पटना: बहुचर्चित सेनारी नरसंहार के 13 दोषियों को पटना हाईकोर्ट ने बरी कर दिया है. बिहार के जहानाबाद जिले के इस बहुचर्चित नरसंहार मामले में कोर्ट ने लंबी सुनवाई के बाद फैसला सुरक्षित रखा था. शुक्रवार को हाईकोर्ट ने अपना फैसला सुनाते हुए निचले अदालत के फैसले को रद्द करते हुए सभी 13 दोषियों को तुरंत रिहा करने का आदेश दिया.
पटना हाईकोर्ट ने दोषियों को किया बरी 34 लोगों को गला रेतकर उतारा था मौत के घाट
जहानाबाद जिले में प्रतिबंधित नक्सली संगठन के उग्रवादियों ने सेनारी गांव को चारों तरफ से घेर लिया था. इसके बाद एक जाति विशेष के 34 लोगों को उनके घरों से जबरन निकाला गया और बेरहमी से गला रेत कर सभी को मौत के घाट उतार दिया गया. उस समय इस नरसंहार में प्रतिबंधित संगठन माओवादी कम्युनिस्ट सेंटर (एमसीसी) को शामिल माना गया था. जहानाबाद जिला अदालत ने 15 नवंबर 2016 को इस मामले में 10 दोषियों को मौत की सजा सुनाई थी जबकि 3 को उम्रकैद की सजा सुनाई गई.
18 मार्च 1999 को हुआ था नरसंहार क्या था निचली अदालत का फैसला
इस नरसंहार के 17 साल बाद जहानाबाद की कोर्ट ने 2016 में इस पर अपना फैसला सुनाया था. जिसमें उन्होंने 10 दोषियों को फांसी और तीन दोषियों को उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी. साथ ही एक-एक लाख का जुर्माना भी लगाया गया था. उस दौरान इस केस के दो दोषी फरार चल रहे थे. इसके अलावा निचली अदालत ने मामले के पीड़ितों को 5-5 लाख रुपये का मुआवजा देने का भी आदेश दिया था.
हाईकोर्ट में वकीलों ने पेश की थी दलीलें
निचली अदालत के फैसले की पुष्टि के लिए पटना हाईकोर्ट में राज्य सरकार की ओर से डेथ रेफरेंस दायर किया गया. जबकि दोषियों- द्वारिका पासवान, बचेश कुमार सिंह, मुंगेश्वर यादव तथा अन्य की ओर से क्रिमिनल अपील दायर कर निचली अदालत के फैसले को चुनौती दी गई थी. सुप्रीम कोर्ट के वरीय अधिवक्ता सुरिंदर सिंह, पटना हाईकोर्ट के वरीय अधिवक्ता कृष्णा प्रसाद सिंह, अधिवक्ता राकेश सिंह, भास्कर शंकर सहित अनेक वकीलों ने पक्ष-विपक्ष की ओर से अपनी दलीलें पेश कीं. सभी पक्षों को सुनने के बाद खंडपीठ ने फैसला सुरक्षित रख लिया था और शुक्रवार को सभी को बरी कर दिया गया.
18 मार्च 1999 की वो काली रात
18 मार्च 1999 को प्रतिबंधित नक्सली संगठन एमसीसी ने जहानाबाद जिले के सवर्ण बाहुल्य सेनारी गांव में होली से ठीक पहले खून की होली खेली थी. बताया जाता है कि 500-600 की संख्या में हथियारबंद लोगों ने सेनारी गांव पर हमला बोल दिया था. हथियारबंद लोगों ने गांव को चारों और से घेर लिया और एक जाति विशेष के पुरुषों को घरों से चुन-चुनकर निकाला गया. 34 लोगों को गांव के ही ठाकुरबाड़ी मंदिर के पास लाया गया. 6 कातिल धारदार हथियार से एक-एक कर युवकों की गर्दन रेतकर जमीन पर गिरा रहे थे. एक के बाद एक 34 जानें चीख में तब्दील हो कर रह गईं.
अपने गांव पहुंचे हाइकोर्ट के रजिस्ट्रार को पड़ा दिल का दौरा
लोग बताते है कि इस नरसंहार के अगले दिन पटना हाई कोर्ट के रजिस्ट्रार पद्मनारायण सिंह यहां पहुंचे. वो सेनारी गांव के ही थे, उनके परिवार के बी 8 लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया था. जिनकी लाशें देखकर उन्हें दिल का दौरा पड़ा और उनकी मौत हो गई.
'बदला' था सेनारी नरसंहार
सेनारी हत्याकांड एक सुलगते बदले का अंजाम था. क्योंकि सेनारी हत्याकांड से कुछ वक्त पहले 1 दिसंबर 1997 को जहानाबाद के ही लक्ष्मणपुर-बाथे के शंकरबिगहा गांव में 58 लोगों की हत्या हुई, 10 फरवरी 1998 को नारायणपुर गांव में 12 लोगों की हत्या हुई. ये सभी एक जाति विशेष से संबंध रखते थे. जमीन का संघर्ष भी यहां जातियों के बीच चलता था लेकिन सेनारी गांव में भूमिहर और भूमिहीन के बीच इस तरह का कोई झगड़ा नहीं था. आसपास के गांवों में एमसीसी सक्रिय थी, पर इस गांव में नहीं. 300 घरों के गांव में 70 भूमिहार परिवार 'मजदूर' पड़ोसियों के साथ बड़ी शांति से रहते थे और शायद यही वजह थी कि इसी गांव को चुना गया.
सेनारी नरसंहार में अब तक
-18 मार्च 1999 को हुआ नरसंहार, 34 लोगों को गला रेतकर मौत के घाट उतारा गया
-पुलिस ने जांच के बाद चार्जशीट में 88 लोगों को बनाया आरोपी, 32 फरार
-15 मई 2002 को 45 अभियुक्तों पर न्यायालय में आरोप तय किए. दो आरोपियों की मौत, पांच फरार.
-27 अक्टूबर 2016, 15 अभियुक्तों को दोषी करार दिया गया, जबकि सबूतों के अभाव में 23 को रिहा कर दिया गया.
-15 नवंबर 2016, निचली अदालत द्वारा सजा की बिंदु पर सुनवाई पूरी. जहानाबाद जिला अदालत ने फैसला सुनाया. 10 लोगों को फांसी और 3 लोगों को उम्रकैद की सजा.
-18 नवंबर 2016: इस घटना के एक अन्य अभियुक्त दुखन राम की अलग से सुनवाई चल रही थी. उसे मृत्युदंड की सजा सुनाई गई. जबकि इस घटना के प्रमुख अभियुक्त दुल्ली राम भी सुनवाई के दौरान न्यायालय में उपस्थित नहीं हो सका.
इसके बाद निचली अदालत के फैसले की पुष्टि के लिए पटना हाईकोर्ट में राज्य सरकार की ओर से डेथ रेफरेंस दायर किया गया. दोषी द्वारिका पासवान, मुंगेश्वर यादव, बचेश कुमार सिंह और अन्य की ओर से क्रिमिनल अपील दायर कर निचली अदालत के फैसले को चुनौती दी गई थी. शुक्रवार 21 मई, 2021 को हाईकोर्ट ने निचली अदालत के फैसले को रद्द करते हुए सभी 13 दोषियों को तुरंत रिहा करने का आदेश दिया.
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