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थोक सामानों की उंची दरें लगातार चौथे महीने बढ़त पर, अर्थशास्त्रियों के लिए पहेली

भारत की थोक मुद्रास्फीति जुलाई में लगातार चौथे महीने 10% से अधिक के ऊंचे स्तर पर बनी हुई है. नीति निर्माताओं के लिए यह चिंता का विषय है क्योंकि इस साल अप्रैल से पहले थोक मुद्रास्फीति पिछले 11 वर्षों में कभी भी दोहरे अंकों को नहीं छू पाई है. ईटीवी भारत के वरिष्ठ संवाददाता कृष्णानंद त्रिपाठी की रिपोर्ट.

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Published : Aug 16, 2021, 8:18 PM IST

नई दिल्ली :भारत की थोक मुद्रास्फीति जुलाई में लगातार चौथे महीने 10% से अधिक के ऊंचे स्तर पर बनी हुई है. अर्थशास्त्री मौजूदा स्थिति के लिए वैश्विक कारकों जैसे कि कमोडिटी की बढ़ती कीमतों, कच्चे तेल की कीमतों और आपूर्ति की कमी और पेट्रोल-डीजल पर कर की उच्च घटनाओं जैसे घरेलू कारकों के मिश्रण को दोषी ठहराते हैं.

वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय द्वारा सोमवार को जारी नवीनतम आंकड़ों के अनुसार थोक मूल्य सूचकांक (WPI) जुलाई में 11.16% पर था, मई के उच्च स्तर से गिरावट जब यह 13.11% और जून में 12% से अधिक था. अर्थशास्त्रियों के अनुसार यह आंशिक रूप से आधार प्रभाव के कारण है क्योंकि पिछले साल अप्रैल-जुलाई की अवधि के दौरान थोक मूल्य सूचकांक नकारात्मक था.

हालांकि मुद्रास्फीति को दोहरे अंकों में रखने का यही एकमात्र कारण नहीं है क्योंकि पिछले 10 वर्षों में WPI दो बार नकारात्मक क्षेत्र में रहा है. नवंबर 2014 व जून 2016 में भी यह नकारात्मक था लेकिन इसके बाद के वर्षों में मुद्रास्फीति दो अंकों में नहीं आई. इंडिया रेटिंग्स एंड रिसर्च के प्रधान अर्थशास्त्री सुनील सिन्हा ने कहा कि मुख्य अंतर वैश्विक कमोडिटी की कीमतें हैं, विशेष रूप से कच्चे तेल की कीमतें.

मैक्रो-इकोनॉमिक इंडिकेटर्स पर बारीकी से नजर रखने वाले सिन्हा का कहना है कि पेट्रोलियम उत्पादों पर लगातार उच्च करों ने मामले को और खराब कर दिया है क्योंकि पेट्रोल की खुदरा कीमतें कई जगहों पर 100 रुपये प्रति लीटर के निशान को पार कर रही हैं. सुनील सिन्हा जैसे अर्थशास्त्रियों का कहना है कि कच्चे तेल की ऊंची कीमतों के अलावा वैश्विक स्तर पर जिंसों की ऊंची कीमतें भी घरेलू अर्थव्यवस्था को प्रभावित कर रही हैं क्योंकि खाद्य तेल और तिलहन में आग लगी हुई है.

सिन्हा का कहना है कि हाल ही में कमजोर मांग की स्थिति के बावजूद मुद्रास्फीति में मजबूती चिंताजनक है. उन्होंने कहा कि हालांकि आपूर्ति पक्ष के व्यवधानों का कीमतों पर कुछ प्रभाव पड़ा हो सकता है लेकिन जैसे-जैसे निर्माता अपने उत्पादन की कीमतों में बढ़ती इनपुट लागत को बढ़ा रहे हैं, थोक विनिर्माण और मुख्य मुद्रास्फीति दोनों निरंतर उच्च मुद्रास्फीति दिखा रहे हैं.

उच्च मुद्रास्फीति के घटक

जुलाई 2021 लगातार तीसरा महीना है जब थोक विनिर्माण और कोर मुद्रास्फीति क्रमशः 11.20% और 10.82% पर दोहरे अंकों में है. सिन्हा कहते हैं कि इसके परिणामस्वरूप 22 प्रमुख विनिर्माण समूहों में से आठ समूहों- खाद्य, कपड़ा, कागज और कागज उत्पाद, रासायनिक और रासायनिक उत्पाद, रबर और प्लास्टिक उत्पाद, बुनियादी धातु, गढ़े हुए धातु उत्पाद और फर्नीचर जुलाई में दोहरे अंकों में मुद्रास्फीति देखी गई.

घरेलू कारक

सुनील सिन्हा कहते हैं कि दो कारक हैं- खाद्य और कच्चा तेल जो भारतीय संदर्भ में मुद्रास्फीति को बढ़ा रहे हैं. उन्होंने कहा कि हालांकि कच्चे तेल में उबाल है लेकिन खाने के मोर्चे पर कुछ राहत नजर आ रही है. आज जारी नवीनतम आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार थोक खाद्य मुद्रास्फीति पिछले महीने 5% से नीचे गिर गई.

इस साल मई में यह 8.25% और जून में 6.66% थी और फिर जुलाई में घटकर 4.46% हो गई. अनाज की कीमतों ने जुलाई में भी गिरावट की प्रवृत्ति को बनाए रखा है और घटकर 2.79% पर आ गया है. दालों के थोक मूल्य के मामले में मुद्रास्फीति पांच महीने के अंतराल के बाद घटकर एकल अंक पर आ गई.

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आधिकारिक आंकड़ों से पता चला कि जुलाई के महीने में फलों और सब्जियों की कीमतों में भी गिरावट दर्ज की गई. अर्थात् मानसून के मौसम की शुरुआत के कारण बेहतर आपूर्ति के कारण ऐसा हुआ. सुनील सिन्हा ने कहा कि हमारा मानना ​​है कि चालू वित्त वर्ष की तीसरी तिमाही (अक्टूबर-दिसंबर अवधि) तक थोक मुद्रास्फीति ऊंची बनी रहेगी.

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