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हिंसा के आरोपियों की संपत्ति को गिराने के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका

जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने हिंसा जैसी आपराधिक घटनाओं में शामिल होने के संदिग्ध आरोपियों के घरों को बुलडोजर से गिराने के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की है. साथ ही अदालत से अपील की है कि मंत्री व विधायकों को भी ऐसी घटना के लिए तब तक किसी को भी अपराधी करार न दे जब तक कि कोर्ट का फैसला न आ जाए.

जमीयत उलमा-ए-हिंद के अध्यक्ष अरशद मदनी
जमीयत उलमा-ए-हिंद के अध्यक्ष अरशद मदनी

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Published : Apr 18, 2022, 10:31 AM IST

नई दिल्ली:जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने हिंसा जैसी आपराधिक घटनाओं में शामिल होने के संदिग्ध व्यक्तियों के घरों को बुलडोजर से गिराने के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की है. जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने सुप्रीम कोर्ट से भारत के संघ और सभी राज्यों को उचित निर्देश जारी करने का आग्रह किया है कि किसी भी आपराधिक कार्यवाही में किसी भी आरोपी के खिलाफ कोई स्थायी त्वरित कार्रवाई नहीं की जाए और निर्देश जारी करें कि आवासीय आवास को दंडात्मक रूप में ध्वस्त नहीं किया जाए.

जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष अरशद मदनी ने एक ट्वीट में कहा, “जमियत उलेमा-ए-हिंद ने बुलडोजर की खतरनाक राजनीति के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है, जो अल्पसंख्यकों खासकर मुसलमानों को भाजपा शासित राज्यों में अपराध की रोकथाम की आड़ में नष्ट करने की मुहिम शुरू की गई है. उन्होंने अपनी याचिका में कहा कि हाल ही में कई राज्यों में सरकारी प्रशासन द्वारा आवासीय और व्यावसायिक संपत्तियों को तोड़ने की घटनाओं में इजाफा हुआ है, जो कथित रूप से दंगों जैसी आपराधिक घटनाओं में शामिल व्यक्तियों के प्रति दंडात्मक उपाय के रूप में बताया जाता है.

हिंसा के कथित कृत्यों के जवाब में कई राज्यों में प्रशासन ऐसे घटनाओं में शामिल लोगों के घरों को बुलडोजर से गिरा रहा है. मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री और गृह मंत्री सहित कई मंत्री और विधायक इस तरह के कृत्यों की वकालत करते हुए बयान दिए हैं और विशेष रूप से दंगों के मामले में अल्पसंख्यक समूहों को उनके घरों और व्यावसायिक संपत्तियों को नष्ट करने की धमकी दी है. याचिका के अनुसार इस तरह के उपायों का सहारा लेना संवैधानिक लोकाचार और आपराधिक न्याय प्रणाली के साथ-साथ आरोपी व्यक्तियों के अधिकारों का भी उल्लंघन है.

याचिकाकर्ता नें सुप्रीम कोर्ट से अनुरोध किया है कि सरकारों द्वारा इस तरह के उपाय हमारे देश की आपराधिक न्याय प्रणाली को कमजोर करते हैं. इस तरह की घटनाओं से अदालतों की भूमिका को नकारने की कोशिश है. इस तरह के एक्शन से घटनाओं का पूर्व-परीक्षण और परीक्षण चरण सहित कानूनी प्रक्रिया बाधित हो रही है. इसलिए ऐसी घटनाओं को भविष्य में रोकने के लिए तत्काल कार्रवाई की आवश्यकता है.

जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने निर्देश मांगा है कि दंडात्मक उपाय के रूप में किसी भी वाणिज्यिक संपत्ति को ध्वस्त नहीं किया जा सकता है. इसने अदालत से यह भी मांग की कि वह पुलिस कर्मियों को सांप्रदायिक दंगों और ऐसी स्थितियों से निपटने के लिए विशेष प्रशिक्षण देने का निर्देश जारी करें. याचिकाकर्ता ने यह निर्देश जारी करने का भी आग्रह किया कि मंत्रियों, विधायकों और आपराधिक जांच से असंबद्ध किसी को भी अपराधी करार देने से बचें जब तक कि कोर्ट का फैसला न आ जाए.

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