गया :बिहार की धार्मिक नगरी गया (Religious City Gaya) मोक्षधाम के नाम से पूरे विश्व में प्रसिद्ध है. गयाजी में पिंडदान (Pind Daan in Gayaji) करने का बड़ा महत्व है. जिससे देश और विदेश से भी सनातन धर्मावलंबी यहां पिंडदान करने आते हैं. ऐसी मान्यता है कि पितृपक्ष के दौरान पिंडदान करने से पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है.
वहीं, जिंदा रहते हुए भी यहां लोग खुद का भी पिंडदान करने आते हैं, ताकि उनके शरीर त्यागने के बाद आत्मा को शांति मिल सके. देश के कोने-कोने से आकर कुछ लोग खुद का और कुछ लोग अपने पूर्वजों की आत्मा की शान्ति के लिए विधि-विधान से पिंडदान करते हैं.
बता दें कि मोक्षदायिनी फल्गु नदी के तट पर पितरों की आत्मा की शांति के लिए पिंडदान और तर्पण पितृपक्ष में किया जाता है. यहां पर लोग अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए पिंडदान करते हैं. लेकिन कुछ लोग ऐसे भी हैं, जो जीवित रहते हुए खुद का पिंडदान करते हैं. जिसे आत्म पिंडदान कहा जाता है. गयाजी में आत्म पिंडदान भगवान जर्नादन के मंदिर में किया जाता है और भगवान जर्नादन को पुत्र मानकर आत्म पिंडदान का विधि विधान है.
जनार्दन भगवान मन्दिर के पुजारी आकाश गिरि बताते हैं कि भगवान जर्नादन का मंदिर भस्मकूट पर्वत पर है. जो कि 1000 साल पुराना है. यहां जीवित लोगों के लिए तिल रहित पिंडदान किया जाता है. भगवान जनार्दन को पिता, पुत्र और पौत्र मान कर उनके हाथ में बिना तिल का पिंडदान दिया जाता है. इस मंदिर में साधु-संन्यासी अपना पिंडदान करने आते हैं.
उन्होंने बताया कि जो अपने घर से निराश हैं. जिनको लगता है कि उनकी मृत्यु के बाद उनका कोई पिंडदान नहीं करेगा, ऐसे लोग भी यहां पिंडदान करने आ रहे हैं. 2019 की बात करें तो 20 लोगों ने यहां पिंडदान किया था. इस साल अभी 1 व्यक्ति ने किया है.
यहां लोग किसी को बताकर पिंडदान नहीं करते, मंदिर का दरवाजा खुला रहता है. जिसको करना होता है, वह पंडित लेकर आते हैं और पिंडदान करके चले जाते हैं. वहीं, उन्होंने बताया कि जो व्यक्ति आत्म पिंडदान करता है, वह प्रेतयोनी में चला जाता है. वह व्यक्ति किसी भी शुभ कार्य में हिस्सा नहीं ले सकता.