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राजस्थान में राज परिवारों का सियासी सफर : अवसर के साथ रियासतें बदलती रहीं सियासत...

आजाद भारत में राजतंत्र (monarchy) खत्म होने के साथ ही प्रजातंत्र (democracy) कायम हुआ. लेकिन देश की राजनीति में पूर्व राज परिवारों (erstwhile royal families) का दखल अब भी कायम है. राजस्थान के राजे-रजवाड़ों और राज परिवारों ने राजनीति में भी अपने झंडे गाड़े. कुछ पूर्व राजपरिवार आज भी राजनति (royal family in politics) के सिरमौर बने हुए हैं.

राजस्थान में राज परिवारों का सियासी सफर
राजस्थान में राज परिवारों का सियासी सफर

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Published : Aug 26, 2021, 4:10 PM IST

जयपुर. राजस्थान में पूर्व राज परिवार के सदस्य वक्त, हालात और अपने फायदे के हिसाब से राजनीतिक दलों को चुनते और छोड़ते रहे. लेकिन सियासत में उनका प्रभाव और रुतबा कायम रहा. राजस्थान के राज परिवारों के सियासी सफर किन मोड़ से होकर गुजरा, जयपुर से वरिष्ठ संवाददाता पीयूष शर्मा की इस रिपोर्ट के जरिये समझिये.

राजस्थान के प्रमुख पूर्व राज परिवारों में शायद ही कोई ऐसा परिवार होगा जिसने राजतंत्र के खात्मे के बाद राजनीति में एंट्री न की हो. राजनीति में इन पूर्व राजपरिवारों की एंट्री जनसेवा के साथ-साथ राजपरिवार की संपत्तियों को भी सुरक्षित रखने के लिए हुई. राजस्थान के प्रमुख पूर्व राजघरानों में जयपुर राजपरिवार, अलवर राजपरिवार, कोटा राजपरिवार, बीकानेर राजपरिवार, भरतपुर राजपरिवार, जोधपुर राजपरिवार, उदयपुर राजपरिवार, धौलपुर राजपरिवार, जैसलमेर राजपरिवार और करौली राजपरिवार शामिल हैं.

पूर्व राजघरानों की सियासी दास्तान...

वक्त के साथ थामा भाजपा-कांग्रेस का हाथ

अवसर के साथ रियासतें बदलती रहीं सियासत

वर्तमान में राजस्थान में राजनीतिक दलों से जुड़े पूर्व राजपरिवारों में जयपुर, बीकानेर, कोटा और धौलपुर के पूर्व राजपरिवार ऐसे हैं जो भाजपा से जुड़े हैं. वहीं अलवर और भरतपुर के पूर्व राज परिवार का जुड़ाव कांग्रेस के साथ है. आजादी के बाद कुछ पूर्व राज परिवारों ने जनसंघ और स्वतंत्र पार्टी का दामन थामा और चुनाव भी लड़ा. लेकिन समय के साथ कुछ भाजपा के साथ हो गए और कुछ कांग्रेस के साथ. समय, स्थिति और सियासी नफे-नुकसान को देखते हुए कुछ पूर्व राज परिवारों ने राजनीतिक दल बदलने में भी समय नहीं लगाया.

मेवाड़ का राजघराना

समय के साथ इन पूर्व राज परिवारों ने बदला सियासी पाला

राजस्थान में भरतपुर के पूर्व राजपरिवार से आने वाले विश्वेंद्र सिंह (vishvendra singh) मौजूदा समय में कांग्रेस के विधायक हैं. विश्वेंद्र सिंह और उनकी पत्नी भाजपा के सांसद रह चुके हैं. पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे (vasundhra raje) के राजनीतिक सलाहकार के रूप में भी विश्वेंद्र सिंह ने अपनी सेवाएं दी थीं. इसी परिवार की बेटी कृष्णेंद्र कौर दीपा (krishnendra kaur dipa) पिछली वसुंधरा राजे सरकार में मंत्री रह चुकी हैं. विश्वेंद्र सिंह परिवार के सदस्य राजा मानसिंह (raja maan singh) राजनीति में लंबे समय तक सक्रिय रहे थे.

वसुंधरा राजे दो बार रह चुकी हैं प्रदेश की मुख्यमंत्री

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अलवर के पूर्व राजपरिवार की सदस्य महेंद्र कुमारी (mahendra kumari) भाजपा से सांसद रह चुकी हैं. लेकिन अब इसी परिवार के सदस्य भंवर जितेंद्र सिंह (bhanwar jitendra singh) कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेता हैं. ठीक यही स्थिति कोटा के पूर्व राजपरिवार की भी है. कोटा के पूर्व राजपरिवार के सदस्य इज्येराज सिंह (ijyeraj singh) लंबे समय तक कांग्रेस में रहे और सांसद भी रहे. लेकिन पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस से नाराज होकर उन्होंने अपनी पत्नी कल्पना सिंह (kalpana singh) को लाडपुरा विधानसभा सीट पर भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़वाया और वे भाजपा की विधायक भी बनीं.

जीत की गारंटी हैं पूर्व राज परिवारों की महिलाएं

जयपुर के पूर्व राज परिवार की पूर्व राजमाता गायत्री देवी (gayatri devi) स्वतंत्र पार्टी से जयपुर लोकसभा क्षेत्र में चुनाव लड़कर सांसद बनी थीं. इसी परिवार से आने वाले पूर्व महाराजा ब्रिगेडियर भवानी सिंह (bhawani singh) कांग्रेस के टिकट से जयपुर लोकसभा का चुनाव लड़े थे. अब भवानी सिंह की पुत्री और जयपुर राजपरिवार सदस्य दीया कुमारी (diya kumari) राजसमंद से भाजपा की सांसद और पार्टी में प्रदेश महामंत्री हैं.

