भोपाल:ये ऐसा शाही घराना है जो देश को 25 बार से ज्यादा सांसद दे चुका है. मध्य प्रदेश के ग्वालियर-चंबल की सियासत के ये सबसे बड़े खिलाड़ी रहे हैं. इस घराने के वशंज जोश और जज्बे के साथ जरूरत पड़ने पर बगावती रुख अख्तियार करने से गुरेज नहीं करता. जी हां! बात कर रहे हैं सिंधिया राजपरिवार की. 1957 से देश की सियासत में शामिल सिंधिया राजघराने की प्रमुख रहीं विजया राजे सिंधिया के तीसरी पीढ़ी यानी उनके पोते ज्योतिरादित्य (Jyotiraditya Scindia Minister) ने जब बुधवार को मोदी कैबिनेट (Modi Cabinet Reshuffle) में नागरिक उड्डयन मंत्री (Civil Aviation Minister) के रूप में शपथ ली, तो एक बार फिर ये घराना सियासी बिसात की चर्चा के केंद्र में आ गया. आइए जानते हैं केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया और उनके घराने के कुछ अनछुए पहलुओं को...
30 सितंबर, 2001 को पिता माधवराव की प्लेन क्रैश में असामयिक मौत के बाद ज्योतिरादित्य सिंधिया की राजनीति में एंट्री हुई. पिता के नक्शे कदम पर चलते हुए ज्योतिरादित्य भी कांग्रेस में शामिल हुए. साल 2002 में कांग्रेस की टिकट पर गुना से लोकसभा चुनाव जीते. बाद में 2004 में भी सफलता दोहराते हुए 14वीं लोकसभा के लिए चुने गए.
सफलता की सीढ़ी चढ़ते गए सिंधिया
सांसद ज्योतिरादित्य 6 अप्रैल, 2008 को पहली बार यूपीए की मनमोहन सरकार में सूचना एवं प्रसारण राज्य मंत्री बने. यूपीए-2 में सिंधिया को राज्यमंत्री का स्वतंत्र प्रभार दिया गया. सिंधिया कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व सोनिया गांधी और राहुल गांधी के बेहद करीबियों में गिने जाते रहे.
ज्योतिरादित्य का कांग्रेस से मोहभंग
ज्योतिरादित्य (Jyotiraditya Scindia) 2002 के बाद से गुना लोकसभा से लगातार जीतते रहे. 2018 के मध्य प्रदेश के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की जीत हुई. ज्योतिरादित्य का नाम मुख्यमंत्री पद के लिए चर्चा में आया. हालांकि, पार्टी ने वरिष्ठ नेता कमलनाथ के अनुभव को सिंधिया के युवा जोश से ज्यादा तरजीह दी और ज्योतिरादित्य सिंधिया मध्य प्रदेश के सीएम नहीं बन पाए.
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समय बीतने के साथ ही मध्य प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री कमलनाथ की सत्ता के समय में एक समय ऐसा भी आया, जब ये कहा जाने लगा कमलानाथ सरकार में सिंधिया समर्थकों और खुद उनकी सुनवाई नहीं हो रही. फिर एक समय ऐसा आया कि जनहित के किसी भी कार्य के लिए सिंधिया की सिफारिश अनसुनी होने लगी.
बस तो फिर ज्योतिरादित्य का धैर्य जवाब दे गया और राजनीतिक जीवन के 18 साल कांग्रेस के साथ बिताने के बाद उन्होंने 10 मार्च 2020 को कांग्रेस छोड़ दी. कांग्रेस से बगावत कर 11 मार्च को सिंधिया अपने 20 से ज्यादा समर्थक विधायकों के साथ बीजेपी में शामिल हो गए. इससे कांग्रेस की कमलनाथ सरकार अल्पमत में आए गई. आखिरकार 20 मार्च 2020 को कमलनाथ को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा.
अब बीजेपी के लाडले हुए ज्योतिरादित्य
कांग्रेस छोड़कर बीजेपी (BJP) में आए ज्योतिरादित्य को मोदी ने कैबिनेट में जगह दी है. बुधवार 7 जुलाई, 2021 को हुए कैबिनेट विस्तार में ज्योतिरादित्य सिंधिया को नागरिक उड्डयन मंत्रालय की जिम्मेदारी दी गई. दिलचस्प बात यह है कि इसी मंत्रालय की जिम्मेदारी कभी ज्योतिरादित्य सिंधिया के पिता माधव राव सिंधिया के पास भी थी.
राजनीति का केंद्र रहा जयविलास पैलेस
ग्वालियर का जयविलास पैलेस (Jai Vilas Palace Owner) आजादी के बाद सिंधिया घराना देश की राजनीति का प्रमुख केंद्र रहा है. देश की आजादी के बाद बिखरी हुई कई रियासतों को जोड़कर जब मध्य भारत नाम का एक राज्य बनाया गया. ग्वालियर परिवार के मुखिया जिवाजीराव इन सबको कंट्रोल करते थे और वे ही इनकी रियासतों की धुरी थे.