दिल्ली

delhi

ETV Bharat / bharat

पेगासस विवाद : जेपीसी जांच से क्यों डर रही सरकार ? - जेपीसी संयुक्त संसदीय समिति

पेगासस जासूसी विवाद से सरकार की साख को धक्का लगा है. वैसे, सरकार ने अब तक यह नहीं बताया है कि पेगासस स्पाईवेयर की वह सेवा लेती है या नहीं. लेकिन जिस तरीके से विपक्ष हमलावर है, मीडिया लगातार सवाल खड़े कर रही है, संसद का कामकाज प्रभावित हो रहा है, राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि जेपीसी जांच सच्चाई को सामने ला सकता है. ईटीवी भारत की वरिष्ठ संवाददाता चंद्रकला चौधरी की विशेष रिपोर्ट.

etv bharat
कॉन्सेप्ट फोटो

By

Published : Jul 20, 2021, 8:28 PM IST

नई दिल्ली : पेगासस जासूसी विवाद ने राजनीतिक जगत में खलबली पैदा कर दी है. विपक्ष अचानक ही सरकार पर हमलावर हो गई है. संसद का मानसून सत्र भी प्रभावित हो रहा है. पूरे मामले पर सरकार ने पेगासस को लेकर कोई आधिकारिक बयान जारी नहीं किया है. पेगासस स्पाइवेयर इजरायली कंपनी एनएसओ ग्रुप का प्रोडक्ट है. कंपनी का दावा है कि वह इसे सिर्फ सरकारों को बेचती है. मीडिया रिपोर्ट में खुलासा किया गया है कि एनएसओ के क्लाइंट लिस्ट में भारत की एजेंसी भी है. लेकिन वह कौन सी एजेंसी है, किसी को पता नहीं है.

ईटीवी भारत ने पूरे मामले पर वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक राशिद किदवई और सबा नकवी से बात की है. किदवई का मानना है कि सरकार के सामने साख का सवाल है. इसलिए बेहतर होगा कि पूरे मामले पर संयुक्त संसदीय समिति की जांच बिठाई जाए.

राजनीतिक विश्लेषक और वरिष्ठ पत्रकार सबा नकवी ने कहा, 'यह सबसे बड़ी खबर है. सरकार को जांच बिठानी चाहिए. पता लगाना चाहिए कि किसने इस तरह के आदेश दिए, जिसने मूल अधिकारों का खुल्लम-खुल्ला हनन किया.'

उन्होंने कहा कि क्या हम प्रजातंत्र में जी रहे हैं या फिर 'जासूसतंत्र' में. हमारे संविधान ने हमें जो भी मूल अधिकार दिए हैं, उसका भी उल्लंघन हो रहा है. जो विदेशी यहां पर आ रहे हैं, उनके अधिकारों का भी हनन कर रहे हैं.

सबा नकबी, वरिष्ठ पत्रकार

फ्रांस के अखबार ले-मोंदे ने लिखा है कि इसमें कई राजनयिक और अंतरराष्ट्रीय एनजीओ के सदस्यों का भी नाम है.

मीडिया में चल रही खबरों के मुताबिक ब्रिटिश उच्चायुक्त के एक कर्मी और अमेरिकन सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन के दो कर्मचारियों तथा बिल एंड मिलिंडा गेट फाउंडेशन के कर्मचारियों के मोबाइल नंबर भी डेटाबेस में मिले हैं.

वरिष्ठ पत्रकार राशिद किदवई ने कहा कि यह बहुत ही गंभीर विषय है. उन्होंने कहा कि तकनीक प्रजातंत्र के लिए खतरा बढ़ा रहा है, इसलिए व्यापक तरीके से जांच करने के लिए संयुक्त संसदीय समिति का गठन होना जरूरी है. यह किसी एक पार्टी या एक व्यक्ति का मामला नहीं है. जासूसी से प्रजातंत्र की राह कठिन हो जाएगी. फोन टैपिंग अनैतिक है. यह गलत है. यह आपराधिक कृत्य है. स्वस्थ प्रजातंत्र में फोन टैपिंग की भी इजाजत नहीं होनी चाहिए.

किदवई ने कहा कि भारत में ही नहीं, बल्कि दुनिया के दूसरे प्रजातांत्रिक देशों में भी तकनीक की दखलंदाजी बढ़ती जा रही है. अगर सरकार चाहती है कि सच्चाई सामने आए और उनकी ओर से कुछ भी गलत नहीं है, तो संयुक्त संसदीय समिति का गठन कर दे. सरकार और विपक्ष दोनों सहयोग करेंगे. जो भी दोषी होगा, उसकी पहचान होगी, और उनके खिलाफ कानून सम्मत कार्रवाई की जाएगी. इसमें गलत क्या है.

