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पीएमएलए मामले में यह देखना है कि फैसले पर क्या बड़ी पीठ को पुनर्विचार करना चाहिए : सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने ईडी की धन शोधन में शामिल संपत्ति को कुर्क करने और गिरफ्तारी के पावर के फैसले को कहा है कि इसके लिए पांच जस्टिस की पीठ के पुनर्विचार की जरूरत है. Supreme Court,Money Laundering Act,PMLA case

Supreme Court
सुप्रीम कोर्ट

By PTI

Published : Nov 22, 2023, 10:03 PM IST

नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को कहा कि प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की धन शोधन में शामिल संपत्ति को कुर्क करने और गिरफ्तारी की शक्तियों को बरकरार रखने संबंधी 2022 के फैसले को लेकर उसे केवल यह देखना है कि क्या उस पर पांच न्यायाधीशों की बड़ी पीठ के पुनर्विचार करने की आवश्यकता है. केंद्र ने शीर्ष अदालत को बताया कि धन शोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए) देश के लिए एक महत्वपूर्ण कानून है. वहीं, याचिकाकर्ता ने दावा किया कि ईडी एक बेलगाम घोड़ा बन गया है और वह जहां चाहे वहां जा सकता है.

न्यायमूर्ति संजय किशन कौल, न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति बेला एम त्रिवेदी की पीठ कुछ मापदंडों पर तीन न्यायाधीशों की पीठ द्वारा 27 जुलाई, 2022 के फैसले पर पुनर्विचार के अनुरोध वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी. उस फैसले में, शीर्ष अदालत ने पीएमएलए के तहत गिरफ्तारी, धन शोधन में शामिल संपत्ति की कुर्की, तलाशी और जब्ती की ईडी की शक्तियों को बरकरार रखा था. पीठ ने बुधवार को कहा, 'पुनर्विचार करने की आवश्यकता है या नहीं. यह सीमित दायरा है.' पीठ ने कहा, 'हमें यह भी देखना होगा कि क्या मामले को पांच न्यायाधीशों के पास भेजे जाने की जरूरत है.'

याचिकाकर्ताओं की ओर से दलील शुरू करने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा कि मुद्दे कानून के शासन के लिए इतने मौलिक हैं कि उन पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता है. उन्होंने कहा, 'महोदय, मैं यहां यह समझाने के लिए नहीं हूं कि निर्णय सही है या गलत. मैं यहां केवल प्रथम दृष्टया आपको यह सुझाव देने के लिए उपस्थित हूं कि मुद्दे कानून के शासन के लिए इतने मौलिक हैं कि इस पूरे मुद्दे पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता है.'

शुरुआत में, केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि जब 18 अक्टूबर को मामले की सुनवाई हुई, तो याचिकाकर्ताओं ने व्यापक परिदृश्य पर बहस शुरू कर दी थी और उन्होंने इस पर आपत्ति जताते हुए कहा था कि अधिनियम की धारा 50 और 63 चुनौती के अलावा कोई दलील नहीं है. पीएमएलए की धारा 50 समन, दस्तावेज पेश करने और साक्ष्य देने के संबंध में अधिकारियों की शक्तियों से संबंधित है, वहीं धारा 63 गलत जानकारी या जानकारी देने में विफलता के लिए सजा से संबंधित है.

मेहता ने कहा कि उन्हें एक संशोधित याचिका मिली है, जो पीएमएलए के तहत एक तरह से हर चीज को चुनौती देती है और कहती है कि 2022 के फैसले पर पुनर्विचार करने की जरूरत है. सुनवाई के दौरान, पीठ ने कहा कि सीमित रूपरेखा यह होगी कि क्या तीन-न्यायाधीशों की पीठ द्वारा तय किए गए कानूनी बिंदु पर एक दृष्टिकोण उस मुद्दे को उठाता है जिस पर एक बड़ी पीठ द्वारा विचार करने की आवश्यकता है.

सिब्बल ने पीएमएलए के कई प्रावधानों का जिक्र करते हुए कहा कि कानून के शासन का मूल सिद्धांत यह है कि जिस व्यक्ति को जांच एजेंसी ने तलब किया है, उसे पता होना चाहिए कि उसे गवाह के रूप में बुलाया गया है या आरोपी के रूप में. उन्होंने कहा, 'अगर मुझे (किसी व्यक्ति) बुलाया जा रहा है...तो मुझे पता होना चाहिए कि मुझे क्यों और किस हैसियत से बुलाया जा रहा है.' सिब्बल ने कहा, 'हम उस स्तर पर पहुंच गए हैं जहां ईडी एक बेलगाम घोड़ा बन गया है. यह जहां चाहे वहां जा सकता है. और यह क्या करता है. यह आपको नहीं बताता है कि आपको गवाह या आरोपी के रूप में बुलाया जा रहा है.'

याचिकाकर्ताओं ने दावा किया कि ईडी भारतीय दंड संहिता की धारा 120-बी (आपराधिक साजिश) का इस्तेमाल करके आयकर चोरी जैसे मामलों में धन शोधन रोधी कानून लागू कर रहा है. पीठ ने कहा कि जब कथित साजिश किसी अनुसूचित अपराध से संबंधित नहीं थी तो ईडी आईपीसी की धारा 120-बी का उपयोग करके पीएमएलए लागू नहीं कर सकता. मामले में दलीलें गुरुवार को भी जारी रहेंगी.

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