दिल्ली

delhi

ETV Bharat / bharat

Electoral Bond Scheme: बिहार में चुनावी बांड के जरिए पॉलिटिक्स में पहुंचते हैं लोग, करोड़ों रुपए दान कर बन जाते MP-MLA

बिहार में की राजनीति चुनावी बांड पर टिकी है. कोई भी चंदा देकर विधायक और सांसद (What is electoral bond?) बन सकता है. बिहार की कई राजनीतिक पार्टी के पास करोड़ों रुपए के फंड हैं, जिसका कोई प्रमाण नहीं है. सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की सुनवाई हो रही है कि इसे सार्वजिनक क्या जाए या नहीं. जानें चुनावी बांड क्या है?

By ETV Bharat Hindi Team

Published : Oct 31, 2023, 10:20 PM IST

Etv Bharat
Etv Bharat

पटनाःसुप्रीम कोर्ट में चुनावी बांड को लेकर सुनवाई चल रही है, लेकिन जानकर आश्चर्य होगा कि बिहार के कई राज्यसभा, लोकसभा, विधानसभा और विधान परिषद के सदस्य चुनावी बांड से MP MLA बने हैं. बिहार जैसी राज्यों में राजनीतिक अपेक्षा रखने वाले नेता राजनीति में बांड के माध्यम से एंट्री करते हैं. यह लिस्ट काफी लंबी है, लेकिन यही सच्चाई है. इसी चुनावी बांड पर इनदिनों बहस चल रहा है.

चुनावी बांड क्या है?गुप्त चंदा, जिसे राजनीतिक भाषा में चुनावी बांड कहा जाता है, इसकी पारदर्शिता को लेकर सवाल खड़े हो रहे हैं. यह मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच चुका है. सुप्रीम कोर्ट की 5 सदस्य कमेटी इस मामले में सुनवाई कर रही है. सुनवाई के बाद ही तय हो पाएगा कि गुप्त चंदा को सार्वजनिक किया जाए या नहीं.

यह बांड सही या गलतः ये गुप्त चंदा राजनीतिक पार्टियों के लिए कितना सही या गलत है? राजनीतिक पार्टियों के फंड में कितने पैसे हैं? सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद ही तय हो पाएगा. चुनावी बांड को लेकर देश भर में बहस हो रही है कि राजनीतिक पार्टियों को अपने फंड्स पारदर्शी तरीके से दिखाना चाहिए या नहीं.

12 हजार करोड़ का सोर्स नहींःCJI डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली कमेटी में याचिका की सुनवाई हो रही है. 2018 में बांड सिस्टम पर सवाल खड़ा किया गया था. देश की राजनीतिक पार्टी CPI और एडीआर ने इस याचिका को दाखिल किया था. याचिका में कहा गया कि चुनावी बांड आम लोगों से लेकर कंपनियों तक के लिए शुरू किया गया था, लेकिन राजनीतिक पार्टियों के पास 12 हजार करोड़ से ऊपर की फंडिंग हो चुकी है. जिसका कोई प्रमाण नहीं है.

चुनावी बांड कोई भी खरीद सकता हैःचुनावी बांड SBI के कुछ चुनिंदा ब्रांच में उपलब्ध होते हैं. इसमें 1 हजार, 10 हजार, 1 लाख, 10 लाख और 1 करोड़ का होता है. इसे कोई भी व्यक्ति, कंपनी, व्यापारी खरीदकर मनपसंद पार्टी को डोनेट कर सकता है. खरीदने वाले को टैक्स में रिबेट मिलता है. खरीदने के 15 दिन के अंदर किसी पार्टी को नहीं देता है तो यह एक्सपायर हो जाएगा. सभी राशि पीएम कोष में चली जाएगी. हर 3 महीने के पहले 10 दिनों तक इसे खरीदा जा सकता है. जनवरी, अप्रैल, जुलाई और अक्टूबर के पहले 10 दिनों तक खरीदा जा सकता है।

चुनावी बांड से राजनीति में एंट्री:चुनावी बांड को लेकर बिहार की राजनीतिक दलों में बहुत ज्यादा गहमा-गहमी नहीं है. इसका वजह यह है कि यहां दान करने वाले उद्योगपतियों-व्यवसायियों की संख्या काफी काम है. जिनकी राजनीतिक महत्वाकांक्षा होती है, वह इसी चुनावी बांड के माध्यम से राजनीति में एंट्री करते हैं. इसके बाद अचानक से किसी हाउस के मेंबर बन जाते हैं.

दानकर्ताओं के लिए होगी मुश्किलःवरिष्ठ पत्रकार संजय कुमार बताते हैं कि यह बहस अभी सुप्रीम कोर्ट में चल रही है लेकिन, इसे इसलिए उठाया गया है क्योंकि जब सरकार यह कह रही है कि सब कुछ पारदर्शी तरीके से हो रहा है तो आखिर इलेक्ट्रोल बांड को पारदर्शी क्यों न बनाया जाए. इसी मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही है.

"यदि चुनावी बांड को पारदर्शित तरीके से आम लोगों के सामने लाया जाएगा तो दानकर्ताओं में हिचक होगी. वजह यह है कि दानकर्ता गुप्त तरीके से दो-तीन पार्टियों में पैसा डोनेट करता है. कोई व्यवसाय यदि किसी दल को ज्यादा पैसा देता है और किसी दल को कम पैसा देता है तो ऐसे में उसके लिए मुश्किल खड़ी हो जाएगी." - संजय कुमार, वरिष्ठ पत्रकार

राजनीतिक महत्वाकांक्षा वाले देते हैं चंदाः संजय कुमार कहते हैं कि बिहार जैसे राज्य में चुनावी बांड के माध्यम से ही कोई अचानक विधायक-सांसद बन जाता है. क्योंकि, यहां इंडस्ट्री कम है, बड़े बिजनेस मैन कम हैं. यहां चंदा वही लोग देते हैं, जिनकी राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं होती है. किसी खास पार्टी को चंदा देते हैं और उसके माध्यम से वह संसदीय जीवन में प्रवेश करते हैं.

56 फीसदी राशि का JDU ने नही दिया सोर्स:रिपोर्ट के मुताबिक 2020 में बिहार विस चुनाव हुआ था. अक्टूबर में चुनावी बांड जारी हुए थे, लेकिन इलेक्ट्रोल बांड अप्रैल या जुलाई में जारी नहीं किए गए थे. साल 2021-22 में सत्तारूढ़ दल जदयू की कुल आय 86.55 करोड़ हुई थी. जिसमें 56% ऐसी राशि थी जिसका कोई सोर्स नहीं था. हालांकि जदयू की यह कमाई दूसरे दलों से पांचवें नंबर है. बीजेपी ने उस साल सबसे ज्यादा चुनावी बांड प्राप्त किए थे. आरजेडी को 2.50 करोड रुपए मिले थे. जिसका स्रोत नहीं है.

यह भी पढ़ेंःSC On Electoral Bonds: सुप्रीम कोर्ट से वरिष्ठ वकील ने कहा, चुनावी बॉन्ड राजनीतिक दलों के बारे में नागरिकों की आरटीआई का उल्लंघन है

यह भी पढ़ेंःएसबीआई की चुनिंदा शाखाओं में कल से मिलेंगे electoral bonds, जानें क्या है अंतिम तारीख

यह भी पढ़ेंःचुनावी बांड के संभावित दुरुपयोग पर सुप्रीम कोर्ट ने जताई चिंता, फैसला सुरक्षित

ABOUT THE AUTHOR

...view details