नई दिल्ली: सरकार ने गुरुवार को विपक्ष के हंगामे के बीच एक विवादास्पद विधेयक पेश किया, जिसमें मुख्य निर्वाचन आयुक्त और आयुक्तों के चयन के लिए समिति में प्रधान न्यायाधीश के स्थान पर एक कैबिनेट मंत्री को शामिल करने का प्रस्ताव किया गया है. उच्चतम न्यायालय ने मार्च में एक ऐतिहासिक फैसला दिया था कि मुख्य निर्वाचन आयुक्त और निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्तियां प्रधानमंत्री, लोकसभा में विपक्ष के नेता और प्रधान न्यायाधीश की सदस्यता वाली एक समिति की सलाह पर राष्ट्रपति द्वारा की जाएंगी.
न्यायालय ने कहा था कि यह मानदंड तब तक प्रभावी रहेगा, जब तक कि इस मुद्दे पर संसद में कोई कानून नहीं बन जाता. विधि एवं न्याय मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने मुख्य निर्वाचन आयुक्त और अन्य निर्वाचन आयुक्त (नियुक्ति, सेवा शर्तें और पदावधि) विधेयक, 2023 पुर:स्थापित किया. विपक्षी सदस्यों के विरोध के बीच उन्होंने यह विधेयक सदन में पेश किया. यह विधेयक मुख्य निर्वाचन आयुक्त और अन्य निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति, सेवा की शर्तों और कार्यकाल के विनियमन से संबंधित है.
इस विधेयक में प्रावधान किया गया है कि भविष्य में निर्वाचन आयुक्तों का चयन प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय समिति द्वारा किया जाएगा, जिसमें लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष और एक कैबिनेट मंत्री शामिल होंगे. कांग्रेस सहित विभिन्न विपक्षी दलों के नेताओं ने सरकार पर संविधान पीठ के आदेश को शिथिल करने का आरोप लगाया. निर्चाचन आयोग में पहली रिक्ति अगले साल होगी, जब मौजूदा निर्वाचन आयुक्त अनूप चंद्र पांडे 14 फरवरी को 65 वर्ष की उम्र होने के बाद अवकाशग्रहण करेंगे.
वह 2024 के लोकसभा चुनावों की संभावित घोषणा से कुछ दिन पहले अवकाशग्रहण करेंगे. उच्चतम न्यायालय ने मार्च में एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया था, जिसका मकसद मुख्य निर्वाचन आयुक्त और निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति को कार्यपालिका के हस्तक्षेप से बचाना है. न्यायालय ने फैसला दिया था कि उनकी नियुक्तियां प्रधानमंत्री, लोकसभा में विपक्ष के नेता और प्रधान न्यायाधीश की सदस्यता वाली एक समिति की सलाह पर राष्ट्रपति द्वारा की जाएंगी.
न्यायमूर्ति केएम जोसेफ की अध्यक्षता वाली पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने सर्वसम्मत फैसले में कहा था कि यह मानदंड तब तक प्रभावी रहेगा जब तक कि इस मुद्दे पर संसद में कोई कानून नहीं बन जाता. उच्चतम न्यायालय के फैसले से पहले, मुख्य निर्वाचन आयुक्त और अन्य निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति सरकार की सिफारिश पर राष्ट्रपति द्वारा की जाती थी.
सरकार के इस कदम पर वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि अगर यह विधेयक संसद से पारित हो जाता है, तो उनके विचार में यह असंवैधानिक होगा और उच्चतम न्यायालय द्वारा इसे रद्द किये जाने की संभावना है. दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कहा कि उन्होंने हमेशा कहा है कि मौजूदा केंद्र सरकार उच्चतम न्यायालय के ऐसे किसी भी आदेश को पलट देगी जो उसे पसंद नहीं आएगा. उन्होंने कहा कि यह एक खतरनाक स्थिति है और इससे चुनाव की निष्पक्षता प्रभावित हो सकती है.