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जनता की मदद से दूर राजनीतिक दलों के नेता, एक-दूसरे पर कर रहे दोषारोपण - डीके शिवकुमार

कोरोना महामारी की दूसरी लहर ने कर्नाटक राज्य में भी कहर मचा दिया है. राजनीतिक दल जिन्हें संकटग्रस्त लोगों की मदद के लिए बचाव में आगे आना चाहिए था वे एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप में व्यस्त है. संकट की इस घड़ी में राजनीतिक नेताओं के रवैये की जनता आलोचना कर रही है.

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Published : Apr 29, 2021, 2:05 AM IST

बेंगलुरु : सत्ताधारी पार्टी बीजेपी बार-बार यह बता रही है कि सरकार ने अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया है. यह सुनिश्चित किया है कि सभी आवश्यक बुनियादी स्वास्थ्य सुविधाएं प्रदान की गई हैं. हालांकि दूसरी ओर विपक्षी कांग्रेस और जद (एस) ने महामारी और वर्तमान संकट से निपटने में सरकार की विफलता की आलोचना की है.

सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म का उपयोग करने वाले राजनीतिक दल एक-दूसरे की आलोचना करते हैं. विपक्षी नेताओं ने प्रेस बयान जारी कर कहा है कि बीएसवाई सरकार संकट से निपटने में पूरी तरह से विफल रही है और सरकार ने लोगों का जीवन बचाने के लिए कुछ भी नहीं किया. उन्हीं राजनीतिक दलों और उसके नेताओं ने कोविड महामारी की पहली लहर के दौरान जनता की मदद के लिए हाथ बढ़ाया था.

पहली लहर के दौरान राजनीतिक दलों ने जनता को जागरूक किया, जरूरतमंदों को भोजन और स्वास्थ्य किट वितरित किया. लेकिन इस बार किसी भी राजनीतिक दल और उनके नेताओं ने व्यथित लोगों को मदद देने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई. सत्ताधारी भाजपा और विपक्षी कांग्रेस या जद (एस) लोगों की मदद के लिए सड़कों पर नहीं आए. न ही जहां राज्य में हमने ऐसा उदाहरण नहीं देखा.

हालांकि दोनों दलों के नेता एक-दूसरे पर बयानबाजी करने में जरुर व्यस्त हैं. इस बीच सत्तारूढ़ और विपक्षी दोनों दलों के शीर्ष नेताओं में कई कोरोना पॉजिटिव भी पाए गए हैं और उपचार के लिए अस्पताल में भर्ती हैं. अस्पतालों से डिस्चार्ज होने के बाद भी किसी ने भी फूड किट या हेल्थ किट देकर जनता के प्रति जवाबदेही नहीं दिखाई.

चिंता का स्तर बढ़ गया है

कोविड महामारी की दूसरी लहर तेजी से फैल रही है और इसकी तीव्रता पहली लहर की तुलना में अधिक गंभीर है. मृत्यु दर भी बढ़ी है. कर्नाटक सहित कुछ राज्यों को ऑक्सीजन, वेंटिलेटर और आईसीयू बेड की भारी कमी का सामना करना पड़ रहा है. कोरोना वायरस के लक्षण भी बदल गए हैं. उत्परिवर्तन के साथ इसकी तीव्रता का स्तर अधिक है. सांस लेने में तकलीफ के कारण कई युवाओं की जान चली गई है.

इस कारण से राजनीतिक दलों के नेता और कार्यकर्ताओं ने लोगों के बचाव में आने में संकोच किया है. पार्टियों के शीर्ष नेताओं ने पहली लहर के दौरान लोगों की मदद की और इस बार लोगों के पास जाने से डरते हैं. विपक्षी नेता ने अपने निवास के सामने नोटिस बोर्ड लगा दिया है कि वह कोविड मामलों में वृद्धि के कारण लोगों से नहीं मिलेंगे.

नेताओं ने खुद को सिर्फ बयान जारी करने और कोविड महामारी से निपटने में सरकार की विफलता की आलोचना करने तक सीमित कर रखा है. कांग्रेस पार्टी ने जनता के लिए वैकल्पिक स्वास्थ्य प्रकोष्ठ स्थापित करने का निर्णय लिया है लेकिन इस प्रकोष्ठ से कितने लोगों को लाभ मिलेगा इस बारे में स्पष्टता नहीं दी है.

केपीसीसी अध्यक्ष डीके शिवकुमार ने सरकार पर आरोप लगाया कि वह मौजूदा संकट को संभालने में पूरी तरह से विफल रही है. उसी समय उन्होंने विशेषज्ञों के साथ चर्चा करना शुरू कर दिया है कि घातक वायरस के प्रसार को कैसे रोका जा सकता है.

नेताओं के रवैये से जनता तंग

राज्य सरकार ने आधिकारिक तौर पर लॉकडाउन की घोषणा नहीं की है. इसने केवल कर्फ्यू की घोषणा की है और कड़े नियम लागू किए हैं. अगर सरकार लॉकडाउन लागू करती है तो उसे कुछ लोगों को मुआवजा देना होगा. यहां तक ​​कि पहली लहर में लोगों के बचाव में आई विपक्षी कांग्रेस ने भी इस बार जनता को मदद देने में दिलचस्पी नहीं दिखाई.

इसलिए कपड़ा श्रमिक, परिवहन कर्मचारी, कैब चालक और दैनिक वेतन भोगी लोग राजनीतिक दलों की आलोचना कर रहे हैं. लोग राजनीतिक दलों की उदासीनता पर सवाल उठा रहे हैं. हालांकि दूसरी ओर चुनावों के दौरान वोट मांगने वाले राजनेताओं ने लोगों की समस्याओं की अनदेखी की है.

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राजनीतिक दलों और उसके नेताओं ने दूसरी लहर के दौरान जनता के प्रति चिंता जरुर दिखाई है लेकिन वे दोषारोपण तक ही सीमित हैं. जनता निश्चित रूप से भविष्य में इन नेताओं को उचित जवाब देगी. कम से कम अब राजनीतिक दलों के नेता व्यथित लोगों के बचाव में आ सकते हैं.

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