जयपुर का राजघराना रहा भाजपा के करीब, भवानी सिंह लड़े थे कांग्रेस के टिकट पर चुनाव

जोधपुर पूर्व राजपरिवार के सदस्य गज सिंह (gaj singh) पहले भाजपा के सहयोग से राज्यसभा सांसद रहे और एनडीए सरकार के दौरान ट्रिनिडाड में भारत के उच्चायुक्त रहे. लेकिन इसी परिवार से ताल्लुक रखने वाली उनकी बहन चंद्रेश कुमारी (chandresh kumari) कांग्रेस से सांसद और यूपीए सरकार में मंत्री भी रहीं. बीकानेर के पूर्व राजपरिवार के पूर्व महाराजा करणी सिंह (karni singh) निर्दलीय सांसद रहे. अब बीकानेर राजपरिवार की सदस्य सिद्धि कुमारी (siddhi kumari) पिछले लंबे समय से भाजपा में विधायक हैं.

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धौलपुर पूर्व राजपरिवार की पूर्व महारानी वसुंधरा राजे शुरू से ही भाजपा में रहीं. वसुंधरा राजे मध्यप्रदेश के सिंधिया राजपरिवार (sindhiya family) से आती हैं. उनके भाई माधवराव सिंधिया (madhav rao sindhiya) कांग्रेस के नेता रहे. हालांकि अब माधवराव सिंधिया के बेटे ज्योतिरादित्य सिंधिया (jyotiraditya sindhiya) कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हो चुके हैं. वसुंधरा राजे भाजपा की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और राजस्थान के झालावाड़ से भाजपा विधायक हैं. जबकि उनके पुत्र दुष्यंत सिंह (dushyant singh) भाजपा के सांसद हैं.

साल 2013 और 2018 में इन सदस्यों ने लड़ा चुनाव

राजस्थान विधानसभा चुनाव में हमेशा से ही पूर्व रॉयल फैमिली की मौजूदगी दिखाई देती रही है. साल 2013 के विधानसभा चुनाव में पूर्व राज परिवारों से ताल्लुक रखने वाले 7 सदस्यों ने चुनाव लड़ा था. इनमें अधिकतर भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़े थे. 2013 में वसुंधरा राजे, भरतपुर राजघराने की बेटी कृष्णेंद्र कौर दीपा, भरतपुर राज परिवार से ही विश्वेंद्र सिंह, जयपुर राजपरिवार की बेटी दीया कुमारी, करौली राजपरिवार की बहू रोहिणी कुमारी (rohini kumari), बीकानेर राजपरिवार की बेटी सिद्धि कुमारी और बिजोलिया राजघराने की बहू कीर्ति कुमारी (keerti kumari) ने चुनावी मैदान में भाग्य आजमाया था.

जयपुर का राजघराना रहा भाजपा के करीब, भवानी सिंह लड़े थे कांग्रेस के टिकट पर चुनाव

वहीं. साल 2018 में हुए विधानसभा चुनाव में राज परिवार के 5 सदस्य चुनाव मैदान में उतरे. इनमें रोहिणी कुमारी और दीया कुमारी को टिकट नहीं मिला. वहीं बिजोलिया राजघराने की बहू कीर्ति कुमारी का निधन हो गया. हालांकि कोटा राजपरिवार से आने वाली कल्पना सिंह लाडपुरा सीट से चुनाव लड़ी. वहीं धौलपुर की बहू वसुंधरा राजे, बीकानेर की सिद्धि कुमारी, भरतपुर के विश्वेंद्र सिंह और कृष्णेंद्र कौर दीपा ने इन चुनाव में दमखम दिखाया.

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भैरों सिंह शेखावत के कार्यकाल में पूर्व राज परिवारों को दी गई थी मदद

राजस्थान से जुड़े राजनीतिक विश्लेषक बताते हैं कि राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री भैरों सिंह शेखावत के कार्यकाल में राजस्थान के पूर्व राज परिवारों को काफी छूट और राहत दी गई थी. खास तौर पर भैरों सिंह शेखावत सरकार के कार्यकाल के दौरान ही अधिकतर पूर्व राज परिवारों ने होटल व्यवसाय में कदम रखा और अपनी कई संपत्तियों को होटल व्यवसाय में बदला. जिसमें सरकार ने उनकी मदद की.

वसुंधरा राजे दो बार बन चुकी हैं मुख्यमंत्री

राजस्थान के रजवाड़ों की बात की जाए तो धौलपुर की पूर्व महारानी वसुंधरा राजे दो बार राजस्थान की मुख्यमंत्री बन चुकी हैं. हालांकि वसुंधरा राजे मध्यप्रदेश के सिंधिया राजपरिवार से आती हैं लेकिन उनका विवाह धौलपुर राज घराने में हुआ था. लिहाजा वे धौलपुर की पूर्व महारानी भी हैं.

जैसलमेर का पूर्व राज परिवार भी राजनीति में रहा था सक्रिय

राजस्थान की मौजूदा राजनीति में जैसलमेर राजघराना भले ही सक्रिय न हो लेकिन पहले इस पूर्व राज परिवार का राजनीति से ताल्लुक रहा. इस परिवार से पूर्व महाराजा रघुनाथ सिंह (raghunath singh) सांसद रहे और इसी परिवार से हुकुम सिंह (hukum singh) विधायक भी रहे थे.

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