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समलैंगिक विवाह पर 17 अक्टूबर के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका

समलैंगिक विवाहों को कानूनी मान्यता देने की मांग करने वाले याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट से अपने फैसले की 'समीक्षा करने और उसे सही करने का आग्रह किया है. याचिका में कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले में समलैंगिक लोगों को अधिकार से वंचित रखने वाले फैसले में स्पष्ट त्रुटियां हैं. यह फैसला आत्म-विरोधाभासी और स्पष्ट रूप से अन्यायपूर्ण है. पढ़ें पूरी खबर... Same Sex Marriage, Supreme Court, Review petition

Same Sex Marriage
सुप्रीम कोर्ट. (फाइल फोटो)

By ETV Bharat Hindi Team

Published : Nov 2, 2023, 7:51 AM IST

नई दिल्ली:समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने से सुप्रीम कोर्ट के इनकार के खिलाफ एक समीक्षा याचिका दायर की गई है. समलैंगिक विवाह मामले में याचिकाकर्ताओं में से एक, उदित सूद ने याचिका दायर की है. याचिका में शीर्ष अदालत को अपने फैसले की समीक्षा करने और उसे सही करने का आग्रह किया गया है. क्योंकि मामले में निर्णय स्पष्ट त्रुटियों से ग्रस्त, विरोधाभासी और स्पष्ट रूप से अन्यायपूर्ण है.

भारत के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने 17 अक्टूबर को समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने से इनकार कर दिया था. संविधान पीठ ने सर्वसम्मत फैसले में कहा कि शादी करना कोई मौलिक अधिकार नहीं है.

हालांकि, CJI और न्यायमूर्ति संजय किशन कौल ने समलैंगिक साझेदारी को मान्यता देने की वकालत की. उन्होंने LGBTQIA+ व्यक्तियों के अधिकारों की सुरक्षा के लिए भेदभाव-विरोधी कानूनों पर भी जोर दिया. सूद की याचिका में कहा गया है कि बहुमत का फैसला इस बात को नजरअंदाज करता है कि विवाह, मूल रूप से, एक लागू करने योग्य सामाजिक अनुबंध है. ऐसे अनुबंध का अधिकार सहमति देने में सक्षम किसी भी व्यक्ति के लिए उपलब्ध है. किसी भी आस्था के वयस्क इसमें शामिल हो सकते हैं.

लोगों का कोई भी समूह दूसरे के लिए यह परिभाषित नहीं कर सकता कि विवाह का क्या अर्थ है. कोई भी अनुबंध, यहां तक की कारावास जैसी सजा भी किसी वयस्क के विवाह करने के मौलिक अधिकार को कम नहीं कर सकती है. याचिका में तर्क दिया गया कि फैसले में समलैंगिक समुदाय की ओर से सामना किए जाने वाले भेदभाव को स्वीकार किया गया है. लेकिन भेदभाव के कारण को दूर नहीं किया गया है.

विधायी विकल्प समान लिंग वाले जोड़ों को समान अधिकारों से वंचित करके उन्हें मानव से कमतर मानते हैं. याचिका में यह भी कहा गया कि सरकार के रुख से पता चलता है कि उत्तरदाताओं का मानना है कि एलजीबीटीक्यू लोग 'एक समस्या' हैं. याचिका में कहा गया है कि बहुमत के फैसले की समीक्षा जरूरी है. याचिका में कहा गया है कि बहुमत का फैसला प्रभावी रूप से समलैंगिक भारतीयों को बेईमान जीवन जीने के लिए मजबूर करता है.

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याचिका में कहा गया है कि यह महत्वपूर्ण है कि शीर्ष अदालत वर्तमान समीक्षा याचिका को स्वीकार करे और अपने फैसले को सही करे जो याचिकाकर्ताओं और उनके मौलिक अधिकारों को सामाजिक नैतिकता और राजनीति से असंवैधानिक रूप से प्रभावित करता है.

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