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वकालत से राजनीति में आए धनखड़ वाजपेयी से शाह तक की रहे पसंद, अब बनेंगे उपराष्ट्रपति

वकालत से राजनीति में आए जगदीप धनखड़ भाजपा में हमेशा से ही वाजपेयी से लेकर शाह तक की पसंद रहे. सलमान खान का केस हो या जाट आरक्षण पर पैरवी की बात हो धनखड़ ने हर मामले में खुद के बेहतर साबित किया. और अब एनडीए उम्मीदवार जगदीप धनखड़ (jagdeep Dhankhar political journey) के उपराष्ट्रपति बनने पर मुहर भी लग चुकी है. ऐसे में उनके राजनीतिक करिअर के बारे भी कुछ बातें हम साझा करने जा रहे हैं.

Jagdeep Dhankhar as vice president, jagdeep Dhankhar political journey
जगदीप धनखड़

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Published : Aug 6, 2022, 8:37 PM IST

जयपुर.धोरों की धरती से एक और माटी का लाल उपराष्ट्रपति का पद संभालने जा रहा है. जिस शेखावाटी के दूरदराज गांव से निकलकर दिवंगत भैरोसिंह शेखावत उप राष्ट्रपति बने उसी शेखावाटी से एक और किसान का बेटा आज उप राष्ट्रपति बनने (Jagdeep Dhankhar as vice president) जा रहा है. वोटिंग समाप्त हो गई है और धनखड़ के उपराष्ट्रपति बनने पर अब मुहर भी लग चुकी है. ऐसे में उपराष्ट्रपति बनने के साथ ही वह राज्यसभा अध्यक्ष की सीट भी संभालेंगे. किसान के घर में जन्मे कानून के जानकार रहे जगदीप धनखड़ का इस मुकाम पर पहुंचने का सफर भी काफी रोचक रहा है. आइये जानते है शेखावाटी के इस गुदड़ी के लाल के राजनीतिक सफर और संघर्ष की कहानी...

वकालत से सफर शुरू
जगदीप धनखड़ ने 1979 में वकालत की शुरुआत की, लेकिन 35 साल की उम्र में हाईकोर्ट बार के अध्यक्ष बने. वहीं सबसे युवा सीनियर एडवोकेट नामित होने का रिकॉर्ड भी उन्हीं के नाम दर्ज है. 1990 में वे वरिष्ठ अधिवक्ता हो गए थे और बार काउंसिल ऑफ राजस्थान के सदस्य भी निर्वाचित हुए. वकालत के पेशे में धनखड़ के जूनियर रहे कई अधिवक्ता आज बड़े पदों पर हैं. इनमें जस्टिस आरएस चौहान मुख्य न्यायाधीश के पद से रिटायर हुए. वहीं, जस्टिस एसपी शर्मा पटना हाईकोर्ट में जज हैं वे भी धनखड़ के जूनियर रहे. वहीं वरिष्ठ अधिवक्ता आरडी रस्तोगी हाईकोर्ट में एडिशनल सॉलिसिटर जनरल हैं, तो वरिष्ठ अधिवक्ता नकवी भी धनखड़ के जूनियर रहे.

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धनखड़ का राजनीतिक सफर
धनखड़ ने अपनी राजनीति की शुरुआत जनता दल से की थी. दिलचस्प बात यह है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अखिल भारतीय बैठक भी धनखड़ के गृह जिले झुंझुनू में हुई थी. अपने समय के अधिकांश जाट नेताओं की तरह धनखड़ भी मूल रूप से देवीलाल से जुड़े हुए थे. युवा वकील रहे धनखड़ का राजनीतिक सफर तब आगे बढ़ना शुरू हुआ, जब देवीलाल ने उन्हें 1989 में कांग्रेस का गढ़ रहे झुंझुनू संसदीय क्षेत्र से विपक्षी उम्मीदवार के रूप में मैदान में उतारा और वहां उन्होंने जीत भी दर्ज की. धनखड़ 1989 में झुंझुनू से सांसद बने. पहली बार सांसद चुने जाने पर ही उन्हें बड़ा इनाम मिला. 1989 से 1991 तक वीपी सिंह और चंद्रशेखर की सरकार में उन्हें केंद्रीय मंत्री भी बनाया गया था.

