का दौर फिर शुरू हो चुका है. जाहिर है इसे लगातार बंद नहीं कर सकते, लेकिन कितने जरूरी हैं और कितने गैर जरूरी आयोजन, इस पर निगरानी तो जरूरी है. ऐसे आयोजनों की अनुमति देते प्रशासन को ये ध्यान में रखना होगा कि कोरोना फिर डरा रहा है. कोरोना का दंश, अकेले दिल्ली में अब तक 18.8 लाख लोगों को यह वायरस संक्रमित कर चुका है.

ताजा आंकड़े बता रहे हैं कि दिल्ली में बीते एक सप्ताह में कोरोना के एक्टिव मरीजों की संख्या में पांच गुना बढ़ोतरी हो गई है. दिल्ली के 26 हजार परिवारों में कोरोना से हुई मौत के बाद आज भी जिंदगी पटरी पर नहीं लौट पाई है. जनता वो दर्द भूली नहीं है, लेकिन लगता है कि राजनीति ने उस दौर को भूला दिया है, जब दिल्ली के अस्पतालों में मौत का क्रंदन सुनाई देने लगा था.

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अस्पतालों के बाहर दर्द से तड़पते मरीज और उनके परिजनों का हाल कौन भूल सकता है. दुआ कीजिए दिल्ली में वो दौर न आए जो इस वक्त बीजिंग से आती खबरों में दिख रहा है. इतिहास सबक लेने के लिए होता है, लेकिन सबक लेने के बजाए इसे भुला दिया तो फिर वर्तमान में इतिहास दोहराने की घटनाएं रोकी नहीं जा सकतीं. दिल्ली के राजनीतिक दलों में एक बार फिर हलचल है. एमसीडी चुनावों के मद्देनजर राजनीतिक दलों के नेता और कार्यकर्ताओं का उत्साह फिर कुलाचें मार रहा है. कहीं जन्मदिन तो कहीं पार्टी में शामिल होने के आयोजन फिर शुरू हो रहे हैं और मास्क, सोशल डिस्टेंसिंग की अनिवार्यता का नियम पीछे छूट रहा है. इसे संभालिए, इसे रोकिए, दिल्ली हिंसा और कोरोना की वजह से वैसे भी दिल्ली की अर्थव्यवस्था बेपटरी हो चुकी है, प्रति व्यक्ति आय में गिरावट है और रोजगार का संकट हो चुका है. आपकी लापरवाहियां अगर यूं ही चलती रहीं तो फिर दिल्ली पर मंडराता कोरोना संकट बढ़ सकता है.

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