नई दिल्ली : भाजपा सदस्य और अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय द्वारा सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गई है. जो तर्क देते हैं कि धर्मार्थ बंदोबस्ती अधिनियम 1890 मनमाना, तर्कहीन और अनुच्छेद 14,15 और 26 के विपरीत है. क्योंकि यह मस्जिदों व चर्च की वित्तीय और प्रबंधकीय गतिविधियों को प्रतिबंधित नहीं करता है.
याचिका में यह घोषणा करने की मांग की गई है कि हिंदुओं, जैनियों, बौद्धों और सिखों को मुसलमानों और ईसाइयों की तरह धार्मिक संपत्तियों के स्वामित्व, अधिग्रहण और प्रशासन के समान अधिकार हैं और राज्य इसे कम नहीं कर सकता है.
याचिकाकर्ता का कहना है कि हिंदुओं, सिखों, जैनियों और बौद्धों की समस्या बहुत बड़ी है क्योंकि राज्य सरकारें उनके धार्मिक ढांचे को नियंत्रित करती हैं. जिससे मंदिरों और गुरुद्वारों की स्थिति दयनीय हो जाती है क्योंकि इसका प्रबंधन भ्रष्ट राज्य के अधिकारियों द्वारा किया जाता है.
यह कुप्रबंधन मंदिर प्रशासन के सभी पहलुओं तक फैला हुआ है और तिरुपति गुरुवयूर, सिद्धिविनायक, वैष्णो देवी जैसे समृद्ध मंदिरों का उपयोग सत्तारूढ़ राजनीतिक दलों की जेब भरने के लिए किया जाता है. केरल, तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश में जो हो रहा है, उसे दिन के उजाले में लूट के रूप में वर्णित किया जा सकता है.
कुछ घटनाओं का हवाला देते हुए याचिका में कहा गया है कि जब मंदिर के रखरखाव की बात आती है तो राज्य पूरी तरह से अक्षम हो जाते हैं. हिंदू, जैन, बौद्ध और सिखों पर मुसलमानों व ईसाइयों के विपरीत गरीबों की पर्याप्त सामाजिक सेवा नहीं करने का आरोप लगाया जाता है.