हालांकि, जब 1991 में हुए लोकसभा चुनावों में जनता दल ने जगदीप धनखड़ का टिकट काट दिया तो वह पार्टी छोड़कर कांग्रेस में शामिल हो गए और अजमेर के किशनगढ़ से कांग्रेस पार्टी के टिकट पर 1993 में चुनाव लड़े और विधायक बने. 2003 में उनका कांग्रेस से मोहभंग हुआ और वे कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हो गए. 2019 में जगदीप धनखड़ को पश्चिम बंगाल का राज्यपाल बनाया गया.

गहलोत की वजह से कांग्रेस छोड़ी
धनखड़ 1990 में चंद्रशेखर के नेतृत्व वाली अल्पमत सरकार में केंद्रीय मंत्री बने. जब पीवी नरसिंह राव प्रधानमंत्री बने तो वह कांग्रेस में शामिल हो गए, लेकिन उस वक्त राजस्थान की राजनीति में अशोक गहलोत ने कदम रख दिया था. प्रतिद्वंद्वियों को राजनीतिक चाल से साइड लाइन करते हुए गहलोत तेजी से कांग्रेस में अपना कद बढ़ा रहे थे. एक वक्त आया जब राजस्थान की राजनीति में अशोक गहलोत का प्रभाव काफी ज्यादा बढ़ गया था. गहलोत का प्रभाव बढ़ने पर धनखड़ भाजपा में शामिल हो गए. यह भी कहा जाता है कि वह जल्द ही वसुंधरा राजे के करीबी बन गए. धनखड़ का राजनीतिक सफर करीब एक दशक के लिए उस समय थम गया, जब उन्होंने अपने कानूनी करियर पर अधिक ध्यान केंद्रित किया. लेकिन जुलाई 2019 में धनखड़ को पश्चिम बंगाल का राज्यपाल नियुक्त किया गया. पश्चिम बंगाल का राज्यपाल नियुक्त होने के साथ राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से उनके संबंध ठीक नहीं रहे. धनखड़ ने इसे लेकर खुले मंच पर भी कई बार चर्चा की. ममता बनर्जी की आलोचना करने को लेकर वह अक्सर सुर्खियों में रहे हैं.

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मंत्री पद ठुकराया -
अभी सत्ता में वीपी सिंह के कुछ ही महीने बीते थे और राम मंदिर को लेकर नेशनल फ्रंट गवर्नमेंट में बीजेपी की हनक चरम पर थी. ऐसे में बीजेपी ने सरकार से हाथ खींच लिया और वीपी सिंह की सरकार गिर गई. इसके बाद सरकार आई चंद्रशेखर की. चंद्रशेखर को कांग्रेस ने बाहर से समर्थन दिया. कहा जाता है राजनीति में आए जगदीप धनखड़ को अभी ज्यादा वक्त नहीं बीता था लेकिन कांग्रेस का समर्थन लाने में धनखड़ की भूमिका अहम रही और यहीं से वह राजीव गांधी के करीब आ गए. इसके बावजूद धनखड़ चंद्रशेखर सरकार में मंत्री नहीं बने.

इसके पीछे यह कहानी बताई जाती है कि चंद्रशेखर सरकार में राजस्थान के कोटे से दो मंत्री बनाए जा चुके थे. दौलत राम सारण और कल्याण सिंह कालवी को कैबिनेट मिनिस्टर का दर्जा दिया गया था. जबकि पिछली सरकार में मंत्री रहे जगदीप धनखड़ को एक बार फिर डिप्टी मिनिस्टर का पद दिया जा रहा था. धनखड़ इस बात से नाराज़ हुए. आकाशवाणी और दूरदर्शन से चंद्रशेखर सरकार के मंत्रियों की लिस्ट में जगदीप धनखड़ का नाम भी बताया गया. लेकिन उन्होंने मंत्री बनने से ही मना कर दिया.

