नई दिल्ली :दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा दिल्ली सरकार को कोरोना वायरस से सम्बंधित व्यवस्थाओं पर जमकर कोसा है. दिल्ली सरकार द्वारा पूरे आंकड़े पेश नहीं करने पर भी अदालत ने सरकार को कटघरे में खड़ा किया. अंततः दिल्ली सरकार को माफी मांगनी पड़ी और उन्हें यह कहना पड़ा कि हम एक घंटे के भीतर अदालत को तमाम आंकड़े मुहैया करा रहे हैं.
जाहिर सी बात है कोरोना को लेकर त्राहिमाम करती दिल्ली और संसाधनों की कमी से जूझ रहे दिल्लीवासीयों की हालत बद से बदतर होती जा रही है. इसके पीछे मात्र प्रशासनिक लापरवाही है. अगर समय से इस महामारी की तैयारी कर ली जाती तो शायद देश की राजधानी दिल्ली में आज यह बदतर हालात उत्पन्न नहीं होते. दिल्ली सरकार हरकत में तो तब आई जब केंद्र ने हस्तक्षेप किया.
वहीं केंद्र सरकार ने भी शुरुआती दौर में दिल्ली को ने तो कुछ ज्यादा सहायता उपलब्ध कराई और न ही हस्तक्षेप किया. अंततः इसका भुगतान जनता को करना पड़ रहा है. न्यायपालिका के हस्तक्षेप के बाद दिल्ली सरकार विदेश से ऑक्सीजन की सप्लाई मंगाने को तैयार हो चुकी है और दूसरे देशों से भी मदद मांग रही है.
लेकिन सवाल उठता है यह है कि 2020 में ही केंद्र सरकार द्वारा समय-समय पर दिल्ली सरकार को चेतावनी दे दी गई थी और आठ ऑक्सीजन प्लांट बनाए जाने के लिए पीएम केयर्स फंड से फंड आवंटित कर दिए गए थे लेकिन इनमें से केवल एक ऑक्सीजन प्लांट ही तैयार हो पाया. वह बुराड़ी हॉस्पिटल के कौशिक एंक्लेव में 17 मार्च को बनकर तैयार हुआ.
इसके अलावा चार अन्य प्लांट जिनमें दीनदयाल उपाध्याय अस्पताल, लोकनायक अस्पताल, बाबासाहेब आंबेडकर अस्पताल रोहिणी, दीप चंद बंधु हॉस्पिटल अशोक विहार इन चार अस्पतालों में अब केंद्र और न्यायपालिका के हस्तक्षेप के बाद उम्मीद की जा रही है कि ये ऑक्सीजन प्लांट 30 अप्रैल तक तैयार हो जाएंगे.
यही नहीं सत्यवती राजा हरिश्चंद्र अस्पताल जो नरेला में स्थित है उसका क्लीयरेंस सर्टिफिकेट अभी तक राज्य सरकार द्वारा नहीं दी गई है. कुल मिलाकर बुराड़ी में मौजूद हॉस्पिटल को ही राज्य ने समय पर क्लीयरेंस दी है. यदि यह 8 ऑक्सीजन प्लांट राज्य सरकार समय पर तैयार कर लेती या इन्हें जमीन आवंटित कर देती या फिर क्लीयरेंस सर्टिफिकेट दे देती तो शायद दिल्ली में यह हाल नहीं होता.