हैदराबाद :सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक फैसले में कहा था कि गरीबों, कमजोरों और हताश लोगों के हितों की रक्षा के अलावा सरकार के लिए कुछ भी महत्वपूर्ण नहीं हो सकता है. लेकिन ग्रामीण विकास पर संसद की स्थाई समिति की रिपोर्ट इस बात की गवाही देती है कि कल्याण की भावना दम तोड़ रही है.
समिति ने समाज के विभिन्न जरूरतमंद वर्गों को दी जाने वाली सामाजिक कल्याण पेंशन में वृद्धि नहीं किए जाने की कड़ी आलोचना की है. समिति ने इन पिछड़े वर्गों को दी जाने वाली पेंशन को नाममात्र बताया है.
- बीपीएल परिवारों के बुजुर्ग व्यक्तियों को दी जाने वाली वृद्धावस्था पेंशन 200 से 500 रुपये प्रतिमाह है.
- 40 वर्ष से अधिक आयु की गरीब विधवाओं को दी जाने वाली पेंशन 300 से 500 रुपये प्रतिमाह है.
- 18 से 79 वर्ष की आयु के शारीरिक रूप से विकलांग व्यक्तियों के लिए पेंशन सिर्फ 300 रुपये प्रतिमाह है.
अब सवाल उठता है कि क्या इस मामूली राशि से लाभार्थियों को कोई मदद मिलेगी? केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय ने पेंशन को तर्कसंगत स्तर तक बढ़ाने की सिफारिशों पर ध्यान नहीं दिया. उम्मीद है कि पेंशन बढ़ाने के लिए मंत्रालय इस बार उचित फैसला करेगा. स्थाई समिति ने सुझाव दिया है कि केंद्र को बेसहारा लोगों के प्रति अपने उत्तरदायित्व को समझना चाहिए.
बेसहारा बुजुर्गों, मजबूर विधवाओं और शारीरिक रूप से अक्षम व्यक्तियों की उपेक्षा करना निंदनीय है, जो अपने पैरों पर खड़े नहीं हो सकते. इन बेसहारा लोगों के प्रति इस तरह का कठोर रवैया कल्याणकारी राज्य की अवधारणा के लिए हानिकारक है.
40% से अधिक बुजुर्ग भरण-पोषण के लिए करते हैं काम
अकेलापन बुढ़ापे का अभिशाप है. जब गरीबी से त्रस्त बुजुर्ग बीमार पड़ते हैं, तो उनकी स्थिति और भी दयनीय होती है. राष्ट्रीय परिवार कल्याण विभाग और इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर पॉपुलेशन साइंसेज द्वारा संयुक्त रूप से किए गए एक सर्वेक्षण में कई कड़वी सच्चाई सामने आई. सर्वेक्षण से पता चला है कि 60 वर्ष से अधिक आयु के 40 प्रतिशत से अधिक व्यक्ति अब भी अपने भरण-पोषण के लिए काम कर रहे हैं.