पटना :यह अजीब संयोग है कि जातीय जनगणना (Cast Census) की जिस राजनीति को बिहार नेपीएम नरेंद्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) के पास जाकर रखा है, वह नरेंद्र मोदी के लिए बहुत आसान नहीं है.
बिहार में जाति जनगणना को लेकर दिल्ली पहुंची सियासत ने आज बिहार के मन को प्रधानमंत्री के सामने रख दिया. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व में सभी दलों के प्रतिनिधियों ने अपनी बात को पीएम के सामने रखी और कहा कि 'जाति जनगणना जरूरी है'. हालांकि राजनैतिक विश्लेषक मानते हैं कि जाति जनगणना नीतीश कुमार की वह सियासी चाल है जो बीजेपी को जाल में फंसाने के लिए चली गई है. यह उनकी राष्ट्रीय राजनीति में ताजपोशी का भी माध्यम बन सकता है क्योंकि यह सिर्फ बिहार की बात नहीं बल्कि पूरे देश की बात है. हालांकि केंद्र ने अभी कोई स्पष्ट निर्णय नहीं लिया है.
इस बीच जातीय जनगणना की मांग तो बिहार ने कर दी है, लेकिन जिस चीज को बिहार ने मांग बनाकर नरेंद्र मोदी को भेजा था वह नरेंद्र मोदी के गले की हड्डी बनी हुई है. अब उससे बीजेपी कैसे निकल कर बाहर आएगी और मोदी क्या बयान देंगे? यह राजनीति में दिए गए बयानों की सुचिता और उस पर टिके रहने पर आकर टिक गया है. माना जा रहा है कि इस मुद्दे पर बीजेपी का स्टैंड आने वाले दिनों में न सिर्फ बिहार बल्कि पूरे देश की राजनैतिक दिशा तय करने वाला होगा.
चुनावी वादे आएंगे याद
3 मार्च 2014 को मुजफ्फरपुर में पीएम नरेंद्र मोदी की हुंकार रैली थी. रैली में ही रामविलास पासवान बीजेपी के साथ खड़े हुए थे. तब प्रधानमंत्री के दावेदार नरेंद्र मोदी ने यह कहा था कि 'जान दे दूंगा लेकिन जाति की राजनीति नहीं करूंगा'.
अब सवाल यह उठ रहा है कि जिस जाति की राजनीति को लेकर पूरा बिहार नरेंद्र मोदी से मिलने गया था, उसमें सभी जाति के ही लंबरदार हैं. सब लोगों की अपनी जाति पर गोलबंदी और पकड़ है. उनकी सियासत भी बिहार में करने का एकाधिकार इनके पास है. सवाल ये है कि अब ऐसे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी क्या करेंगे?
बिहार में जाति की राजनीति
बिहार से जो दल नरेंद्र मोदी से मिला है उसमें खुद नीतीश कुमार 'दलित-महादलित' की राजनीति को लेकर बिहार में खूब चर्चा बटोरी हैं. जीतन राम मांझी की बात की जाए तो एक खास समुदाय के सबसे बड़े नेता के तौर पर अपनी पहचान बनाना चाहते हैं.
तेजस्वी यादव अपने पिता के राजनीतिक सियासत के उस विरासत को संभाले हुए हैं जिसमें 'भूरा बाल साफ करो' जैसा नारा ही दिया गया. आज की राजनीति में जाति की बात करके मंत्री की कुर्सी तक पहुंचे मुकेश सहनी 'मल्लाह' समाज की बात करते हैं. कांग्रेस का एमवाई समीकरण सबसे लंबे समय तक उसे गद्दी पर रखा है.