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संसद में विधेयक लाये जाने के बाद निरर्थक हो जाएंगी कृषि कानूनों को चुनौती देने संबंधी SC की याचिकाएं?

कृषि कानूनों को वापस लेने के फैसले को लेकर मोदी सरकार सुर्खियों में है. ताजा घटनाक्रम में इन विवादास्पद कृषि कानूनों के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिकाओं के भविष्य को लेकर चर्चा हो रही है. कानून के जानकारों का मानना है कि केंद्र सरकार जैसे ही संसद के शीतकालीन सत्र में कानूनों को वापस लेने की प्रक्रिया पूरी करेगी, सुप्रीम कोर्ट में कृषि कानूनों को चुनौती देने वाली याचिकाएं स्वत: बेमानी हो जाएंगी. जानिए क्या होगी न्यायिक प्रक्रिया.

सुप्रीम कोर्ट
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Published : Nov 19, 2021, 8:19 PM IST

नई दिल्ली :पीएम मोदी ने कृषि कानूनों को वापस लेने के फैसले की घोषणा की है. अब इन विवादास्पद कृषि कानूनों के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिकाओं को लेकर यह कहा जा रहा है कि उच्चतम न्यायालय में कृषि कानूनों को चुनौती देने वाली याचिकाएं 'निरर्थक' हो जाएंगी. ऐसा संसद द्वारा नया कानून पारित करने या इन्हें निरस्त करने के बारे में आवश्यक अध्यादेश जारी होने के बाद होगा.

वरिष्ठ अधिवक्ता एवं संवैधानिक कानून विशेषज्ञ राकेश द्विवेदी ने कहा, 'याचिकाएं निरर्थक हो जाएंगी. लेकिन संसदीय कानूनों को एक अध्यादेश के जरिये या एक अधिनियम के जरिये निरस्त करना होगा, ना कि मौखिक बयान के जरिए. अध्यादेश जारी करने के बाद या दिसंबर में, संसद में इन्हें (विवादास्पद कृषि कानूनों को) निरस्त करने के लिए एक कानून बनाने पर याचिकाएं निरर्थक हो जाएंगी.'

उन्होंने कहा कि अब शीर्ष अदालत को इन कानूनों के विवादास्पद प्रावधानों की संवैधानिक वैधता पर विचार करने की जरूरत नहीं पड़ेगी. यह मामला सुनवाई के लिए पीठ के समक्ष आने पर पक्षकारों के वकीलों को इन कृषि कानूनों को निरस्त किये जाने के बारे में उसे अवगत कराना होगा ताकि वह इन याचिकाओं को वापस लिया मानते हुए इन्हें खारिज करने संबंधी उचित आदेश पारित कर सके.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार को गुरु नानक जयंती के अवसर पर राष्ट्र को संबोधित करते हुए घोषणा की कि सरकार ने कृषि कानूनों को निरस्त करने का फैसला किया है और प्रदर्शनकारी किसानों से घर लौटने की अपील की.

उल्लेखनीय है कि शीर्ष न्यायालय ने राष्ट्रीय जनता दल के राज्यसभा सदस्य मनोज झा, द्रमुक से राज्यसभा सदस्य तिरूचि शिवा और छत्तीसगढ़ किसान कांग्रेस के राकेश वैष्णव की याचिकाओं पर 12 अक्टूबर 2020 को केंद्र को नोटिस जारी किया था तथा किसान आंदोलन से अनुपयुक्त रूप से निपटने को लेकर बाद में सरकार की आलोचना की थी.

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गौरतलब है कि तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबडे की अध्यक्षता वाली पीठ ने इस साल 12 जनवरी को अगले आदेश तक कृषि कानूनों के क्रियान्वयन पर रोक लगा दी थी. न्यायालय ने प्रदर्शनकारी किसानों की शिकायतों को सुनने के लिए चार सदस्यीय एक समिति भी गठित की थी, जिसने मार्च में उच्चतम न्यायालय को अपनी रिपोर्ट सौंप दी.

कृषि कानूनों को चुनौती देने वाली याचिकाओं के अलावा, दिल्ली के बाहर सड़कों को अवरुद्ध करने को लेकर भी किसानों के खिलाफ कई याचिकाएं न्यायालय में लंबित हैं.

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अब, ये याचिकाएं भी निरर्थक हो सकती हैं क्योंकि किसानों के घर लौटने पर सड़कों से नाकेबंदी हट सकती है.

उल्लेखनीय है कि केंद्र के तीन कृषि कानूनों को निरस्त करने और अपनी फसल के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की गारंटी की मांग करते हुए काफी संख्या में किसान दिल्ली की सीमाओं पर नवंबर 2020 से डेरा डाले हुए हैं और प्रदर्शन कर रहे हैं.

(पीटीआई-भाषा)

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