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PM नरेंद्र मोदी का जन्मदिन आज, जानिए प्रधानमंत्री बनने तक के सफर के बारे में

आजाद भारत में जन्मे देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का आज 71वां जन्मदिन है. एक साधारण परिवार में जन्मे नरेंद्र मोदी का सता के शीर्ष पर पहुंचना इस बात का संकेत है कि यदि व्यक्ति में दृढ़ इच्छा शक्ति और अपनी मंजिल तक पहुंचने का जज्बा हो तो वह मुश्किल से मुश्किल हालात को आसान बनाकर अपने लिए नये रास्ते बना सकता है. आइए जानते हैं उनके सफर के बारे में...

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Published : Sep 17, 2021, 12:54 AM IST

Updated : Sep 17, 2021, 1:18 AM IST

हैदराबाद : एक साधारण परिवार में जन्मे नरेंद्र मोदी का सता के शीर्ष पर पहुंचना इस बात का संकेत है कि यदि व्यक्ति में दृढ़ इच्छा शक्ति और अपनी मंजिल तक पहुंचने का जज्बा हो तो वह मुश्किल से मुश्किल हालात को आसान बनाकर अपने लिए नये रास्ते बना सकता है.

नरेंद्र मोदी ने 26 मई 2014 को भारत के प्रधानमंत्री पद की शपथ ली और वे भारत के पहले प्रधानमंत्री हैं जिनका जन्म आजादी के बाद हुआ है. 17 वर्ष की आयु में उन्होंने एक असाधारण निर्णय लिया, जिसने उनका जीवन बदल दिया. उन्होंने घर छोड़ने और देश भर में भ्रमण करने का निर्णय कर लिया.

प्रधानमंत्री मोदी

उनका परिवार इस निर्णय पर चकित था, लेकिन उन्होंने नरेंद्र की छोटे शहर का सीमित जीवन छोड़ने की इच्छा को अंतत: स्वीकार कर लिया. जिन स्थानों की उन्होंने यात्राएं कीं उनमें हिमालय (जहां वे गुरूदाचट्टी में ठहरे), पश्चिम बंगाल में रामकृष्ण आश्रम और यहां तक कि पूर्वोत्तर भी शामिल है. इन यात्राओं ने इस नौजवान के ऊपर अमिट छाप छोड़ी. यह उनके लिए आध्यात्मिक जागृति का भी समय था, जिसने नरेंद्र मोदी को उस व्यक्ति से अधिक गहराई से जुड़ने का अवसर दिया, जिसके वे सदैव से प्रशंसक रहे हैं – स्वामी विवेकानंद.

युवास्था की कुछ तस्वीरें

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़ाव

प्रधानमंत्री मोदी

नरेंद्र मोदी दो वर्ष के बाद वापस लौट आए लेकिन घर पर केवल दो सप्ताह ही रुके. इस बार उनका लक्ष्य निर्धारित था और उद्देश्य स्पष्ट था – वह अहमदाबाद जा रहे थे. वो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के साथ कार्य करने का मन बना चुके थे. आरएसएस से उनका पहला परिचय आठ वर्ष की बेहद कम आयु में हुआ, जब वह अपनी चाय की दुकान पर दिन भर काम करने के बाद आरएसएस के युवाओं की स्थानीय बैठक में भाग लिया करते थे. इन बैठकों में भाग लेने का प्रयोजन राजनीति से परे था. वे यहां अपने जीवन पर सबसे अधिक प्रभाव डालने वाले लक्ष्मणराव इनामदार, जिनको 'वकील साहेब' के नाम से भी जाना जाता था, से मिले थे.

प्रधानमंत्री मोदी

अहमदाबाद और उसके आगे की राह

अपनी इस पृष्ठभूमि के साथ, लगभग 20 वर्षीय नरेंद्र गुजरात के सबसे बड़े शहर अहमदाबाद पहुंच गए. वह आरएसएस के नियमित सदस्य बन गए और उनके समर्पण और संगठन कौशल ने वकील साहब और अन्य लोगों को प्रभावित किया. 1972 में वह प्रचारक बन गए और पूरा समय आरएसएस को देने लगे. इसी के साथ नरेंद्र ने राजनीति विज्ञान में अपनी डिग्री पूर्ण की. उन्होंने शिक्षा और अध्ययन को सदैव महत्वपूर्ण माना.

मां का आशीर्वाद लेते प्रधानमंत्री मोदी

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एक प्रचारक के तौर पर उन्हें गुजरात भर में घूमना पड़ता था. वर्ष 1972 और 1973 के मध्य वे नादियाड के संतराम मंदिर में रुके. 1973 में नरेंद्र मोदी को सिद्धपुर में एक विशाल सम्मलेन आयोजित करने का उत्तरदायित्व सौंपा गया, जहां वह संघ के शीर्ष नेताओं से मिले. नरेंद्र मोदी जब एक कार्यकर्ता के तौर पर अपने आप को स्थापित कर रहे थे उस समय गुजरात सहित देश भर में बेहद अस्थिर माहौल था. जब वह अहमदाबाद पहुंचे, शहर साम्प्रदायिक दंगों की भयानक विभीषिका से जूझ रहा था.

नवनिर्माण आन्दोलन : युवा शक्ति

मां के साथ पीएम मोदी

जनता का असंतोष सार्वजानिक आक्रोश में बदल गया जब दिसंबर 1973 में मोरबी (गुजरात) इंजीनियरिंग कॉलेज के कुछ छात्रों ने उनके खाने के बिलों में बेतहाशा वृद्धि का विरोध किया. इस तरह का प्रदर्शन गुजरात के अन्य राज्यों में भी हुआ. इन प्रदर्शनों को व्यापक समर्थन मिलने लगा और सरकार के खिलाफ एक बड़ा आन्दोलन खड़ा हुआ, जिसे नवनिर्माण आन्दोलन के नाम से जाना जाता है.

