पटना :विलियम शेक्सपियर ने कहा था 'नाम में क्या रखा है', हालांकि साहित्य की भाषा अपने काल खंड के अनुसार होती है. भारत में जब उसे नई दिशा मिली तो कहा गया, 'जग में रहकर कुछ नाम करो'.
देश में बीजेपी के काम और नाम की सियासत ने देश में जिस तरह से राजनीति को हवा दी है. उसमें विपक्षी सियासी लड़ाई के लिए मैदान में उतर तो रहे हैं, लेकिन बीजेपी ने अपनी राजनीतिक दंगल के लिए जिस मैदान को तैयार किया है, उसमें विपक्ष को किसी भी खेल में जीत नहीं मिल रही है.
गुजरात में मोटेरा स्टेडियम का नाम नरेंद्र मोदी क्रिकेट स्टेडियम होने पर विपक्ष ने हंगामा कर दिया है. देश के वीर और महापुरुषों की बजाय अब नरेंद्र मोदी के नाम को बीजेपी भजाने में जुटी है. विपक्ष के विरोध के बाद भी इस कार्यक्रम में महामहिम राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद और देश के गृहमंत्री अमित शाह ने स्टेडियम का नाम नरेंद्र मोदी के नाम पर करने का एलान कर दिया.
2013 में गिरिराज सिंह और अश्विनी चौबे ने दिया था नमो नाम का नारा
देश की राजनीति में जिस दखल को भाजपा ने किया है उसमें 100 प्रतिशत नाम की हिस्सेदारी ही है. नरेंद्र मोदी के नाम पर सियासत की जिस बिसात को भाजपा ने बिछाया उसमें उसे लगातार सफलता मिल रही है.
2013 में बिहार के राजगीर में हुई भाजपा के राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में 'नमो' नाम का नारा उस समय बिहार सरकार में मंत्री गिरिराज सिंह और अश्विनी चौबे ने दिया था.
'नमो-नमो' को जिस मंत्र ने बीजेपी को अपने बूते देश में सरकार बनाने की हैसियत दी वह नरेंद्र मोदी के नाम पर रही है.
देश की राजनीतिक फतह के लिए भाजपा ने नरेंद्र मोदी के नाम का जिस स्टेडियम को तैयार किया है, उसमें वह जो भी खेल खेल रही है उसमें उसे जीत ही मिल रही है. मिशन कश्मीर की बात हो या फिर नारा कांग्रेस मुक्त भारत का. मोदी के नाम पर बीजेपी को उसके मन माफिक सफलता मिल रही है.
भाजपा को भाया 'मोदी है तो मुमकिन है'
भाजपा को देश की सियासत में मोदी है तो मुमकिन है भा गया है. देश में भाजपा की सरकार बनने के बाद बीजेपी ने अपने तरकश से जिस भी तीर को निकाला है उसने भाजपा को जीत ही दी है.
नाम की सियासत को लेकर देश में भाव और विभेद का जो रंग चढ़ा है उसमें मोदी मंत्र ही बीजेपी की जीत की कुंजी है और राजनीति में विरोध करने के लिए विपक्ष की पूंजी.
हिन्दुस्तान गंगा जमुनी तहजीब की धरती है. नरेंद्र मोदी के नाम पर स्टेडियम में 2 मिट्टी से पिच बनायी गयी है. एक मिट्टी लाल रंग की है, जिससे 6 पिच बनायी है, जबकि 6 पिच काली मिट्टी से बनी है.
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स्टेडियम में 1 लाख 32 हजार लोगों के बैठने की व्यवस्था है. जो मोदी स्टेडियम में बैठकर खेल का आनंद लेंगे. दरअसल विपक्ष को यह समझ ही नहीं आ रहा है कि सवा सौ करोड़ की आबादी वाले देश में नरेंद्र मोदी ने राजनीतिक के खेल के लिए जिस स्टेडियम को तैयार कर दिया है, उसमें किस खेल को खेला जाय?
विपक्ष राजनीति के खेल में मैदान जीतने के लिए उतरता तो जरूर है. लेकिन उसकी कोई भी सियासी तैयारी अंतिम फतह के पहले ही दम तोड़ देती है. भाजपा के लिए यह सियासी खेल का सबसे बड़ा 'तुरुप का एक्का' है जिसका इस्तेमाल कर वह जीत रही है.
कमजोर पड़ने लगी है जाति की राजनीति
देश में जाति की राजनीति की दरकती दीवार के नीचे खड़े राजनीतिक दल अभी भी उसपर जाति की मिट्टी का लेप लगाकर उसे चमका रहे हैं.
दरअसल देश में 1989 में नाम की राजनीति ने जो जगह बनायी थी उसकी प्रासंगिकता अब कमजोर पड़ने लगी है. 1989 में मंडल आयोग के नाम पर खड़े हुए राजनीतिक दल और जय श्री राम के सौगन्ध की राजनीति को लेकर चली भाजपा ने देश में नाम की राजनीति की जिस खेती को किया उसकी खूब फसल काटी गयी.