राजीव गांधी से भी रही दोस्ती
कुछ महीने बीते और चंद्रशेखर की सरकार गिर गई. राजीव गांधी से नजदीकी के कारण कांग्रेस धनखड़ को कांग्रेस में ले आई. 1991 में चुनाव हुए. 1989 के लोकसभा चुनाव में झुंझुनू से धनखड़ के सामने कांग्रेस के ही कैप्टन अयूब पहले से ही चुनाव मैदान में थे. राजीव गांधी नहीं चाहते थे कि कैप्टन अयूब से टिकट लेकर धनखड़ को दिया जाए. इसके पीछे अल्पसंख्यकों को साधने की कवायद बताई जाती है. ऐसे में राजीव गांधी ने जगदीप धनखड़ के सामने दूसरा प्रस्ताव रखा. राजीव ने धनखड़ से कहा कि झुंझुनू से कैप्टन अयूब को ही लड़ने दें. इसके अलावा वह राजस्थान से जिस सीट से चाहे वहां से चुनाव लड़ लें. धनखड़ ने सारे फैक्टर को ध्यान में रखते हुए अजमेर सीट चुनी. जहां जाट, गुज्जर और मुस्लिम वोट मिलाकर करीब 50 प्रतिशत जनसंख्या बन रही थी. मुस्लिम वोटों के लिए कांग्रेस की सेक्युलर छवि का दावा, जाट धनखड़ खुद थे. गुर्जर वोटों के लिए राजीव गांधी ने राजेश पायलट को लगाया लेकिन यहां भी एक पेच था.

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पायलट को धनखड़ की राजीव से नजदीकी रास नहीं आ रही थी. बताया जाता है कि राजीव ने पायलट को 2 बार हेलिकॉप्टर दिया कि अजमेर जाकर धनखड़ के लिए प्रचार करो. पायलट गए भी, लेकिन गुर्जर बहुल इलाके में नहीं, जहां उनकी जरूरत थी. राजीव गांधी और धनखड़ की नजदीकियों का अंदजा इससे भी लगाया जा सकता है कि राजीव उस चुनाव में अपनी सीट अमेठी में प्रचार के लिए थोड़ी देर के लिए गए, लेकिन अजमेर में उन्होंने जगदीप धनखड़ के लिए जमकर प्रचार किया. राजीव ने अजमेर में 10 घंटे से ज्यादा समया बिताया और देर रात तक प्रचार किया.

अमित शाह की लीगल टीम में धनखड़
कानून, सियासत और सियासी दांवपेंच के लिए भी धनखड़ जाने जाते हैं. वह राजस्थान की जाट बिरादरी से आते हैं. राजस्थान में जाटों को आरक्षण दिलवाने में उन्होंने अहम भूमिका निभाई थी. इस समुदाय में धनखड़ की अच्छी खासी साख है. कानून की अच्छी समझ के चलते जगदीप धनखड़ अमित शाह की लीगल टीम का महत्वपूर्ण हिस्सा भी हैं. बताया जाता है कि अमित शाह कई लीगल मामलों में धनखड़ की राय जरूर लेते हैं. धनखड़ ने अपने वकालत के करियर में सामाजिक मुद्दों से जुड़े कई मुकदमों में प्रभावी पैरवी की है.

सलमान खान से कनेक्शन
जगदीप धनखड़ पेशे से अच्छे अधिवक्ता भी रहे चुके हैं. साल 1998 के बहुचर्चित काले हिरण शिकार मामले में सलमान खान के अधिवक्ता देवानंद गहलोत ने सीनियर अधिवक्ता जगदीप धनखड़ को इस केस के लिए इंगेज किया था. काला हिरण शिकार मामले में सलमान खान को अदालत से जमानत दिलाने में धनकड़ कामयाब भी हुए थे. साल 1998 में जोधपुर शहर के आसपास के ग्रामीण क्षेत्र में बड़जात्या फिल्म प्रोडक्शन के तहत फिल्म 'हम साथ साथ हैं' की शूटिंग चल रही थी. इस दौरान सलमान खान, सैफ अली खान, नीलम, तब्बू और सोनाली बेंद्रे सहित अन्य लोगों ने मिलकर काले हिरणों का शिकार किया. इसके बाद शिकार प्रकरण को लेकर मामला भी दर्ज किया गया. काला हिरण शिकार मामले में जोधपुर में सलमान खान सहित अन्य पर तीन हिरणों के शिकार के मामले दर्ज हुए. कांकाणी काला हिरण शिकार मामले की सुनवाई जोधपुर के हाईकोर्ट में चल रही है.

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