नई दिल्ली:तीस्ता जल बंटवारे के मुद्दे को बांग्लादेश से सुलझाने की विदेश मामलों की संसदीय स्थायी समिति ने सिफारिश की है. इससे नई दिल्ली और ढाका के बीच दशकों से चली आ रही इस समस्या के समाप्त होने के संकेत मिलते हैं. इस बारे में समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि समिति भारत और बांग्लादेश के बीच तीस्ता नहीं के पानी के बंटवारे को लेकर काफी समय से लंबित मुद्दे से अवगत है. साथ ही समिति ने कहा कि वह चाहती है कि बांग्लादेश के साथ द्विपक्षीय संबंधों के लिए इस अहम मुद्दे पर शीघ्र से शीघ्र नीति पर काम किया जाए.
समिति ने इस मामले में आम सहमति बनाने के लिए बांग्लादेश के साथ नियमित रूप से बातचीत शुरू करने की भी बात कही है. इसके अलावा भारत और बांग्लादेश के बीच लंबित विवादों के मुद्दे पर प्रगति और परिणाम के बारे में समिति को बताया जा सकता है. समिति ने ऐसे विवादों को सुलझाने के लिए नई पहल करने के साथ ही सार्थक बातचीत का प्रस्ताव रखा है. वहीं बांग्लादेश ने इस सिफारिश का स्वागत करते हुए उत्साहजनक और सार्थक बताया है.
इसी कड़ी में बांग्लादेश विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता सेहेली सबरीन ने एक कहा था कि यह निश्चित रूप से उत्साहजना और सार्थक है. विशेष रूप से भारत के सभी राजनीतिक दलों के सांसद इस समिति में है, यही कारण है कि इस तरह की सिफारिश ने हमारे बीच आशा का संचार किया है.
बता दें कि 2011 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की ढाका यात्रा के दौरान भारत और बांग्लादेश इस मुद्दे पर एक समझौते के करीब पहुंच गए थे. लेकिन पश्चिम बंगाल की मुख्यमं6ी ममता बनर्जी इससे सहमत नहीं थीं, इस वजह से अंतिम समय में समझौते पर हस्ताक्षर नहीं हो सके थे. हालांकि ममता बनर्जी इस समझौते के खिलाफ हैं क्योंकि उनका मानना है कि तीस्ता नदी का पानी काफी कम हो रहा है. इस नदी के द्वारा ही उत्तरी पश्चिम बंगाल में 1.20 लाख हेक्टेयर कृषि योग्य भूमि की सिंचाई की जाती है.
लेकिन इस बार के हालात पहले से काफी अलग है, क्योंकि जिस समिति ने यह सिफारिश की है उस समिति में टीएमसी के महासचिव और ममता बनर्जी के भतीजे अभिषेक बनर्जी भी सदस्य हैं.इस बारे में पत्रकार और ढाका स्थित थिंक टैंक सेंटर फॉर गवर्नेंस स्टडीज के फेलो अयानग्शा मैत्रा ने ईटीवी भारत को बताया कि ऐसा लगता है कि टीएमसी को सौदे का समर्थन करने के लिए पक्ष में लाया गया है. उन्होंने कहा कि इसको लेकर कुछ राजनीतिक व्यवस्था हो सकती है. वहीं ढाका स्थित नागरिक समाज संगठन रिवराइन पीपल के महासचिव शेख रोकोन ने कहा कि वह अभी भी इसको लेकर आशावादी नहीं हैं क्योंकि यह मुद्दा काफी समय से लंबित है. उन्होंने कहा कि तीस्ता पर 1953 में उस समय से ही चर्चा शुरू हो गई थी जब बांग्लादेश पाकिस्तान का हिस्सा था. हालांकि सत्तर और अस्सी के दशक में भी दो तदर्थ संधियां हुईं.
उन्होंने कहा कि मनमोहन सिंह और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दोनों बार-बार कहते रहे हैं कि भारत इस मुद्दे पर ईमानदारी से काम कर रहा है, लेकिन पश्चिम बंगाल के विरोध की वजह से समझौता नहीं हो सका. रोकेन के मुताबिक संसदीय समिति का निश्चित रूप से सकारात्मक संकेत है लेकिन यह कोई प्रस्ताव नहीं है. संधि तैयार है, लेकिन बस इसके लिए दोनों पक्षों का हस्ताक्षर होने की जरूरत है. उन्होंने कहा कि भारत और बांग्लादेश दोनों आम चुनाव की ओर बढ़ रहे हैं ऐसे में समिति की सिफारिश मतदाताओं को सकारात्मक संदेश देने की पहल को सकती है.
बताया जाता है कि कमजोर मौसम के दौरान तीस्ता नदी का बांग्लादेश में प्रवाह भारत और बांग्लादेश के बीच विवाद का मुख्य बिंदु है. इस नदी की वजह से हजारों लोगों की आजीविका प्रभावित होती है. वहीं यह नदी बांग्लादेश में 2800 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में बहती है और सिक्किम के बाढ़ क्षेत्र से होकर बहती है. इतना ही नहीं यह नदी अपनी कुल 414 किमी की लंबाई में से करीब 151 किमी सिक्किम से और करीब 142 किमी पश्चिम बंगाल के अलावा अंतिम में 121 किमी बांग्लादेश में बहती है.
बांग्लादेश के अखबार द डेली स्टार की एक रिपोर्ट के मुताबिक बांग्लादेश में तीस्ता बैराज के अपस्ट्रीम दलिया में नदी का औसत प्रवाह 7932.01 क्यूबिक मीटर प्रति सेकंड (क्यूमेक) अधिकतम और 283.28 क्यूमेक न्यूनतम था. मैत्रा के अनुसार भारत की ओर से इस मुद्दे को हल किया जाना चाहिए क्योंकि चीन के द्वारा बांग्लादेश में बुनियादी ढांचे में काफी निवेश कर रहा है. इतना ही नहीं तीस्ता नदीं पर व्यापक प्रबंधन और पुनर्स्थापन परियोजना के लिए बांग्लादेश को चीन से लगभग 1 बिलियन डॉलर का ऋण मिलने की संभावना है. उन्होंने कहा कि प्रबंधन और पुनर्स्थापन परियोजना का उद्देश्य नदी बेसिन का कुशलतापूर्वक प्रबंधन करने के अलावा बाढ़ को नियंत्रित करना और गर्मियों में बांग्लादेश में जल संकट से निपटना भी है. मैत्रा ने कहा कि भारत, भारतीय मौसम विभाग के माध्यम से उपग्रह इमेज और समय पर बाढ़ पूर्वानुमान डेटा साझा करके बांग्लादेश की भी मदद कर सकता है. गौरतलब है कि भारत से बांग्लादेश तक करीब 54 नदियां बहती हैं.
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