नई दिल्ली: वर्ष 2004-07 के दौरान राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ के शासनकाल में पर्दे के पीछे की वार्ता के बाद पाकिस्तान और भारत कश्मीर मुद्दा सुलझाने के लिए चार सूत्रीय एक फ्रेमवर्क के करीब पहुंच गये थे, लेकिन कुछ राजनीति घटनाक्रम के कारण इसे मूर्त रूप नहीं दिया जा सका. यह बात पाक के पूर्व विदेश मंत्री खुर्शीद महमूद कसूरी ने करीब आठ साल पहले कही थी. परवेज मुशर्रफ 1999 में रक्तहीन तख्तापलट में प्रधानमंत्री नवाज शरीफ की सरकार को बेदखल करते हुए सत्ता पर काबिज हो गये थे.
दिल्ली में जन्मे पूर्व सैन्यशासक मुशर्रफ का लंबी बीमारी के बाद दुबई में रविवार को निधन हो गया. वह 79 साल के थे. वर्ष 2015 में प्रकाशित अपनी किताब 'नाइदर ए हॉक नॉर ए डोव' में कसूरी ने इस वार्ता के कई चरणों और दोनों पक्षों की ओर से उठाये गये कदमों का जिक्र किया है और दावा किया है कि दो परमाणु शक्ति संपन्न पड़ोसियों के बीच इस लंबित समस्या का एक 'ऑउट ऑफ बॉक्स' (अलग और नये नजरिये वाला) समाधान था.
भारत और पाकिस्तान ने दो लड़ाइयां लड़ीं, जिसके बाद 1999 का कारगिल संघर्ष हुआ. पाकिस्तानी सेना के तत्कालीन प्रमुख मुशर्रफ को कारगिल संघर्ष का सूत्रधार माना जाता है. मुशर्रफ के राष्ट्रपति रहने के दौरान पाकिस्तान के विदेश मंत्री रहे कसूरी ने लिखा, 'हमने सितंबर 2004 में भारत के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जे.एन. दीक्षित से कश्मीर के लिए 'ऑउट ऑफ बॉक्स' (नये और अलग तरह का) समाधान का जिक्र करते हुए सुना.'
पूर्व पाकिस्तानी विदेश मंत्री ने मुशर्रफ की किताब 'इन द लाइन ऑफ फायर' का जिक्र किया, जिसमें उन्होंने कश्मीर मुद्दे पर अलग नजरिया वाले समाधान की जरूरत के बारे में लिखा है. वर्ष 2002 से 2007 तक पाकिस्तान के विदेश मंत्री रहे कसूरी ने यह भी बताया कि तीन साल तक पर्दे के पीछे चली बातचीत के जरिये किस तरह यह समाधान ठोस रूप में सामने आया. कसूरी ने कहा कि मुशर्रफ का चार सूत्रीय एजेंडा था.
इसमें बातचीत की शुरुआत, कश्मीर की केंद्रीयता को स्वीकार किया जाए, पाकिस्तान-भारत और कश्मीरियों को जो स्वीकार नहीं हो उसे हटा दिया जाए, सभी तीनों पक्षों के लिए मान्य समाधान पर पहुंचा जाए. वर्ष 2015 में दिल्ली में एक कार्यक्रम में अपने संबोधन में कसूरी ने दोहराया था कि संप्रग के पहले शासनकाल में भारत एवं पाकिस्तान कश्मीर पर 'फ्रेमवर्क' के करीब पहुंच गये थे और दोनों पक्षों ने घोषणा के बाद जीत का दावा नहीं करने का भी फैसला किया था.