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मानसिक तनाव से जूझ रहे हैं कोविड-19 के मरीजों की देखभाल करने वाले लोग - मरीजों की देखभाल करने वाले लोग

रोगियों अथवा किसी की भी देखभाल करना कभी आसान नहीं होता है. बात जब ऐसी महामारी की हो जहां देखभाल करने वाले खुद ही अस्वस्थ हों या उनके संक्रमण की चपेट में आने का खतरा हो तो न केवल शारीरिक बल्कि भावनात्मक और मानसिक तनाव भी बढ़ जाता है.

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Published : Jun 24, 2021, 8:02 PM IST

नई दिल्ली :कोविड-19 महामारी की दूसरी भयावह लहर के दौरान देश के कई हिस्सों में संक्रमण फैलने पर बीमार लोगों की देखभाल करने वालों पर दबाव बढ़ गया. चाहे वे पति-पत्नी हों, बच्चे हों या माता-पिता और वे अब भी इस बीमारी के तनाव से जूझ रहे हैं. खुद अस्वस्थ होने के बावजूद देखभाल करने वाले लोगों को हफ्तों तक अपने परिवार के मरीजों के लिए खाना पकाना पड़ा और घर की साफ-सफाई करनी पड़ी और सबसे बड़ी बात उन्हें सब कुछ इतनी सावधानी से करना पड़ा कि वे खुद संक्रमित न हो जाएं.

महामारी की दूसरी लहर के दौरान देश भर में लोग अस्पताल में बिस्तरों, दवाईयों और चिकित्सकीय ऑक्सीजन की कमी से जूझ रहे थे. ऐसे में कोरोना से संक्रमित होने के बावजूद कई लोगों ने अपने परिवार के ऐसे सदस्यों की देखभाल की, जिनकी हालत गंभीर थी. अपने पिता मधुकर के कोरोना वायरस से संक्रमित पाए जाने के बाद 34 वर्षीय भूषण शिंदे ने कहा कि कोविड-19 से संक्रमित मरीज की देखभाल करने के दौरान सबसे बड़ी चुनौती उथल-पुथल की स्थिति में भी दिमाग शांत रखना है. बीमारी के संक्रामक होने के कारण संक्रमित व्यक्ति को पृथकवास में रहना पड़ता है, जिसके कारण कोई दोस्त या परिवार के सदस्य के मदद न कर पाने के कारण मानसिक दबाव बढ़ता है.

मुंबई में रहने वाले भूषण ने कहा कि उन्हें और उनके पिता दोनों को ही बुखार, खांसी और बदन दर्द के हल्के लक्षण दिखने शुरू हुए थे. लेकिन जल्द ही उनके 65 वर्षीय पिता की हालत बिगड़ने लगी. बाद में उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया. उनके लिए सबसे तनावपूर्ण वह दौर रहा जब उन्हें रेमडेसिविर इंजेक्शन के लिए भागदौड़ करनी पड़ी और वह भी न केवल अपने पिता के इलाज के लिए बल्कि अपने 83 वर्षीय अंकल और एक रिश्तेदार के लिए भी जो उसी वक्त बीमार पड़े थे. उन्होंने कहा कि रेमडेसिविर की व्यवस्था करने की भागदौड़ में मुझे अपनी शारीरिक और मानसिक स्थिति को दरकिनार रखना पड़ा और इसका असर मेरे शरीर पर पड़ा. इस बात को दो महीने बीत चुके हैं लेकिन संघर्ष अब भी जारी है.

भूषण और मधुकर कोविड-19 के बाद होने वाली स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों से जूझ रहे हैं. उन्होंने कहा कि एक दिन आपको अच्छा महसूस होता है और फिर अगले दो-तीन दिन आप बीमार और कमजोर महसूस करते हो. कई बार मुझे लगता है कि यह बीमारी मेरे धैर्य की परीक्षा ले रही है. कोविड-19 विशेषज्ञ सुचिन बजाज सलाह देते हैं कि जब हालात ठीक हो जाएं तो देखभाल करने वाले लोगों को आराम करना चाहिए. दिल्ली में उजाला सिग्नस ग्रुप हॉस्पिटल्स के संस्थापक बजाज ने कहा कि महामारी की दूसरी लहर के दौरान ऐसे कई जगह देखने को मिला, जहां कोरोना वायरस से संक्रमित मरीजों की देखभाल करने वाले स्वयं संक्रमित हो गए और फिर उनकी देखभाल परिवार के अन्य संक्रमित मरीजों को करनी पड़ी.

