हैदराबाद : पाकिस्तान की आर्थिक बदहाली बढ़ती जा रही है. हालात ऐसे हो गए हैं कि देश एकजुट रह पाएगा या नहीं, इसको लेकर भी चर्चाएं होने लगी हैं. इसकी वजह से पाकिस्तान में वैसे कश्मीरी अलगाववादियों को भी शरण मिलनी मुश्किल हो गई है, जो उनके टुकड़ों पर फलते-फूलते रहे हैं. ऐसे अलगाववादियों का काम हमेशा से भारत के खिलाफ जहर उगलना रहा है.
कश्मीर में अलगाववादियों का साथ देते-देते पाकिस्तान आज खुद उसका शिकार होता हुआ नजर आ रहा है. दरअसल, पाकिस्तान 1971 का सदमा आज तक नहीं भूल पाया है. वह इस उम्मीद में बैठा है कि वह एक दिन भारत से बदला लेगा. इसी मंशा से उसने कश्मीर में एंटी इंडिया गतिविधियों को शह देने की शुरुआत की. 1971 में पाकिस्तान के दो टुकड़े हो गए थे और बांग्लादेश का जन्म हुआ. भारत ने इसमें बड़ी भूमिका निभाई थी. बौखलाए पाकिस्तानी हुक्मरानों ने कश्मीर के अलावा खालिस्तानियों को भी हवा देनी शुरू कर दी. खालिस्तानी सिखों के लिए अलग देश की मांग कर रहे हैं. लेकिन पाकिस्तान को आज तक कहीं पर भी सफलता नहीं मिली.
पाकिस्तान में कश्मीर फैक्टर एक 'रणनीति' है. वहां के शासकों की, कश्मीरी अलगाववादियों को समर्थन देना और अलग कश्मीर का राग अलापना, दुकान इसी पर चलती रहती है. वहां का हरेक नेता इसी रणनीति पर काम करता है. किसी ने थोड़ा सा भी अलग रुख दिखाया, तो उस व्यक्ति को वहां के पूरे आवाम का गुस्सा झेलना पड़ता है. एक बार फिर से पाकिस्तानी नेता और हुक्मरान यही ट्रिक्स अपना रहे हैं. आर्थिक बदहाली में चाहे उनकी हालत जो भी हो, वे कश्मीर राग को फिर से छेड़ चुके हैं.
23 फरवरी को संयुक्त राष्ट्र आम सभा में पाकिस्तानी प्रतिनिधियों ने अपनी वित्तीय स्थितियों को दरकिनार कर कश्मीर मुद्दे पर आगे बढ़ने की बात कही है. पाकिस्तान यह भूल चुका है कि उसकी इसी रणनीति की वजह से आर्थिक बदहाली हो रही है. आंतरिक और बाह्य विरोधात्मक रवैए की वजह से उसके आर्थिक संसाधन कम होते चले गए. हाल ही में आई बाढ़ की वजह से स्थिति को और अधिक गंभीर हो गई. अपनी आर्थिक हालात से बेपरवाह पाकिस्तान लगातार रक्षा सौदों पर बेइंतहा खर्च कर रहा है. दूसरी ओर फ्रंटियर साइड में उसे अलगाववाद को भी कंट्रोल करना होता है. अफगानिस्तान से सटती हुई सीमा उसके लिए हमेशा से परेशानी का सबब रहा है. पाकिस्तान का कोई भी नेता हो, वह कश्मीरी अलगाववादियों पर हमेशा निर्भर रहा है. कोई भी नेता उसके खिलाफ नहीं बोल सकता है. यही स्थिति अब भी है. लेकिन अब जबकि उसके अस्तित्व पर बात बन आई है, कश्मीर फैक्टर अब भी 'ग्लू' का काम कर रहा है.
यूनाइटेड जिहाद काउंसल, कश्मीर में सक्रिय आतंकवादी गुटों का शीर्ष समूह, मुख्य रूप से पाकिस्तान से अपने को ऑपरेट करता है. काउंसल का नेता सैयद सलाउद्दीन पिछले 20 सालों से वहां रह रहा है. इस काउंसल का उद्देश्य कश्मीर में आतंकियों की फंडिंग करनी रही है. बाद में आतंकियों के बीच भी कई गुट हो गए. जेकेएलएफ, हिजबुल, तहरीक अल मुजाहिदीन वगैरह. अब सब अपना-अपना कट चाहते हैं. जाहिर है, पाकिस्तान को इनको पैसे देने की हमेशा चिंता रहती है, लेकिन अपने नागरिकों की सुविधाएं देने की नहीं.
अब जबकि पाकिस्तान में आर्थिक चिंता बढ़ती जा रही है, पूरे देश में महंगाई चरम पर है, ऐसे में पाकिस्तान किस तरह से अलगाववादियों को आर्थिक समर्थन देगा, यह भी सोचने वाली बात होगी. कश्मीरी उग्रवादियों के प्रतिनिधि पाकिस्तान में बैठे हैं. वह भी इसको महसूस कर रहा है कि वह किस तरह से इन आतंकियों को मैनेज करे. बढ़ती महंगाई की वजह से पाकिस्तान में अमीर और गरीब के बीच खाई और अधिक चौड़ी हो गई है. यह उनके लिए भी उतना ही सच है जो कश्मीरी अलगाववादी नेता हैं.
एक आम पाकिस्तानियों के लिए हालात का सामना करना मुश्किल होता जा रहा है. रोज उपयोग होने वाली चीजों के दाम 30 फीसदी तक बढ़ चुके हैं. किचन खर्च कई गुना बढ़ चुका है. एक तिहाई लोग पहले से गरीबी रेखा से नीचे रह रहे हैं. उनमें से कइयों के सामने भीख मांगने तक की नौबत आ गई है. जिन्हें सैलरी मिलती है, वे लंबे समय से उसी पर अटके हुए हैं, जबकि उपभोक्ता वस्तुओं की कीमतें बढ़ गईं हैं. यह मुद्दा आईएमएफ के सामने भी उठा, जब पाकिस्तान बेल-आउट पैकेज के लिए बात कर रहा था.
आईएमएफ की निदेशक क्रिस्टलीना जॉर्गिवा ने पाकिस्तान के सामने कई कड़ी शर्तें रखी हैं. उन्होंने टैक्स बढ़ाने को कहा है. अमीर लोगों की आय पर अधिक टैक्स लगाने को कहा गया है. और अगर पाकिस्तान के हुक्मरान ऐसा करते हैं, तो उन्हें शोषण करने वाले नेताओं के रूप में जाना जाएगा. क्रिस्टलीना ने बढ़ती कीमतों पर चिंता भी जताई है, क्योंकि उसकी वजह से गरीब लोगों को और अधिक परेशानी हो रही है. पिछले दिनों रावलपिंडी में कश्मीरी उग्रवादी की हुई रहस्यमयी हत्या ने यह तो संकेत दे दिया है कि पाकिस्तान और अलगावावदियों के बीच सबकुछ ठीक नहीं है. सैयद सलाउद्दीन उस उग्रवादी के जनाजे में दिखा था. सलाउद्दीन चिन्हित आतंकी है. सार्वजनिक तौर पर उसकी उपस्थिति पाकिस्तान के लिए और भी मुश्किलें खड़ी कर सकती है, जो एफएटीएफ की लिस्ट से बहुत मुश्किल से बाहर आया है.
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