तिरुवनंतपुरम:केरल कांग्रेस के पाच दशकों के इतिहास पर नजर डालें तो पता चलता है कि यहां पार्टी में तीन बड़े नेता हुए हैं. इनमें के. करुणाकरन, ए.के. एंटनी और ओमन चांडी, जो 1977 से 2016 तक नौ मौकों पर मुख्यमंत्री रह चुके हैं. समय के साथ अब चांदी का चम्मच लेकर पैदा हुए लोगों के लिए भी पार्टी में जगह बना पाना मुश्किल हो गया है और यही इन कद्दावर नेताओं के बच्चों के राजनीतिक विकास के साथ देखा गया है.
सत्ता की समझ होने पर उनके बच्चों ने अपने पिता के करियर का अनुसरण किया. इस कड़ी में सबसे पहला नाम करुणाकरन के पुत्र के. मुरलीधरन का आता है. मुरलीधरन, जब 1989 में 32 वर्ष के थे, उस समय करुणाकरन केरल में कांग्रेस के निर्विवाद नेता थे. उन्हें कोझिकोड सीट से लोकसभा के लिए मैदान में उतारा गया. इसके साथ उन्होंने राजनीति में शानदार एंट्री की. उसके बाद मुरलीधरन ने तीन लोकसभा चुनाव जीते और दो बार पार्टी के विधायक रहे.
लेकिन बीच में, जब पार्टी में करुणाकरण की पकड़ कमजोर हो गई और एंटनी ने चांडी के समर्थन के साथ सत्ता संभाली, तो पार्टी के भीतर समस्याएं पैदा हो गईं. पिता-पुत्र की जोड़ी ने 2005 में एक नई पार्टी बनाई, जिसका बाद में एनसीपी के साथ विलय कर लिया, जो सीपीआई (एम) के नेतृत्व वाले वामपंथी की सहयोगी थी. करुणाकरन तब तक कमजोर हो गए थे और 2010 में उनका निधन हो गया. इसके बाद मुरलीधरन कांग्रेस में लौट आए और 2011 के विधानसभा चुनावों में जीत हासिल की.
मुरलीधरन के विपरीत, एंटनी के दोनों बेटों ने कभी पूर्णकालिक राजनीति नहीं की, क्योंकि वे अपने करियर में व्यस्त थे. लेकिन पेशे से इंजीनियर एंटनी के बड़े बेटे अनिल एंटनी ने राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर आईटी सेल का हिस्सा बनने का फैसला कर कांग्रेस की राजनीति में पिछले दरवाजे से प्रवेश किया. उन्होंने कभी भी विशिष्ट राजनीतिक गतिविधि में प्रवेश नहीं किया, इसलिए उन्हें कभी देखा नहीं गया, जहां आम तौर पर राजनीतिक कार्यकर्ताओं को देखा जाता है. इसलिए कांग्रेस के कई दिग्गज दिग्गजों के मुताबिक, बीजेपी में उनका जाना उनकी भूल है.