विदेश नीति को लेकर पेगासस के परिप्रेक्ष्य में भारत की क्या प्रतिक्रिया हो सकती है, इस पर किदवई ने कहा कि हम एक स्वतंत्र गणराज्य हैं. सरकार की प्राथमिक भूमिका प्रजातंत्र को सुरक्षित रखने की होती है. अगर किसी विदेशी या बाहरी ताकत को जिम्मेवार ठहराना है, तो उसे भी कटघरे में लाएंगे. लेकिन इससे विदेशी संबंध प्रभावित होंगे, ऐसा नहीं है.

राशिद किदवई (राजनीतिक विश्लेषक और वरिष्ठ पत्रकार)

कांग्रेस को करीब से जानने वाले किदवई ने कहा कि निश्चित तौर पर जिस तरह के गंभीर और सनसनीखेज आरोप लगे हैं, चाहे किसी की भी सरकार हो, उसे इस आंच से बाहर निकलना ही होगा. और सबसे अच्छा तरीका जेपीसी है. उन्होंने कहा कि अगर आप व्यवस्था को मजबूत नहीं करेंगे, तो फिर उस पर कौन यकीन करेगा.

पूरे मामले पर संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग ने भी चिंता जताई है.

आपको बता दें कि इस हफ्ते प्रकाशित वैश्विक मीडिया समूह की एक जांच में पाया गया कि 50 देशों में 1,000 से अधिक लोगों को एनएसओ ग्राहकों ने इसके पेगासस स्पाईवेयर द्वारा संभावित निगरानी के लिए कथित तौर पर चयनित किया था. उनमें फ्रांस के पत्रकार और नेता भी शामिल थे.

एनएसओ ग्रुप ने इस बात से इनकार किया है कि उसने अतीत में, मौजूदा समय में या भावी लक्ष्यों की कोई सूची रखी.

अमेरिका के बोस्टन से प्राप्त एक खबर के मुताबिक संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त मिशेल बेशलेट ने एक बयान में कहा, 'पूरी छूट के साथ एक बार फिर और फिर से लक्ष्मण रेखा लांघी गई है.'

गौरतलब है कि पत्रकारिता से संबद्ध पेरिस की गैर लाभकारी फॉरबिडेन स्टोरीज और मानवाधिकार संस्था एमनेस्टी इंटरनेशनल अज्ञात स्रोत से लीक डेटा हासिल किए हैं और कहा है कि इसके लोग एनएसओ ग्राहकों द्वारा निगरानी के लिए संभावित लक्ष्य थे.

समूह के पत्रकारों ने 50,000 मोबाइल फोन नंबरों से अधिक को खंगाल कर 50 देशों में 1,000 से अधिक लोगों की पहचान की है, जिनमें 189 पत्रकार, 85 मानवाधिकार कार्यकर्ता और कई राष्ट्रों के प्रमुख शामिल हैं.

पत्रकारों में समाचार एजेंसी एसेसिएटेड प्रेस (एपी) रॉयटर्स के अलावा सीएनन, द वाल स्ट्रीट जर्नल, ले मोंदे और द फिनांशियल टाइम्स शामिल हैं.

एमनेस्टी के जांचकर्ताओं ने पाया कि वाशिंगटन पोस्ट के पत्रकार जमाल खशोगी की मंगेतर हेटिस सेनगीज के मोबाइल फोन को खशोगी की 2018 में इस्तांबुल स्थित सऊदी वाणिज्य दूतावास में हत्या के महज चार दिन बाद निशाना बनाया गया था.

मेक्सिको के राष्ट्रपति एंडरे मैनुएल लोपेज ओबराडोर के 50 करीबी लोग भी संभावित लक्ष्य सूची में थे. ओबराडोर उस वक्त विपक्ष में थे. उस वक्त सूची में शामिल की गई मैक्सिको के संवाददाता सेसीलियो पीनेदा की 2017 में हत्या कर दी गई थी.

ये भी पढ़ें :क्या है पेगासस स्पाइवेयर, जिसने भारत की राजनीति में तहलका मचा रखा है ?

ये भी पढ़ें :पेगासस विवाद : कर्नाटक की कांग्रेस-जेडीएस सरकार गिराने में किसकी भूमिका ?

ABOUT THE AUTHOR

...view details