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जलवायु के इतिहास में नया रिकॉर्ड, पिछले 12 महीने बने वर्ल्ड हॉटेस्ट पीरियड

क्लाइमेट सेंट्रल रिपोर्ट के अनुसार, नवंबर 2022 से अक्टूबर 2023 अब तक दर्ज किए गए सबसे गर्म महीने थे. इस 12 महीने की अवधि का डेटा दीर्घकालिक ग्लोबल वार्मिंग प्रवृत्ति के अनुरूप है. ग्लोबल औसत तापमान (जीएमटी) पूर्व-औद्योगिक जलवायु की तुलना में लगभग 1.3 डिग्री सेल्सियस अधिक गर्म था. earth hottest month period, Global Mean Temperature, hottest 12 months recorded

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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Nov 10, 2023, 2:10 PM IST

हैदराबाद : जलवायु के इतिहास में पिछले 12 महीने पृथ्वी में सबसे ज्यादा गर्म अवधि के रूप में रिकॉर्ड दर्ज किया गया है. नवंबर 2022 से अक्टूबर 2023 तक की ये अवधि में अब तक की सबसे अधिक गर्मी महसूस की गई है. ये बात एक नए शोध से सामने आई है. शोध में इस गर्मी में वृद्धि के पीछे जीवाश्म ईंधन के जलने और अन्य मानवीय गतिविधियों को कारण बताया गया है, जिससे तेजी से जलवायु परिवर्तन हो रहा है.

उल्लेखनीय है कि ये शोध वैज्ञानिकों और संचारकों के विशेष टीम 'क्लाइमेट सेंट्रल' द्वारा किया गया है. ये टीम बड़े डेटा और उच्च-स्तरीय टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल कर जलवायु परिवर्तन शोध और रिपोर्ट तैयार करता है. इस टीम की स्टडी के अनुसार, पृथ्वी में नवंबर 2022 से अक्टूबर 2023 तक सबसे अधिक गर्मी का अनुभव किया गया और इस दौरान तापमान पूर्व-औद्योगिक स्तर से 1.3 डिग्री सेल्सियस ऊपर था. साथ ही अध्ययन के जरिये अलर्ट भी किया गया कि ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन पर रोक लगायी नहीं गई, तो जलवायु की स्थिति और खराब होने की संभावना है. वर्तमान की नीतियां जिस प्रकार हैं, इससे पता चलता है कि तापमान में वृद्धि जारी रहेगी, जिससे तीन मिलियन से अधिक सालों में अब सबसे अधिक गर्मी का एहसास होगा.

क्लाइमेट सेंट्रल रिपोर्ट

प्रमुख वैश्विक तथ्य : तथ्यों के अनुसार, नवंबर 2022 से अक्टूबर 2023 तक की अवधि को सबसे गर्म 12 महीना माना जा रहा है, जो कि दीर्घकालिक ग्लोबल वार्मिंग का नतीजा है. वैश्विक औसत तापमान (जीएमटी) पूर्व-औद्योगिक स्तर की तुलना में लगभग 1.3 डिग्री सेल्सियस अधिक गर्म था. एक और चौंकाने वाला तथ्य सामने आया, जिसमें बताया गया है कि दुनिया भर में चार में से एक व्यक्ति (1.9 बिलियन लोग) को पिछले 12 महीनों में जलवायु परिवर्तन के कारण अत्यधिक और खतरनाक तपिश महसूस हुई है. इसके पीछे अल नीनो और अन्य कारकों के साथ-साथ प्रदूषण का पिछले 12 महीनों में बढ़ते तापमान पर प्रभाव थोड़ा सा ही रहा, जबकि मानव-जनित ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन इसका प्रमुख कारण है.

रिपोर्ट में कहा गया है कि इन 12 महीनों की अवधि में उच्च तापमान के कारण दुनिया भर में रिकॉर्ड तोड़ मौसम की घटनाएं हुईं. हाल ही में प्रकाशित प्रोडक्शन गैप रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया अब से 2030 तक 110 फीसदी अधिक जीवाशम ईंधन का उत्पादन की राह पर है. ऐसे में जीवाश्म ईंधन की अधिक आपूर्ति से मौसम की स्थिति खराब होगी और दुनिया भर में तापमान में वृद्धि जारी रहेगी.

वैज्ञानिकों ने अपने तथ्यों को साबित करने के लिए दक्षिण अमेरिका और अर्जेंटीना की मिसाल दी, जिसमें यह कहा गया है कि मानवीय गतिविधियों के कारण हुए जलवायु परिवर्तन ने द. अमेरिका के बड़े हिस्से को प्रभावित किया, जिससे पूरे महाद्वीप में साल के कम से कम पहले छह महीनों में सामान्य से अधिक गर्म हो गया है. अपनी बात को पुष्ट करने के लिए, पेपर में शोधकर्ताओं का कहना है कि अर्जेंटीना में सूखे के कारण सकल घरेलू उत्पाद में अनुमानित 3 फीसदी की कमी आई, जबकि अमेजॉन नदी क्षेत्र में, जल स्तर अब तक के सबसे निचले स्तर पर पहुंच गया, जिससे आधे मिलियन लोगों को पानी और भोजन की कमी का सामना करना पड़ा. वहीं, सिर्फ अक्टूबर के महीने में, वैश्विक व्यापार का अनुमानित 5 फीसदी संचालित करने वाला पनामा नहर में दो साल के सूखे ने दुनिया के सबसे व्यस्त व्यापार मार्ग को महीनों तक बाधित कर दिया.

