हैदराबाद : 5 अगस्त, 2019 में अनुच्छेद 370 को निरस्त कर जम्मू-कश्मीर राज्य के विशेष दर्जे को समाप्त करना और इसे दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित करने के निर्णय को अधिकांश राजनीतिक दलों ने स्वीकारा था. जबकि जम्मू-कश्मीर में लोगों के लिए समान रूप से भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार द्वारा विश्वासघात के रूप में देखा जा रहा है.
विशेष दर्जा खत्म किए जाने के बाद पिछले दो सालों में, जम्मू-कश्मीर ने केंद्र सरकार के कदम का विरोध करने वाले राजनीतिक नेताओं की गिरफ्तारी के उच्च राजनीतिक नाटक को देखा है. साथ ही, बाद में शांति की वापसी का दावा किया गया है.
जम्मू-कश्मीर के राजनीतिक नेताओं द्वारा केंद्र सरकार पर लोकतंत्र की भावना को दबाने का आरोप लगाने और व्यवस्था को फिर से स्थापित करने के प्रतिवादों के बीच, जम्मू-कश्मीर के राजनीतिक नेताओं के साथ प्रधानमंत्री की बैठक आश्चर्यचकित करने वाली थी. 24 जून को जम्मू-कश्मीर के राजनीतिक दलों के नेताओं के साथ पीएम की बैठक अप्रत्याशित थी.
हालांकि, केंद्रीय गृह मंत्री का पूर्ण राज्य का दर्जा बहाल करने के लिए केंद्र सरकार की दृढ़ प्रतिबद्धता का दावा, इस विश्वास की कमी को पाटने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम के रूप में देखा गया, जैसा कि जम्मू-कश्मीर के अधिकांश नेताओं ने पीएम के साथ बैठक में इस मुद्दे को उठाया.
जम्मू ड्रोन हमले की टाइमिंग पर सवाल
पीएम की बैठक को जम्मू-कश्मीर और नई दिल्ली के बीच विश्वास की कमी को पाटने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम के रूप में देखा गया था, लेकिन 27 जून को जम्मू में भारतीय वायुसेना के स्टेशन पर ड्रोन हमले द्वारा इसे यकीनन चुनौती दी गई है.
वायुसेना अड्डे पर हमले को जम्मू-कश्मीर के पुलिस महानिदेशक (DGP) दिलबाग सिंह ने आतंकवाद कृत्य करार दिया है, जो कि भारत में अपनी तरह का पहला हमला है.
इस 'आतंकवादी हमले' का समय जम्मू-कश्मीर में शांति कायम करने से जुड़ी कठिनाइयों को समझने के संदर्भ में महत्वपूर्ण है. उन संदर्भों में से एक जिसके माध्यम से केंद्र सरकार अनुच्छेद 370 और 35A को निरस्त करने के अपने कदम को वैध बनाने का प्रयास करती है, वह है- जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद और आतंकवादी घटनाओं का बढ़ना. यह केंद्र सरकार द्वारा किए गए दावे में सच्चाई का एक तत्व है.
इन अटकलों के विपरीत कि अनुच्छेद 370 और 35A द्वारा प्रदान विशेष दर्जे को समाप्त करने से हिंसा और आतंकवाद में वृद्धि होगी, केंद्र सरकार के निरंतर प्रयास इन पर काफी हद तक अंकुश लगाने में सक्षम रहे हैं.
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राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित करने के बाद, जम्मू-कश्मीर में सुरक्षा बलों ने कई आतंकवादियों का खात्मा किया है, जबकि उनमें से कुछ ने मुख्यधारा में लौटने के लिए आत्मसमर्पण भी किया, जिससे घाटी में हिंसा और आतंकवाद को कम करने में मदद मिली है.
हिंसा और आतंकवाद के स्तर में कमी सरकारों द्वारा शांति का दावा करने का एक प्रमुख तरीका रहा है. इस तरह की समझ से केंद्र सरकार के दावे जम्मू-कश्मीर में व्यवस्था और शांति बहाल करने की दिशा में काम करने के मामले में बेमानी नहीं लगते हैं.
शांति का दावा करना कठिन कार्य
हालांकि, इससे जुड़ी कई जटिलताओं को देखते हुए, शांति का दावा करना केंद्र की किसी भी सरकार के लिए एक कठिन कार्य है. इनमें एक है- सभी को एक साथ लाना या दो महत्वपूर्ण हितधारकों को छोड़ देना, पाकिस्तान और अलगाववादी.