ऐसे कई जगह हुआ, जहां पूरा परिवार ही संक्रमित हो गया. बजाज ने कहा कि जरूरत से ज्यादा काम का बोझ मत डालो और याद रखिए कि आप कोई सुपरमैन या सुपरवुमैन नहीं हैं. सबसे ज्यादा यह याद रखिए कि इसके लिए खुद को जिम्मेदार न ठहराए. दवा कंपनी मर्क द्वारा सितंबर-अक्टूबर 2020 में किए एक अध्ययन के अनुसार, करीब 39 प्रतिशत भारतीय युवा आबादी ने पहली बार महामारी के दौरान बीमार लोगों की देखभाल की. कोविड-19 के मरीजों की देखभाल करने वालों में अधिकतर युवा शामिल थे. ऐसे कार्य करने का उनके पास कोई अनुभव नहीं था. यह महामारी अचानक आई, जिसके लिए उन्हें तैयारी करने का भी समय नहीं मिला.

मनोचिकित्सक ज्योति कपूर ने कहा कि बीमारी से जूझने का संघर्ष कहीं ज्यादा वक्त तक रह सकता है. उन्होंने कहा कि इसका देखभाल करने वाले लोगों पर कहीं ज्यादा मनोवैज्ञानिक असर पड़ा है. कोविड मरीजों में तनाव बढ़ने, पैनिक अटैक और मनोविकृति के मामले बढ़ गए हैं. मरीजों की देखभाल करने वाले कई लोगों ने अपने हरसंभव प्रयासों के बावजूद इस महामारी के कारण अपने प्रियजनों को खो दिया है और चिकित्सकों ने उन्हें सलाह दी है कि इसके लिए वह खुद को जिम्मेदार नहीं ठहराएं.

मनोचिकित्सक ने कहा कि मनोवैज्ञानिक तनाव को कम करने के लिए मुझसे सलाह लेने वाली 26 साल की एक महिला ने करीब एक माह पहले कोविड-19 के कारण अपने पिता को खो दिया. लेकिन अब भी अस्पतालों में चिकित्सा उपकरणों की आवाज सुनकर वह घबरा जाती है. दिल्ली में रहने वाली मानसी अरोड़ा और उनके पति अक्सर इस बारे में बात किया करते थे कि बूढ़े होने पर वे किस तरह से अपने माता-पिता की सेवा करेंगे. लेकिन कोविड-19 उनके परिवार पर मुसीबतों का पहाड़ बनकर टूटा. मानसी के ससुर और सास दोनों ही कोरोना से संक्रमित हो गए. इसके बाद मानसी और उनके पति भी कोरोना से संक्रमित हो गए.

दोनों के लिए वे 20 दिन बेहद तनावपूर्ण रहे जब मानसी के ससुर को दिल्ली में एक कोविड केयर केन्द्र में भर्ती कराया गया और उसके बाद एक अस्पताल में ले जाया गया. मानसी ने बताया कि कोविड केयर केन्द्र में दवाईयां, ऑक्सीजन और भोजन समेत सभी सुविधाएं होने के बावजूद ऑक्सीजन पर निर्भर मरीजों को भी कई कार्य खुद ही करने पड़ते थे. मानसी ने कहा कि इस दौरान हम कई दिनों तक नहीं सोए थे. स्वाद और गंध चले जाने के कारण भोजन करना भी एक चुनौती थी.

लेकिन उस समय हमारे लिए अपने माता-पिता का स्वास्थ्य सर्वोच्च प्राथमिकता थी. मेरे पति भी कोविड केयर केन्द्र ही भर्ती हो गए और मैं घर से आवश्यक सामान लाकर उन्हें दिया करती थी. करीब 100 किलोग्राम वजन का ऑक्सीजन सिलिंडर भी हमें खुद से ही खींच कर ले जाना पड़ता था. इसके बाद सबसे भयावह दौर उस समय आया जब मेरे ससुर को अस्पताल में भर्ती कराने के लिए हमें कड़ी मशक्कत करनी पड़ी. कोलकाता के रहने वाले रवि शर्मा और उनके माता-पिता भी इस लहर के दौरान कोरोना वायरस से संक्रमित हो गए.

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25 वर्षीय रवि ने कहा कि मेरे माता-पिता को कुछ मीटर चलने में भी परेशानी हो रही थी, यह देखना मेरे लिए बहुत ही मुश्किल था. यदि मैं स्वयं अस्वस्थ नहीं होता तो उनकी और अधिक मदद कर सकता था. केन्द्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय की ओर से बृहस्पतिवार को जारी आंकड़ों के मुताबिक देश में कोविड-19 के कारण अब तक 3,91,981 लोगों की मौत हो चुकी है.

(पीटीआई-भाषा)

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