गया : गया में पितृपक्ष (Pitru Paksha 2021) के तहत पिंडदान शुरू हो गया है. बिहार की धार्मिक नगरी गया में त्रैपाक्षिक कर्मकांड करने वाले पिंडदानी आज दूसरा पिंडदान (Second Of Pinddan In Gaya) कर रहे हैं. पितृपक्ष के दूसरे दिन प्रेतशिला में पिंडदान करने का महत्व है. यहां पिंडदान करने से जो पितर प्रेत योनि में रहते है, उन्हें मुक्ति मिलती है. प्रेतशिला को भूतों का पहाड़ कहा जाता है. मान्यता है कि इस पहाड़ पर आज भी भूत और प्रेत का वास रहता है.
प्रतिपदा तिथि का श्राद्ध या प्रौष्ठप्रदी श्राद्ध के दिन उन लोगों का श्राद्ध किया जाता है, जिनका स्वर्गवास किसी भी महीने के कृष्ण या शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को हुआ हो. ऐसा कहा जाता है कि इस दिन श्राद्ध कर्म करने वालों को धन-सम्पत्ति में वृद्धि होती है. वहीं पूर्वजों को प्रेत योनि से मुक्ति मिलती है.
दूसरे दिन तिल और सत्तू के तर्पण का विधान है. श्राद्ध कर्म के दौरान इसे सम्मलित करना चाहिए. तिल और सत्तू अर्पित करते हुए पूर्वजों से प्रार्थना करनी चाहिए. सत्तू में तिल मिलाकर अपसव्य से दक्षिण-पश्चिम होकर, उत्तर, पूरब इस क्रम से सत्तू को छिंटते हुए प्रार्थना करना चाहिए कि हमारे कुल में जो कोई भी पितर प्रेतत्व को प्राप्त हो गए हैं, वो सभी तिल मिश्रित सत्तू से तृप्त हो जाएं. फिर उनके नाम से जल चढ़ाकर प्रार्थना करने का महत्व है. ब्रह्मा से लेकर चिट्ठी पर्यन्त चराचर जीव, इस जल-दान से तृप्त हो जाएं. ऐसा करने से कुल में कोई प्रेत नहीं रहता है.
दरअसल, प्रेतशिला को लेकर एक दंत कथा है कि ब्रह्मा जी सोने का पहाड़ ब्राह्मण को दान में दिया था. सोने का पहाड़ दान में देने के बाद ब्रह्मा जी ब्राह्मणों के पास शर्त रखे थे. यदि आपलोग किसी से दान लेंगे, तो ये सोने का पर्वत पत्थर का पर्वत हो जाएगा. राजा भोग ने छल से पंडा को दान दे दिया. जिसके बाद ब्रह्मा जी ने इस पर्वत को पत्थर का पर्वत बना दिया था.