नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गई है, जिसमें तलाक-ए-हसन और ऐसी ही अन्य सभी तलाक की प्रक्रियाओं को असंवैधानिक घोषित करने का निर्देश देने की मांग की गई है, जो कि मनमाने और तर्कहीन तरीके से की जाती हैं. याचिका में मनमाने तरीके से किए जाने वाले तलाक का विरोध करते हुए कहा गया है कि यह संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 21, 25 का उल्लंघन है.
याचिका में केंद्र को सभी नागरिकों के लिए तलाक के तटस्थ आधार और तलाक की एक समान प्रक्रिया के लिए दिशानिर्देश तैयार करने का निर्देश देने की भी मांग की गई है. याचिका एक मुस्लिम महिला द्वारा दायर की गई है, जिसने एकतरफा एक्सट्रा ज्यूडिशियल तलाक-ए-हसन का शिकार होने का दावा किया है. याचिका अधिवक्ता अश्विनी कुमार दुबे के माध्यम से दायर की गई है. याचिकाकर्ता ने इस साल फरवरी में दिल्ली महिला आयोग को एक शिकायत दर्ज कराई थी और अप्रैल में एक प्राथमिकी भी दर्ज कराई गई थी. हालांकि महिला ने दावा किया कि पुलिस ने उसे बताया कि शरीयत के तहत एकतरफा तलाक-ए-हसन की अनुमति है.
याचिका में तलाक- ए-हसन को एकतरफा, मनमाना और समता के अधिकार के खिलाफ बताया गया है. याचिकाकर्ता के मुताबिक ये परंपरा इस्लाम के मौलिक सिद्धांत में शामिल नहीं है. याचिका में कहा गया है कि मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत) एप्लीकेशन एक्ट, 1937, जो कि शादी से संबंधित मामलों के लिए है, उसे लेकर एक गलत धारणा बनी हुई है और तलाक-ए-हसन और ऐसे अन्य सभी रूपों को मंजूरी देना गलत है. इसमें कहा गया है कि एकतरफा एक्स्ट्रा-ज्यूडिशियल तलाक जैसे प्रक्रिया विवाहित मुस्लिम महिलाओं के मौलिक अधिकारों के लिए बेहद हानिकारक है और यह भारत के संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 21 और 25 के साथ ही नागरिक और मानवाधिकारों पर अंतर्राष्ट्रीय कानूनों का भी उल्लंघन करता है.