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पहले से कम बच्चे पैदा कर रहे हैं मुसलमान, मगर अभी भी बर्थ रेट अन्य धर्मों से ज्यादा है

भारत में दशकों से यह राजनीतिक चिंता जताई जा रही है कि कई साल बाद हिंदू की आबादी मुस्लिम के बराबर हो जाएगी. बाद में हिंदू भारत में अल्पसंख्यक हो जाएंगे. समय-समय पर नेताओं की बयानबाजी से धार्मिक आबादी का मुद्दा चुनावी भी होता रहा है. प्यू रिसर्च सेंटर ने अपनी स्टडी में कई खुलासे किए हैं, पढ़ें रिपोर्ट

pew research center study
pew research center study

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Published : Sep 25, 2021, 7:48 PM IST

हैदराबाद :अमरीकी थिंक टैंक प्यू रिसर्च सेंटर (Pew Research Centre) की एक रिपोर्ट के मुताबिक, 90 के दशक के बाद भारत में रहने वाले सभी धर्मों के लोग अपनी मर्जी से कम बच्चे पैदा कर रहे हैं. हालांकि सभी धार्मिक समूहों की तुलना में मुस्लिम अभी भी ज्यादा बच्चे पैदा कर रहे हैं. इस रिपोर्ट के आते ही कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने इसे लपक लिया. उन्होंने कहा कि अब तक यह भ्रम फैलाया जा रहा था कि मुसलमानों की संख्या बढ़ती जा रही है.

अमेरिका में बच्चे पैदा करने की दर 1.7 और ब्रिटेन की 1.6 है. संयुक्त अरब अमीरात में यह दर 1.4 और कतर में 1.8 है.

रिपोर्ट में पारसी समुदाय का आंकड़ा नहीं :हिंदू-मुसलमान की आबादी पर दिग्विजय सिंह के विचार आते ही वॉशिंगटन डीसी स्थित गैर-लाभकारी प्यू रिसर्च की ओर से जारी रिपोर्ट के तथ्यों को कुरेदा गया. आखिर फैक्ट क्या है ? भारत की धार्मिक आबादी कैसे घट-बढ़ रही है. राजनीति के एंगल यह है कि हिंदू किस रफ्तार से कम हो रहे हैं और मुसलमान का ग्रोथ रेट क्या है? प्यू रिसर्च सेंटर ने यह स्टडी हर 10 साल में होने वाली जनगणना और राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS) के आंकड़ों के आधार की है. प्यू की स्टडी में हिंदू, मुसलमान, सिक्ख, ईसाई, बौद्ध और जैन तो शामिल हैं, पारसी का जिक्र नहीं है. भारत में विभिन्न कारणों से पारसी समुदाय की आबादी लगातार कम हो रही है.

बदल रही है भारत की धार्मिक आबादी :भारत की पहली जनगणना 1951 और 2011 के बीच देश की कुल आबादी में तीन गुनी से ज्यादा बढ़ोतरी हुई है. 1951 में भारत की जनसंख्या 36.1 करोड़ थी, जो साल 2011 आते-आते 120 करोड़ हो गई. हिंदुओं की आबादी 1951 में 30.4 करोड़ थी जो 96.6 करोड़ पहुंच गई, यह कुल जनसंख्या का 79.8 फीसद है. इस अवधि में मुसलमानों की आबादी 3.5 करोड़ से बढ़कर 17.2 करोड़ हो गई. मुसलमान भारत की कुल आबादी में 14.2 फीसद हिस्सेदारी रखते हैं. ईसाइयों की आबादी 80 लाख से बढ़कर 2.8 करोड़ हो गई. 2011 की जनगणना में पंजाब में सिखों की आबादी 1.6 करोड़ थी. ईसाई, सिख, बौद्ध और जैन की जनसंख्या में सामूहिक भागीदारी 6 प्रतिशत की है.

वर्ष 1947 में आजादी के बाद से वर्ष 2020 तक भारत में मुसलमानों की जनसंख्या 7 गुना के आसपास बढ़ी है

महिलाओं के प्रजनन दर में आई ओवरऑल कमी :प्यू रिसर्च ने1992 से 2015 के बीच के डेटा के हवाले से बताया है कि सभी धार्मिक समूहों में प्रजनन दर में कमी आई है. 1951 में भारतीय महिलाओं का प्रजनन दर 5.9 थी, जो 1992 में 3.4 हो गई. अब भारतीय महिलाएं औसतन 2.2 बच्चे पैदा करती हैं. 1992 में एक मुस्लिम महिला के 4 से ज्यादा बच्चे होते थे लेकिन यह आंकड़ा घटकर 2015 में 2 के करीब आ गया है. इसी तरह हिंदू महिलाओं का प्रजनन दर 3 से घटकर 2.1 रह गया है. इसी तरह ईसाई धर्म की महिलाएं 2.9 नहीं बल्कि औसतन 2 बच्चे पैदा करती है. बौद्ध महिलाओं को प्रजनन दर 2.9 से घटकर 1.7, सिख 2.4 से घटकर 1.6 और जैन 2.4 से घटकर 1.2 हो गया है.

भारत का फ्यूचर कैसा रहेगा, क्‍या कहती है रिपोर्ट?

प्यू रिसर्च सेंटर ने अनुमान लगाया है कि अगर सभी धर्मों की बच्चे पैदा करने की दर में ज्यादा बदलाव नहीं हुआ तो वर्ष 2020 में भारत की कुल आबादी 140 करोड़ थी. वर्ष 2050 तक जनसंख्या लगभग 170 करोड़ हो जाएगी. तब हिंदुओं की आबादी 121 करोड़ और मुसलमान की जनसंख्या 31 करोड़ तक पहुंच जाएगी. यानी वर्ष 2050 तक हिंदू आबादी का शेयर 76.4 प्रतिशत और मुसलमानों का 18.35 प्रतिशत हो जाएगा.

माना जा रहा है कि शिक्षा की दर बढ़ने के कारण महिलाओं में जागरूकता आई है.

क्यों कम हो रही है प्रजनन दर :एक्सपर्ट मानते हैं कि महिलाओं के शिक्षित होने का असर भी प्रजनन दर पर पड़ा है. आम तौर पर भारतीय महिलाओं की बच्चे पैदा करने की औसत आयु भी अब 25 साल हो गई है. माना जा रहा है कि 2021 के जनसंख्या गिनती के बाद सही आंकड़े आएंगे. हालांकि इस बीच भारत में जनसंख्या विस्फोट से किसी ने इनकार नहीं किया है. प्रजनन दर में कमी के प्रोत्साहित करने या कड़े कानून से ही बेलगाम बढ़ती आबादी पर अंकुश लगाया जा सकता है.

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