पैरालंपियन्स के साथ पीएम मोदी

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नरेंद्र मोदी ने एक व्यापक जन आन्दोलन तैयार किया, जिसे समाज के सभी वर्गों का समर्थन हासिल हुआ. इस आन्दोलन को उस समय और ताकत मिली जब एक सम्मानित सार्वजानिक हस्ती और भ्रष्टाचार के खिलाफ शंखनाद करने वाले जयप्रकाश नारायण ने इस आन्दोलन को अपना समर्थन दिया. जब जयप्रकाश नारायण अहमदाबाद आए तब नरेंद्र मोदी को उनसे मिलने का सौभाग्य प्राप्त हुआ. अन्य अनुभवी नेताओं द्वारा आयोजित कई वार्ताओं ने नौजवान नरेंद्र पर एक मजबूत छाप छोड़ी आख़िरकार छात्र शक्ति की जीत हुई और कांग्रेस के तत्कालीन मुख्यमंत्री को इस्तीफ़ा देना पड़ा. तथापि यह हर्ष अधिक समय तक नहीं रहा. अधिनायकवाद के काले बादलों ने 25 जून 1975 की आधी रात को देश को अपनी गिरफ्त में ले लिया, जब प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश के ऊपर आपातकाल थोप दिया.

पीवी सिंधु के साथ पीएम मोदी

आपातकाल के काले दिन

न्यायालय ने इंदिरा गांधी के चुनाव को निरस्त कर दिया था, जिस कारण उन्हें चिंता थी कि शीर्ष पद गंवाना पड़ सकता है. उन्हें लगा कि इन हालात में आपातकाल ही श्रेष्ठ विकल्प है. लोकतंत्र सलाखों के पहरे में चला गया, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता छीन ली गई और विपक्ष के मुखर स्वर अटल बिहारी वाजपेयी, लाल कृष्ण आडवाणी, जॉर्ज फर्नांडीज़ से लेकर मोरारजी देसाई को गिरफ्तार कर लिया गया.

हॉकी टीम के कप्तान मनप्रीत सिंह के साथ पीएम मोदी

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नरेंद्र मोदी आपातकाल विरोधी आंदोलन के मूल में थे. वे उस तानाशाह अत्याचार का विरोध करने के लिए गठित की गई गुजरात लोक संघर्ष समिति (जीएलएसएस) के एक सदस्य थे. कालांतर में वे इस समिति के महासचिव बन गए, जिसके तौर पर उनकी प्राथमिक भूमिका राज्य भर में कार्यकर्ताओं के बीच समन्वय स्थापित करने की थी. नरेंद्र मोदी की अन्य जिम्मेदारियों में से एक गुजरात में आने व वहां से जाने वाले आपातकाल विरोधी कार्यकर्ताओं के लिए यात्रा की व्यवस्था बनाना भी था. कभी-कभी अपने काम के चलते उन्हें कई तरह के भेष बदल कर जाना होता था ताकि वे पहचाने न जाएं – एक दिन वे एक सिख सज्जन के रूप में होते थे, तो अगले दिन एक दाढ़ी वाले बुजुर्ग आदमी के रूप में.

आपातकाल की समाप्ति

आपातकाल से परे नवनिर्माण आंदोलन की ही तरह, आपातकाल की समाप्ति लोगों की जीत के रूप में हुई. 1977 के संसदीय चुनावों में इंदिरा गांधी पराजित हुईं. जनता ने बदलाव के लिए वोट दिया और नई जनता पार्टी की सरकार में अटल और आडवाणी जैसे जनसंघ नेताओं को महत्वपूर्ण कैबिनेट मंत्री बनाया गया. लगभग उसी समय, नरेंद्र मोदी को 'संभाग प्रचारक' (एक क्षेत्रीय आयोजक के बराबर का पद) बनाया गया था. उन्हें दक्षिण और मध्य गुजरात का प्रभार दिया गया था. उसी समय उन्हें दिल्ली बुलाया गया था और आपातकालीन अवधि के दौरान राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अनुभवों को आधिकारिक तौर पर प्रस्तुत करने का दायित्व दिया गया. इस जिम्मेदारी का अर्थ काम का अधिक बोझ तथा क्षेत्रीय और राष्ट्रीय दोनों कर्तव्यों के मध्य संतुलन स्थापित करना था, जिसे नरेन्द्र मोदी ने आसानी और दक्षता के साथ निभाया.

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गुजरात में उनकी यात्राएं जारी रहीं तथा 1980 के दशक के प्रारंभ में काफी बढ़ गईं. यह अनुभव एक आयोजक तथा एक मुख्यमंत्री, दोनों के रूप में उनके लिए बहुत काम आया.

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इस प्रकार 1987 में एक और अध्याय नरेंद्र मोदी के जीवन में शुरू हुआ. उसके बाद से वे जितना समय सड़कों पर काम करते थे उतना ही समय वे पार्टी की रणनीतियां तैयार करने में व्यतीत करते थे. राष्ट्र की सेवा के लिए अपना घर छोड़ देने वाला वह वड़नगर का बालक एक और लंबी छलांग लगाने ही वाला था, हालांकि उसके अपने लिए यह अपने देशवासियों और महिलाओं के चेहरे पर मुस्कान लाने के लिए चल रही अपनी यात्रा की निरंतरता में महज एक छोटा सा मोड़ था. कैलाश मानसरोवर की एक यात्रा के बाद नरेंद्र मोदी ने गुजरात भाजपा में महासचिव के रूप में काम करना प्रारंभ कर दिया.

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Last Updated : Sep 17, 2021, 1:18 AM IST

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