नई दिल्ली :एक संसदीय समिति ने सिफारिश की है कि शीर्ष सांस्कृतिक संस्थानों और अकादमियों को सरकारी पुरस्कार प्राप्तकर्ताओं से हस्ताक्षर कराने चाहिए, ताकि बाद में 'पुरस्कार वापसी जैसी स्थिति' से बचा जा सके.
संसदीय समिति ने इस बात पर जोर दिया कि साहित्य अकादमी या अन्य सांस्कृतिक अकादमियां 'गौरराजनीतिक संगठन' हैं. जब भी उनके द्वारा कोई पुरस्कार दिया जाता है, तो प्राप्तकर्ता की सहमति ली जानी चाहिए ताकि वह 'राजनीतिक कारणों' से इसे वापस न लौटाएं.
परिवहन, पर्यटन और संस्कृति से संबंधित संसदीय स्थायी समिति ने सोमवार को संसद के दोनों सदनों में पेश एक रिपोर्ट में यह बात कही. पैनल ने अपनी टिप्पणियों में कहा कि पुरस्कार लौटाए जाने की स्थिति में पुरस्कार विजेता को भविष्य में ऐसे पुरस्कार के लिए 'विचार नहीं किया जाएगा.'
पैनल ने 'राष्ट्रीय अकादमियों और अन्य सांस्कृतिक संस्थानों के कामकाज' पर अपनी 'थ्री हंड्रेड फिफ्टी फर्स्ट रिपोर्ट' में रेखांकित किया कि इस तरह के पुरस्कारों की वापसी 'देश के लिए अपमानजनक' है.
पैनल ने कहा, 'पुरस्कार वापसी से जुड़ी ऐसी अनुचित घटनाएं अन्य पुरस्कार विजेताओं की उपलब्धियों को कमजोर करती हैं और पुरस्कारों की समग्र प्रतिष्ठा पर भी असर डालती हैं.' समिति ने पाया कि प्रत्येक अकादमी द्वारा दिए गए पुरस्कार भारत में एक कलाकार के लिए सर्वोच्च सम्मान बने हुए हैं.
रिपोर्ट में ये कहा समिति ने : समिति ने कहा 'किसी भी संगठन द्वारा दिए जाने वाले पुरस्कार, किसी कलाकार का सम्मान करते हैं और इसमें राजनीति के लिए कोई जगह नहीं होनी चाहिए. समिति ने इसे 'अपमानजनक' बताते हुए सुझाव दिया कि जब भी कोई पुरस्कार दिया जाए तो प्राप्तकर्ता की सहमति ली जानी चाहिए, ताकि वे किसी राजनीतिक कारण से इसे वापस न करें.'
ताकि पुरस्कार का अपमान न हो :समिति ने सुझाव दिया, 'एक ऐसी प्रणाली बनाई जा सकती है जहां प्रस्तावित पुरस्कार विजेता से पुरस्कार की स्वीकृति का हवाला देते हुए एक वचन लिया जाए और पुरस्कार विजेता भविष्य में किसी भी समय पुरस्कार का अपमान नहीं कर सके.'
समिति ने कहा, 'पुरस्कार लौटाए जाने की स्थिति में पुरस्कार विजेता के नाम पर भविष्य में ऐसे पुरस्कार के लिए विचार नहीं किया जाएगा.'