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कर्नाटक: पलार ब्लास्ट केस के दोषी और वीरप्पन के सहयोगी ज्ञानप्रकाश की मौत - सुप्रीम कोर्ट ज्ञानप्रकाश मौत की सजा

कर्नाटक में चर्चित पलार बम विस्फोट मामले के मुख्य दोषियों में शामिल ज्ञानप्रकाश की कैंसर से मौत हो गई. उसे मौत की सजा सुनाई गई थी. Palar blast case convict jnanaprakash dies

Palar blast case convict, Veerappan's associate jnanaprakash dies of cancer
वीरप्पन के सहयोगी ज्ञानप्रकाश की मौत

By ETV Bharat Hindi Team

Published : Dec 16, 2023, 10:40 AM IST

चामराजनगर: कुख्यात चंदन तस्कर वीरप्पन के साथी और पलार बम विस्फोट के दोषी ज्ञानप्रकाश (69) की शुक्रवार को कैंसर से मौत हो गई. ज्ञानप्रकाश हनूर तालुक के संदनपाल्या गांव में रहता था. उसे पलार बम विस्फोट मामले में मुख्य आरोपी के रूप में मौत की सजा सुनाई गई थी. 2014 में सुप्रीम कोर्ट में एक अपील के कारण मौत की सजा को आजीवन कारावास में बदल दिया गया था.

ज्ञानप्रकाश पिछले साल घर आया था : 29 साल से जेल में बंद ज्ञानप्रकाश फेफड़े के कैंसर से पीड़ित था. 20 दिसंबर 2022 को मानवीय आधार पर सुप्रीम कोर्ट से जमानत मिल गई. वह अपने जीवन के अंत में घर में रहा. मृतक ज्ञान प्रकाश की पत्नी और बच्चे हैं. पलार बम ब्लास्ट मामले में शामिल साइमन और बिलवेंद्रन की पहले ही मौत हो चुकी है और वीरप्पन भी 2004 के एनकाउंटर में मारा गया था.

पलार बम विस्फोट मामला:पलार महादेश्वर पहाड़ी से सटा हुआ एक गांव है. वीरप्पन ने इसके आसपास के करीब 50 किमी के इलाके पर कब्जा कर लिया था. 9 अगस्त 1993 को तमिलनाडु के तत्कालीन एसटीएफ प्रमुख गोपालकृष्ण और उनकी टीम ने वीरप्पन के सहयोगियों पर हमले की साजिश रची गई थी. वीरप्पन के साथियों ने बहुत सारे बम जमा कर रखे थे. उन्होंने पलार के पास सोरकईपट्टी के पास एक बारूदी सुरंग बिछा दी. गोपालकृष्ण सहित एक विशेष टीम मुखबिरों के साथ तमिलनाडु सीमा पर पलार गई थी. साइमन द्वारा बारूदी सुरंग विस्फोट किया गया जिसमें 22 लोग मारे गए और कई घायल हो गए. घटना के सिलसिले में वीरप्पन समेत 124 लोगों के खिलाफ मामला दर्ज किया गया था.

9 अप्रैल 1993 को कर्नाटक-तमिलनाडु सीमा पर पलार में एक बारूदी सुरंग विस्फोट में 22 पुलिसकर्मियों की हत्या करने और कई अन्य को घायल करने के आरोप में ज्ञानप्रकाश और साइमन एंटोनियप्पा, मीसेकरा मदैया और बिलवेंद्रन को गिरफ्तार किया गया था. ये चारों आतंकवादी और विघटनकारी गतिविधियों की रोकथाम (टाडा) अधिनियम के तहत 1994 में गिरफ्तार किए गए उन 124 लोगों में से थे.

इनमें से 117 को बरी कर दिया गया, जबकि सात को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई. 2004 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा मौत की सजा सुनाए जाने के बाद मैसूर सेंट्रल जेल में बंद चारों को बेलगाम के हिंडालगा सेंट्रल जेल में स्थानांतरित कर दिया गया था. हालांकि 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने उनकी मौत की सजा को आजीवन कारावास में बदल दिया.

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