श्रीनगर :गिरफ्तारी के दो साल बाद पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (PDP) नेता वाहिद उर रहमान पारा की रिहाई का रास्ता साफ हो गया है. जम्मू-कश्मीर और लद्दाख हाईकोर्ट ने बुधवार को उनकी जमानत दे दी. हाईकोर्ट की बेंच ने 27 अप्रैल और 13 मई को मामले की सुनवाई की थी. 21 मई को दलीलें पूरी होने के बाद कोर्ट ने आदेश सुरक्षित रखा लिया था. बुधवार को हाईकोर्ट ने स्पेशल एनआईए कोर्ट (special NIA court) के फैसले को दरकिनार करते हुए पीडीपी नेता को जमानत दे दी.
वाहिद उर रहमान पारा की जमानत के फैसले पर पीडीपी प्रेसिजेंड महबूबा मुफ्ती ने संतोष जताया है. महबूबा मुफ्ती ने ट्वीट किया कि अंतत: लगभग दो वर्षों के बाद वहीद पारा को जमानत मिल गई और मुझे उम्मीद है कि वह जल्द ही एक स्वतंत्र व्यक्ति के रूप में बाहर निकलेंगे. इस तरह के दृढ़ विश्वास और दृढ़ संकल्प के साथ अपना केस लड़ने के लिए अपने वकील शारिक को धन्यवाद देना चाहती हूं. इससे पहले, 2021 में, स्पेशल एनआईए कोर्ट (special NIA court) ने आरोपों को गंभीर और जघन्य बताते हुए दो बार पीडीपी नेता रहमान पारा की जमानत याचिका खारिज कर दी थी. आतंकवाद के आरोपों का सामना कर रहे पीडीपी नेता ने विशेष एनआईए अदालत में जमानत अर्जी खारिज किए जाने के बाद हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था.
बता दें कि एनआईए एक्ट 2008 के सेक्शन 21 में यह प्रावधान है कि विशेष अदालत के जमानत देने या इनकार करने के किसी भी आदेश के खिलाफ हाई कोर्ट में अपील की जा सकती है. हालांकि एक्ट के सब सेक्शन-2 के अनुसार, ऐसी अपीलों की सुनवाई हाई कोर्ट में दो जजों की पीठ ही करेगी. प्रावधान के मुताबिक, विशेष अदालत के फैसले के 30 दिनों के भीतर अपील करना जरूरी है. पीडीपी नेता वाहिद उर रहमान पारा ने स्पेशल एनआईए कोर्ट (special NIA court) में जमानत की अर्जी खारिज होने के करीब दो महीने बाद हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी. 33 दिनों की देरी से अपील करने के कारण यह प्रावधानों से बाहर आ गया था. हालांकि हाईकोर्ट ने उनके वकील की दलीलों पर विचार करने के बाद आवेदन को मंजूर कर लिया था.
पिछले साल फरवरी में लगाए गए कोविड लॉकडाउन के कारण हाईकोर्ट में वर्चुअल तरीके से सुनवाई हो रही थी. तब पारा के वकील ने कोर्ट के सामने उनके बिगड़ती सेहत का हवाला दिया था, जिस पर राज्य सरकार के वकील ने असहमति जताई थी. अदालत ने पारा के वकील की ओर से पेश की गई अर्जेंट एप्लिकेशन पर चार दिनों के बाद मामले की सुनवाई करने का फैसला किया था. बाद की सुनवाई के दौरान अदालत ने उनके वकील को फिजिकली उपस्थित होने का आदेश दिया और केंद्रशासित प्रदेश के प्रशासन को अदालत के समक्ष पारा की सेहत के बारे में रिपोर्ट देने का निर्देश दिया था. चीफ जस्टिस पंकज मित्तल ने जस्टिस संजीव कुमार और जस्टिस विनोद चटर्जी की विशेष खंडपीठ का गठन किया मगर समय की कमी और अन्य कारणों की वजह से बहस शुरू नहीं हो सकी. इसके बाद अप्रैल में मामले की सुनवाई शुरू हुई.
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