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संसदीय समिति ने 'समान नागरिक संहिता' के क्रियान्वयन पर आश्वासन वापस लेने का अनुरोध किया स्वीकार

संसद की एक समिति ने समान नागरिक संहिता के कार्यान्वयन से संबंधित सात दिसंबर 2016 के अतारांकित प्रश्न के उत्तर में दिये गए आश्वासन को वापस लेने के अनुरोध पर विचार किया था. आश्वासनों की समिति (2021-22) ने 18 अप्रैल 2022 को हुई बैठक में 38 लंबित आश्वासनों को छोड़ने के विभिन्न मंत्रालयों/विभागों के अनुरोध पर विचार किया और इनमें से 31 आश्वासनों को छोड़ने का निर्णय किया. इसमें समान नागरिक संहिता के कार्यान्वयन से संबंधित विषय भी शामिल है.

समान नागरिक संहिता
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Published : Aug 7, 2022, 6:55 PM IST

नई दिल्ली : संसद की एक समिति ने दिसंबर 2016 में 'समान नागरिक संहिता' के क्रियान्वयन को लेकर दिया गया आश्वासन वापस लेने का सरकार का अनुरोध स्वीकार कर लिया है. सरकार ने कहा था कि मंत्री द्वारा दिया गया संबंधित उत्तर स्पष्ट था और सदन को इसमें कोई आश्वासन नहीं दिया गया था. सरकारी आश्वासनों को लेकर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के सांसद राजेन्द्र अग्रवाल की अध्यक्षता वाली समिति की ओर से संसद में पेश रिपोर्ट में यह बात कही गई है. समिति ने समान नागरिक संहिता के कार्यान्वयन से संबंधित सात दिसंबर 2016 के अतारांकित प्रश्न के उत्तर में दिये गए आश्वासन को वापस लेने के अनुरोध पर विचार किया था. आश्वासनों की समिति (2021-22) ने 18 अप्रैल 2022 को हुई बैठक में 38 लंबित आश्वासनों को छोड़ने के विभिन्न मंत्रालयों/विभागों के अनुरोध पर विचार किया और इनमें से 31 आश्वासनों को छोड़ने का निर्णय किया. इसमें समान नागरिक संहिता के कार्यान्वयन से संबंधित विषय भी शामिल है.

गौरतलब है कि सदन में प्रश्नों का उत्तर देते हुए अथवा विधेयकों या संकल्पों आदि पर चर्चा के दौरान मंत्री मामले पर विचार करके जानकारी देने का आश्वासन या वचन देते हैं या वादा करते हैं. नियमों के अनुसार, किसी आश्वासन को संबंधित मंत्रालय द्वारा तीन माह में कार्यान्वित करना अपेक्षित होता है. यदि मंत्रालय किसी भी कारण आश्वासन को कार्यान्वित करने में कठिनाई महसूस करता है तो उसे सरकारी अश्वासनों की समिति के समक्ष आश्वासन छोड़ने का अनुरोध करना होता है.

रिपोर्ट के अनुसार, सात दिसंबर 2016 को डा. रत्ना डे नाग, सी एन जयदेवन, मनोज तिवारी, एडवोकेट जॉइस जॉर्ज, आर पार्थिपन और पी पनीरसेलवम ने अतारांकित प्रश्न संख्या 3582 के माध्यम से विधि एवं न्याय मंत्री से सवाल पूछा था. इन सदस्यों ने पूछा था कि क्या सरकार देश में समान नागरिक संहिता को लागू करने के लिए किसी प्रस्ताव पर विचार कर रही है और अगर हां, तो इसका ब्योरा दे और क्या इस संबंध में कोई विशेषज्ञ समिति नियुक्त की गई है?

प्रश्न के लिखित उत्तर में तत्कालीन विधि एवं न्याय राज्य मंत्री पी. पी. चौधरी ने कहा था कि संविधान का अनुच्छेद 44 नीति निर्देशक तत्वों का उपबंध करता है, जिसमें कहा गया है कि सरकार, भारत के समस्त राज्य क्षेत्रों के नागरिकों के लिए एक समान नागरिक संहिता लाने का प्रयास करेगी. मंत्री ने कहा था कि विषय वस्तु की महत्ता और संवेदनशीलता को ध्यान में रखते हुए सरकार ने भारत के विधि आयोग से विभिन्न समुदायों से जुड़ी विधियों के उपबंधों का गहन अध्ययन करके समान नागरिक संहिता के विभिन्न मुद्दों की समीक्षा करने और उन पर अपनी सिफारिश करने का अनुरोध किया है.

रिपोर्ट के अनुसार, समिति ने संबंधित प्रश्न के उत्तर को आश्वासन माना था और नियमानुसार, विधि एवं न्याय मंत्रालय (विधायी विभाग) को उत्तर दिये जाने की तारीख से तीन माह के भीतर इस आश्वासन को पूरा करना था, लेकिन यह आश्वासन अभी तक पूरा नहीं किया जा सका है. विधि और न्याय मंत्रालय ने 23 मई 2017 और दो दिसंबर 2020 को संबंधित उत्तर को आश्वासन की श्रेणी से हटाने का अनुरोध करते हुए कहा था, "उपरोक्त उत्तर को सामान्य तौर पर पढ़ने से स्पष्ट है कि मंत्री द्वारा कोई आश्वासन नहीं दिया गया था. सदन को आश्वासन दिये बिना ही उत्तर स्पष्ट था."

मंत्रालय ने यह भी कहा था, "इसके अलावा, लोकसभा सचिवालय द्वारा ‘आश्वासन’ के रूप में माने जाने वाले हिस्से को बारीकी से पढ़ने पर यह भी स्पष्ट होता है कि मंत्री द्वारा दिया गया उत्तर स्पष्ट था और सदन को कोई आश्वासन नहीं दिया गया था." रिपोर्ट में कहा गया है कि 12 अप्रैल 2021 को हुई बैठक में समिति द्वारा उपरोक्त अनुरोध को अस्वीकार कर दिया गया था. समिति ने चार अक्तूबर 2021 को अपनी 51वीं रिपोर्ट पेश की और यह पाया कि विधि एवं न्याय मंत्रालय और विधि आयोग को समान नागरिक संहिता से जुड़े विभिन्न मुद्दों को जांचने और तदनुसार सिफारिशें करने की जरूरत है.

हालांकि, संबंधित मंत्रालय के विधायी विभाग ने 18 अक्तूबर 2021 के प्रपत्र के माध्यम से बताया कि उपरोक्त उत्तर को सामान्य तौर पर पढ़ने से यह स्पष्ट है कि मंत्री द्वारा कोई आश्वासन नहीं दिया गया था तथा उत्तर बिल्कुल स्पष्ट था. ऐसे में मंत्रालय ने विधि एवं न्याय मंत्री के अनुमोदन से संबंधित उत्तर को ‘आश्वासन’ की श्रेणी से हटाने का पुन: अनुरोध किया था और यह विषय अप्रैल, 2022 को समिति के समक्ष एक बार फिर विचारार्थ पेश किया गया था.

(पीटीआई-भाषा)

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