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आपदा को अवसर में बदलने वाले प्रमोद बैठा का पीएम मोदी ने 'मन की बात' में किया जिक्र

प्रमोद बैठा और उनकी पत्नी संजू देवी ने बताया कि दिल्ली से घर आकर इस काम के शुरुआती दौर में कठिनाइयों का सामना करना पड़ा. धीरे-धीरे सफलता मिली. प्रमोद के अनुसार जब कारखाना लगाने में पैसे की कमी आई तो उसकी पत्नी ने उसका साथ दिया.

डिजाइन फोटो
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Published : Feb 28, 2021, 3:05 PM IST

बेतिया: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज 74वीं बार देश से 'मन की बात' की. देश को संबोधित करते हुए पीएम ने एक बार फिर से आत्मनिर्भर भारत पर जोर दिया. इस दौरान उन्होंने बिहार के बेतिया के मझौलिया प्रखंड के रतनमाला पंचायत के रहने वाले प्रमोद बैठा का जिक्र किया.

प्रधानमंत्री ने कहा कि मीडिया के जरिए ही उन्हें इसकी जानकारी मिली कि वो दिल्ली की फैक्ट्री में बतौर टेक्नीशियन काम करते थे. लेकिन लॉकडाउन के दौरान घर गए और वहां खुद एलईडी बल्व बनाने की फैक्ट्री शुरू कर दी और कुछ ही वक्त में फैक्ट्री वर्कर से फैक्ट्री ऑनर तक का सफर तय कर लिया.

मन की बात

जिले के मझौलिया प्रखंड के रतनमाला पंचायत के रहने वाले प्रमोद बैठा और उनकी पत्नी संजू देवी ने आत्मनिर्भरता का उदाहरण पेश किया है. दोनों पति-पत्नी लॉकडाउन से पहले दिल्ली में मजदूरी का काम करते थे. आज यह अपने प्रदेश में उद्यमी बन गए हैं.

मजदूर से बन गए मालिक
बगैर सरकारी मदद के प्रमोद बैठा मजदूर से मालिक बन गए. प्रमोद बैठा ने दर्जनों युवाओं को रोजगार भी दिया है. प्रतिदिन प्रमोद बैठा के इस छोटे से कारखाने में 1000 एलईडी बल्ब बनकर तैयार होता है. प्रमोद बैठा पूर्वी चंपारण और पश्चिमी चंपारण के दुकानों में एलईडी बल्ब की सप्लाई करते हैं. उनके इस कारोबार में उनकी पत्नी भी साथ देती हैं.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट

पत्नी और दोस्तों ने की मदद
प्रमोद बैठा और उनकी पत्नी संजू देवी ने बताया कि दिल्ली से घर आकर इस काम के शुरुआती दौर में कठिनाइयों का सामना करना पड़ा. धीरे-धीरे सफलता मिली. प्रमोद के अनुसार जब कारखाना लगाने में पैसे की कमी आई तो उसकी पत्नी ने उसका साथ दिया. स्वयं सहायता समूह से 25,000 लोन ले लिया. साथ में कुछ सगे संबंधी मित्रों ने भी खुले हाथ से उसे उधार दिया. जिसकी बदौलत पूंजी तैयार कर उसने 3 लाख 50 हजार रुपए की लागत से बल्ब फैक्ट्री लगा ली.

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मजदूर भी हैं खुश
वहीं बल्ब के इस कारखाने में काम कर रहे मजदूरों का कहना है कि लॉकडाउन के दौरान हम लोग अपने घर लौटे थे. अब गांव में ही हमें रोजगार मिल गया. अब हम अपना घर छोड़कर दूसरे प्रदेश में काम करने नहीं जाएंगे. हमें जो मजदूरी दूसरे प्रदेश में मिलता था. आज हमें यहीं पर मिल रहा है. हम यहां पर काम कर के खुश हैं

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