हैदराबाद :जैसे-जैसे प्लास्टिक का उपयोग बढ़ता जा रहा है, वैसे-वैसे समय के साथ हवा, पानी और जमीन में कचरा भी बढ़ता जा रहा है. नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूट्रिशन (एनआईएन) के हालिया अध्ययन चिंताजनक हैं, जो बताते हैं कि मानव शरीर में प्लास्टिक के प्रवेश से प्रजनन संबंधी समस्याएं हो सकती हैं (Plastic Death Knell For Environment).
इसके अलावा, प्लास्टिक निर्माण में उपयोग किए जाने वाले रसायन बीपीए के बारे में भी चिंता जताई गई है, जो गर्भवती महिलाओं के शरीर में प्रवेश करने पर भविष्य में नर संतानों में शुक्राणु की गुणवत्ता को प्रभावित करती हैं. आज प्लास्टिक उत्पाद और उनसे जुड़े दुष्प्रभाव सर्वव्यापी हो गए हैं.
एक केंद्रीय मंत्री का ये कहना कि देश में हर गाय और भैंस के पेट में कम से कम 30 किलोग्राम प्लास्टिक होता है. ये घातक कचरे के प्रसार का एक ज्वलंत उदाहरण है. माइक्रोप्लास्टिक्स और नैनोप्लास्टिक्स बड़े पैमाने पर जलीय जीवन में जमा हो रहे हैं, जिससे इनका सेवन करने वालों के लिए स्वास्थ्य समस्याएं पैदा हो रही हैं.
तटीय निवासियों के फेफड़ों, लिवर, प्लीहा (spleen) और किडनी में माइक्रोप्लास्टिक्स की उपस्थिति कैंसर के बढ़ते खतरे की चेतावनी के साथ चिकित्सा विशेषज्ञों के लिए गहरी चिंता का विषय है. पिछले शोधों ने पहले ही चेतावनी दे दी है कि कैसे प्लास्टिक कचरा, चाहे वह हवा में हो या भूजल में, मानव शरीर में घुसपैठ करता है और कोशिकाओं और डीएनए को नुकसान पहुंचाता है.
नीदरलैंड के वैज्ञानिकों ने पुष्टि की है कि माइक्रोप्लास्टिक्स मानव रक्त वाहिकाओं में प्रवेश कर गए हैं, जबकि एक हालिया चीनी अध्ययन ने हार्ट में उनकी उपस्थिति की पुष्टि की है. नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूट्रिशन के ताजा शोध निष्कर्ष से संकेत मिलता है कि प्लास्टिक कचरा भ्रूण के विकास में बाधा बन सकता है, जो उपचारात्मक कार्रवाई की तत्काल आवश्यकता पर प्रकाश डालता है.
आज हम जिस प्लास्टिक का सामना कर रहे हैं उसकी उत्पत्ति लगभग एक शताब्दी पहले लियो बेकलैंड के रासायनिक प्रयोगों से हुई थी. यह अब कॉफी कप से लेकर कंप्यूटर तक विभिन्न रूपों में मौजूद है. विश्लेषणों का अनुमान है कि 2050 तक हमारे महासागरों में मछलियों की तुलना में अधिक प्लास्टिक कचरा होगा, जिससे प्रदूषण का खतरा बढ़ जाएगा.