नई दिल्ली : अयोध्या में राम मंदिर तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट पर विपक्षी पार्टियों ने एक जमीन की खरीद बिक्री में गड़बड़झाले का आरोप लगाया, तो विश्व हिन्दू परिषद भी इस पूरे मामले में मंदिर ट्रस्ट के बचाव के लिए सामने आई. सबसे पहले समाजवादी पार्टी और फिर आम आदमी पार्टी ने आरोप लगाए कि दो करोड़ रुपये की कीमत की एक जमीन को ट्रस्ट ने 18.5 करोड़ में खरीदा. बाद में कांग्रेस पार्टी भी इस विवाद में कूद पड़ी और मंदिर ट्रस्ट के साथ साथ भाजपा और उसकी सरकार पर भी सवाल खड़े कर दिए.
बेवजह तूल दे रहे हैं विपक्ष दल
पूरे मामले पर ईटीवी भारत ने दिल्ली में विश्व हिन्दू परिषद के राष्ट्रीय प्रवक्ता विजय शंकर तिवारी से बातचीत की. विजय शंकर तिवारी का कहना है कि पूरे मामले को कुछ विपक्षी पार्टियों के नेता बेवजह तूल दे रहे हैं, जबकि जमीन की खरीद में पारदर्शिता का पूरा ध्यान रखा गया है.जिस कुसुम पाठक और हरीश पाठक से दो करोड़ में उस जमीन को सुल्तान अंसारी और रवि मोहन तिवारी ने खरीदी वह सौदा 2011 में ही हो गया था, लेकिन तब उस सौदे में हुए एग्रीमेंट को रजिस्टर नहीं कराया गया था. लिहाजा जमीन की रजिस्ट्री भी उस समय नहीं कराई गई थी.
लोगों के पहुंचने से बड़ी कीमत
उन्होंने कहा कि राम मंदिर पर जब सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय आया और उसके बाद गठित ट्रस्ट द्वारा मंदिर निर्माण कार्य शुरू किया गया तब तक अयोध्या और उसके आस पास के क्षेत्र में देश भर से जमीन खरीदने के लिए लोग पहुंचने लगे. इसके कारण अयोध्या में जमीनों की कीमत में अप्रत्याशित बढ़ोतरी भी हुई है. जिस जमीन को सुल्तान अंसारी और रवि मोहन तिवारी ने 18 मार्च को कुसुम पाठक और हरीश पाठक से रजिस्ट्री कराई उसको उसी दिन अंसारी और तिवारी ने राम जन्मभूमि ट्रस्ट को रजिस्ट्री कर दी. इसलिए दोनों रजिस्ट्री के समय में केवल कुछ मिनटों का फर्क है.
कोई गड़बड़ नहीं है
दोनों की रजिस्ट्री में बतौर प्रत्यक्षदर्शी ट्रस्ट के सदस्य अनिल मिश्रा और अयोध्या के मेयर ऋषिकेश उपध्याय हैं, जिनके हस्ताक्षर भी कागज़ात में हैं. इस पर विजय शंकर तिवारी ने कहा कि जमीन की रजिस्ट्री में यह एक अनिवार्य औपचारिकता होती है कि दो लोग इसके गवाह बने. ऐसे में जब मेयर और एक ट्रस्टी वहां मौजूद थे, तो उन्होंने दोनों ही रजिस्ट्री में प्रत्यक्षदर्शी के हस्ताक्षर किए. 'यह अपने आप में पारदर्शिता का एक बड़ा उदाहरण है कि वहां मौजूद लोग ही दोनों रजिस्ट्री में प्रत्यक्षदर्शी हैं. यदि कोई घोटाले की बात होती, तो दोनों रजिस्ट्री के बीच समय के अंतर और प्रत्यक्षदर्शी अलग अलग होने का ध्यान रखा जाता. लेकिन ऐसा कुछ नहीं किया गया क्योंकि इस कार्य में कहीं कोई गड़बड़ी है ही नहीं.'