नई दिल्ली :पाकिस्तान की पहली राष्ट्रीय सुरक्षा नीति (Pakistan's National Security Policy 2022) का मूल दस्तावेज अभी सार्वजनिक डोमेन में जारी नहीं किया गया है. लेकिन एक चीज जिसने नई दिल्ली को सोचने पर मजबूर किया है, वह ये कि क्या नया दस्तावेज भारत-पाक संबंधों को मजबूत करेगा? या यथास्थिति जारी रहेगी.
जैसा कि नई दिल्ली पिछले कुछ वर्षों से पड़ोस की शत्रुतापूर्ण कार्रवाइयों का प्रतिकार और पलटवार करने के लिए साहसिक रुख अपना रहा है. इस बीच एक बात जो अभी भी महत्वपूर्ण है वह यह है भारत-पाक संबंधों का भविष्य क्या होगा? पाक की पहली राष्ट्रीय सुरक्षा नीति (Pakistan's National Security Policy 2022) दस्तावेज का मूल उद्देश्य उसकी रक्षा और विदेश नीतियों का मार्गदर्शन करना है.
पाकिस्तान के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार मोईद यूसुफ (Pakistan's National Security Advisor Moeed Yusuf) ने कहा कि यह वास्तव में एक ऐतिहासिक उपलब्धि है. एक नागरिक केंद्रित व्यापक राष्ट्रीय सुरक्षा नीति जिसके मूल में आर्थिक सुरक्षा भी है.
पाकिस्तान के एनएसए मोईद युसूफ ने कहा कि सुरक्षा के प्रति नागरिक केंद्रित दृष्टिकोण को सुनिश्चित करने के लिए एनएसपी ने आर्थिक सुरक्षा को सबसे महत्वपूर्ण स्थान दिया है. एक मजबूत अर्थव्यवस्था अतिरिक्त संसाधनों का निर्माण करेगी, जो बदले में सैन्य और मानव सुरक्षा को और मजबूत करने के लिए विवेकपूर्ण तरीके से वितरित किए जाएंगे.
हालांकि पाकिस्तानी पत्रकार इसका दूसरी तरह से विश्लेषण कर रहे हैं. उन्हें लगता है कि इस नीति से देश के मौजूदा हालात में कोई बदलाव नहीं आने वाला है. ईटीवी भारत से बात करते हुए एक प्रमुख पाकिस्तानी पत्रकार नुसरत अमीन कहती हैं कि एनएसपी के संबंध में हालिया विकास से भारत के साथ द्विपक्षीय और राजनयिक संबंधों में कोई महत्वपूर्ण बदलाव या किसी भी तरह के प्रतिमान में बदलाव की संभावना नहीं है.
उन्होंने कहा कि हालांकि कुछ ऐसी संभावनाएं हैं जो एक तरह से अप्रत्यक्ष रूप से भारत-पाक संबंधों को आशावादी तरीके से प्रभावित कर सकती है लेकिन यह भविष्यवाणी करना मूर्खता होगी कि यह एनएसपी भारत और पाकिस्तान के बीच द्विपक्षीय संबंधों को सुगम बनाएगा.
नुसरत अमीन आगे कहती हैं कि यह केवल सेना ही नहीं है जो राष्ट्र को चलाती है बल्कि विभिन्न प्रकार की परतें हैं. चाहे वह युद्ध के दिग्गज हों जिन्होंने 1965, 1971 और कारगिल युद्ध लड़ा हो, पूर्व राजनयिक, व्यापारिक समुदाय और निश्चित रूप से राजनीतिक समुदाय, वर्तमान सैन्य प्रतिष्ठान और धार्मिक समुदाय, वे सभी एक साथ राष्ट्र के आंतरिक मामलों और बाहरी नीतियों को प्रभावित करते हैं.
यह पूछे जाने पर कि क्या यह दस्तावेज या ऐसा मंच भारत-पाक संबंधों को मजबूत कर सकता है. पाकिस्तान के एक अन्य पत्रकार ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि एक युद्ध के दिग्गज या पूर्व राजनयिक के बारे में कल्पना करें, जिन्होंने नई दिल्ली से तमाम जंग हारने के बाद पाकिस्तान के पतन को देखा हो. उसके बदले ये लोग नई दिल्ली से मैत्रीपूर्ण संबंध कैसे रखना चाहेंगे?