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Published : May 13, 2021, 9:44 PM IST

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सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका, कोरोना टीकों का डेटा सार्वजनिक करने की मांग

सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई है जिसमें सरकार, आईसीएमआर, सीरम इंस्टीट्यूट और भारत बायोटेक से कोरोना वैक्सीन के क्लिनिकल ट्रायल से जुड़ी जानकारी मांगी गई है. सुप्रीम कोर्ट से अपील की गई है कि सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 की धारा 4 के तहत, इंटरनेट और जनसंचार के अन्य माध्यमों से सरकार अपने रिकॉर्ड जनता के सामने सार्वजनिक करे.

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नई दिल्ली : टीकाकरण पर राष्ट्रीय तकनीकी सलाहकार समूह (NTAGI) के पूर्व सदस्य डॉ. जैकब पुलियाल ने सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका (पीआईएल) दायर की है. याचिका में सरकार, भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर), सीरम इंस्टीट्यूट और भारत बायोटेक को निर्देश देने की मांग की गई है. कोर्ट से अपील की गई है कि टीकों से जुड़े सभी घटक कोरोना वैक्सीन के ट्रायल के दौरान प्रत्येक चरण में एकत्र डेटा और टीकाकरण के बाद प्रतिकूल प्रभाव से जुड़ी जानकारी मुहैया कराएं.

याचिकाकर्ता ने सेंट्रल ड्रग्स स्टैंडर्ड कंट्रोल ऑर्गनाइजेशन (CDSCO) से वैक्सीन पर चर्चा के लिए विषय विशेषज्ञ समिति और एनटीएजीआई के बीच हुई बैठक के विवरण का खुलासा करने की अपील भी की है. उन्होंने ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया (डीसीजीआई) से भी टीकों के आपातकालीन उपयोग को लेकर अनुमति देने और आवेदन खारिज किए जाने को लेकर हुए फैसलों का विवरण भी मांगा है. इसके अलावा टीकों के उत्पादकों की ओर से आवेदन के साथ डीसीजीआई को दिए गए दस्तावेजों की जानकारी भी मांगी गई है.

जनहित याचिका दायर करने वाले की दलील है कि मांगी गई जानकारी यह पता लगाने के लिए आवश्यक है कि आबादी का एक निश्चित भाग टीकों से हो रहे प्रतिकूल प्रभावों के दृष्टिकोण से अतिसंवेदनशील है या नहीं. याचिकाकर्ता का कहना है कि मांगी गई जानकारी से यह भी निर्धारित होगा कि विभिन्न आयु समूह के लोगों में किस तरीके के प्रतिकूल प्रभाव हो रहे हैं.

याचिकाकर्ता का कहना है कि अब तक भारत में विकसित किए गए टीकों के परीक्षणों को लेकर किसी भी तरह के डेटा सार्वजनिक नहीं किया गया है. याचिकाकर्ता ने उल्लेख किया है कि डेनमार्क में कोविशील्ड पर प्रतिबंध लगाया गया है क्योंकि इसका मूल्यांकन हो रहा है. ऐसे में भारत की बड़ी आबादी को लगाए जा रहे टीकों से जुड़े आंकड़े दर्शाने चाहिए.

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याचिकाकर्ता का तर्क है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन और आईसीएमआर दोनों इस बात का समर्थन करते हैं कि पूर्ण प्रकटीकरण (complete disclosure) होना चाहिए क्योंकि इसके बिना, डॉक्टर, मरीज, चिकित्सा नियामक ऐसा निर्णय नहीं ले सकते, जिसमें पूरी सूचना हो.

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