यूएस में जलवायु परिवर्तन का असर :अमेरिका में मौसम की 24 तरह की घटनाओं में कम से कम 373 लोगों की मौत हो गई और अब तक 67 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक का वित्तीय नुकसान देश को भुगतना पड़ा. वहीं, हवाई में लगी सदी की सबसे घातक आग में 93 लोगों की मौत हो गई. कनाडा में, हर 200 में से 1 व्यक्ति को जंगल की आग के कारण अपना घर खाली करने के लिए मजबूर होना पड़ा. जबकि इस आग के कारण 45 मिलियन एकड़ से अधिक जमीन नष्ट हो गई.

मानव के जीवन को प्रभावित करने वाली हीटवेव पूर्वी और दक्षिण एशिया से लेकर यूरोप और उत्तरी अफ्रीका तक चली. इससे भारत में कम से कम 264 और स्पेन में 2,000 से अधिक लोगों की मौत हो गई. ऐसे समय में जब देश के कुछ हिस्सों को 500 वर्षों में सबसे शुष्क अवधि का सामना करना पड़ा. वहीं, इटली में अगस्त और सितंबर के महीने में तापमान 40 सेल्सियस से अधिक होने के कारण, लोग गर्मी की तपिश से जुझने लगे. यहां तक की इटली के अस्पतालों में गर्मी से संबंधित बीमारियों से पीड़ित मरीजों का आकलन करने तक की समस्या आई.

मानव-प्रेरित जलवायु परिवर्तन के कारण रिकॉर्ड बारिश हुई, जिससे खतरनाक बाढ़ आए. दुनिया भर में, तूफानों में हजारों लोगों की मौत के साथ लाखों लोग विस्थापित हुए. इनमें साइक्लोन गैब्रिएल के दौरान न्यूजीलैंड, साइक्लोन फ्रेडी के दौरान मलावी, मोजाम्बिक और मेडागास्कर, टाइफून हाइकुई के दौरान चीन और डैनियल तूफान के दौरान लीबिया, ग्रीस, बुल्गारिया और तुर्की प्रभावित हुए. बता दें कि डैनियल तूफान, अफ्रीका का अब तक का सबसे घातक तूफानों में से एक है, जिसमें 4,000 से अधिक लोग प्रभावित हुए.

क्लाइमेट सेंट्रल रिपोर्ट

अफ्रीका में मौसम का हाल :अफ्रीका की बात करें तो जलवायु परिवर्तन के कारण मौसम की चरम घटनाएं हुई, जिसमें कम से कम 15,700 लोगों की मौत हो चुकी है. अप्रैल में, रवांडा और कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य में ऐसी बाढ़ आई, जिसमें 400 से अधिक लोग मारे गए. सितंबर तक, बाढ़ ने घाना में कृषि जमीनों को तहस-नहस कर दिया और लगभग 26,000 लोग विस्थापित करने को मजबूर हुए. इस बीच, हॉर्न ऑफ अफ्रीका में सूखा लगातार नए शिकार बना रहा है, जिससे 23 मिलियन से अधिक लोग गंभीर रूप से खाद्य असुरक्षित हो गए हैं, जबकि अन्य 2.7 मिलियन विस्थापित हो गए हैं.

भारत की स्थिति :देश के 32 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के 70 शहरों के विश्लेषण से खतरे का पता चला है. पिछले वर्ष औसत सीएसआई 5 के साथ 12 शहरों में 100 से अधिक दिनों में जलवायु परिवर्तन का अनुभव हुआ. इन शहरों में बेंगलुरु (124), विशाखापत्तनम (109), ठाणे (101), गुवाहाटी (112), तिरुवनंतपुरम (187), आइजोल (100), इंफाल (139), शिलांग (123), पोर्ट ब्लेयर (205), पणजी (108), दिसपुर (112), कावारत्ती (190) शामिल हैं.

भारत में ऐसे 21 शहर हैं, जहां पिछले वर्ष 100 से अधिक दिनों तक जलवायु परिवतर्न सीएसआई सूचकांक स्तर 3 पर था. इन शहरों में मुंबई (134), बेंगलुरु (148), चेन्नई (121), विशाखापत्तनम (155), ठाणे ( 143), कल्याण (129), गुवाहाटी (180), विजयवाड़ा (106), मैसूरु (118), भुवनेश्वर (107), तिरुवनंतपुरम (242), अगरतला (107), आइजोल (147), इम्फाल (209), शिलांग ( 204), पोर्ट ब्लेयर (257), कोहिमा (150), पणजी (177), दमन (110), दिसपुर (180) और कावारत्ती (241) शामिल हैं.

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