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Places of Worship Act: सुप्रीम कोर्ट में PIL, प्लेसस ऑफ वर्शिप एक्ट को दी गई चुनौती

सुप्रीम कोर्ट में एक नई जनहित याचिका दायर की गई है. जिसमें पूजा के स्थान अधिनियम 1991 को चुनौती दी गई है. कहा गया है कि केंद्र सरकार के पास 15 अगस्त 1947 को पूर्वव्यापी कट ऑफ तारीख तय करने की कोई विधायी क्षमता नहीं थी.

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Published : May 28, 2022, 2:48 PM IST

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई एक जनहित याचिका में तर्क दिया गया है कि 1192 से इस्लामी शासन शुरू हुआ और उसके बाद तक विदेशी शासन जारी रहा. प्लेसस ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 किसी भी पूजा स्थल के रूपांतरण पर रोक लगाता है और किसी भी पूजा स्थल के धार्मिक चरित्र को बनाए रखने के लिए स्वतंत्रता प्रदान करता है, जैसा कि 15 अगस्त 1947 को यह अस्तित्व में था.

जनहित याचिका मथुरा के धार्मिक गुरु देवकीनंदन ठाकुर ने दायर की है और तर्क दिया कि 1192 में मोहम्मद गोरी ने पृथ्वीराज चौहान को हराकर इस्लामी शासन स्थापित किया और विदेशी शासन 15 अगस्त 1947 तक जारी रहा. इसलिए कट ऑफ की तारीख वह तारीख होनी चाहिए जब गोरी द्वारा भारत पर विजय प्राप्त की गई थी. साथ ही 1192 से पहले मौजूद हिंदुओं, जैनियों और सिखों के धार्मिक स्थलों को बहाल किया जाना चाहिए.

याचिकाकर्ता का तर्क है कि केंद्र के पास उन अमानवीय बर्बर कृत्यों को वैध बनाने की कोई शक्ति नहीं है. इस्लामी शासन आक्रमण से आया और आक्रमणकारियों ने सैकड़ों पूजा स्थलों को नष्ट कर दिया. हिंदुओं को इस्लाम की ताकत दिखाने के लिए तीर्थयात्राओं को नष्ट कर दिया गया. सभी को शासक के हुक्म का पालन करना पड़ा. हिंदू, जैन, सिख, बौद्ध, देश के मूल निवासी हैं. वे 1192 से 1947 तक अपने जीवन स्वतंत्रता और सम्मान के अधिकार से वंचित रहे. सवाल यह है कि क्या स्वतंत्रता के बाद भी वे इसी के लिए मजबूर रहेंगे.

कात्यायन का हवाला देते हुए याचिकाकर्ता ने कहा कि मंदिर की संपत्ति कभी नहीं खोती है. भले ही वह सैकड़ों वर्षों तक अजनबियों द्वारा भोगी जाती है. समय बीतने के बाद अपने अधिकारों को खोने का कोई सवाल हो ही नहीं सकता. उनका तर्क है कि भगवान कृष्ण और भगवान राम दोनों समान रूप से पूजे जाते हैं और दोनों ही भगवान विष्णु के अवतार हैं. इसलिए दोनों के साथ समान व्यवहार किया जाना चाहिए.

याचिकाकर्ता का कहना है कि हिंदू कई दशकों से भगवान कृष्ण के जन्मस्थान की बहाली के लिए लड़ रहे हैं और शांतिपूर्ण सार्वजनिक आंदोलन कर रहे हैं. अगर उन्हें न्यायिक उपाय का लाभ उठाने की अनुमति नहीं मिलती तो वे हिंसक हो सकते हैं. संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 21, 25, 26, 29 के उल्लंघन में अधिनियम की धारा 2,3 और 4 को समाप्त करते हुए याचिकाकर्ता ने निर्देश मांगा है शीर्ष अदालत से कानून को शून्य घोषित किया जाए. क्योंकि यह क्रूर हमलावरों द्वारा अवैध रूप से बनाए गए स्थानों को मान्य करने का प्रयास करता है.

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