दिल्ली

delhi

ETV Bharat / bharat

सूचना आयुक्तों के 40 से ज्यादा पद खाली, दो राज्यों में मुख्य सूचना आयुक्त नहीं: रिपोर्ट - Information Commissioners post vacant

एक रिपोर्ट में आज मंगलवार को यह जानकारी सामने आई है कि देश के विभिन्न राज्यों में सूचना आयुक्तों (information commissioner) के 42 पद खाली हैं. इन 42 रिक्त पदों में दो पद मुख्य सूचना आयुक्त (Chief Information Commissioner) (गुजरात व झारखंड में) के हैं और 40 सूचना आयुक्तों के हैं.

सूचना का अधिकार
सूचना का अधिकार

By

Published : Oct 11, 2022, 7:05 PM IST

नई दिल्ली: देश के विभिन्न राज्यों में सूचना आयुक्तों (information commissioner) के स्वीकृत पदों की संख्या 165 है लेकिन इनमें से 42 पद खाली हैं, जबकि दो राज्य बिना मुख्य सूचना आयुक्त (Chief Information Commissioner) (सीआईसी) के काम कर रहे हैं. इस बात की जानकारी मंगलवार को एक आधिकारिक रिपोर्ट में दी गई.

रिपोर्ट में कहा गया कि सार्वजनिक प्राधिकरणों द्वारा सक्रिय रूप से जानकारी उपलब्ध कराने में गैर-अनुपालन, नागरिकों के प्रति सार्वजनिक सूचना अधिकारियों (पीआईओ) (public information officer) के विरोधी दृष्टिकोण और सूचना को छिपाने के लिए सूचना का अधिकार (आरटीआई) (Right to information) अधिनियम के प्रावधानों की गलत व्याख्या, सार्वजनिक हित को लेकर स्पष्टता का अभाव और निजता का अधिकार पारदर्शिता कानून के प्रभावी कार्यान्वयन के रास्ते में खड़े हैं.

गैर सरकारी संगठन ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल इंडिया (टीआईआई) (Transparency International India) की छठी 'स्टेट ट्रांसपेरेंसी रिपोर्ट 2022' में कहा गया कि 'मुख्य सूचना आयुक्तों एवं सूचना आयुक्तों के स्वीकृत 165 पदों में से 42 पद रिक्त हैं.' रिपोर्ट में कहा गया कि इन 42 रिक्त पदों में दो पद मुख्य सूचना आयुक्त (गुजरात व झारखंड में) के हैं और 40 सूचना आयुक्तों के हैं.

इसके मुताबिक पश्चिम बंगाल, पंजाब और महाराष्ट्र में सबसे ज्यादा चार-चार पद रिक्त हैं जबकि उत्तराखंड, केरल, हरियाणा और केंद्र में तीन-तीन पद खाली हैं. रिपोर्ट में कहा गया है कि सूचना आयुक्तों के पांच प्रतिशत से भी कम पदों पर महिलाओं का प्रतिनिधित्व है. इसमें कहा गया कि 2005-06 से 2020-21 तक, सूचना आयोगों द्वारा दर्ज किए गए आंकड़ों के अनुसार, राज्यों और केंद्र को 4,20,75,403 आरटीआई आवेदन प्राप्त हुए थे.

रिपोर्ट में कहा गया है कि आरटीआई अधिनियम, 2005 एक पथप्रदर्शक कानून है, जो देश को गोपनीयता की औपनिवेशिक विरासत से अलग करने में सक्षम बनाता है. इसमें कहा गया कि 16-17 वर्षों के बाद, अधिकतर सरकारी पदाधिकारियों और सार्वजनिक प्राधिकरणों के बीच मानसिकता और संस्कृति अभी भी उसी दौर में बरकरार है जहां सरकार के कामकाज को गुप्त रखे जाने की व्यवस्था थी. रिपोर्ट में कहा गया कि 16-17 वर्षों के बाद भी, आरटीआई आवेदनों को सभी राजनीतिक दलों के शासन में बोझ के रूप में माना जाता है.

पढ़ें:कांग्रेस ने मुझे अपशब्द कहने का ठेका किसी और को दे दिया है : मोदी

टीआईआई की अध्यक्ष मधु भल्ला ने कहा कि आरटीआई अधिनियम को लागू हुए बुधवार (12 अक्टूबर) को 18 वर्ष हो जाएंगे और 2005 में सरकार के कामकाज में पारदर्शिता और जवाबदेही के युग को बढ़ावा देने के लिए कानून के अधिनियमित होने के बावजूद, केवल आधी लड़ाई जीती गई है क्योंकि इसका कार्यान्वयन अब भी कई चुनौतियों से भरा है.

टीआईआई के निदेशक राम नाथ झा ने कहा कि सूचना आयोग सेवानिवृत्त नौकरशाहों के लिए पार्किंग स्थल बन रहे हैं और आरटीआई आवेदनों को खारिज करते समय पीआईओ या प्रथम अपीलीय प्राधिकारी का लापरवाह रवैया कानून की 17 साल की यात्रा में कुछ प्रमुख चुनौतियां हैं. रिपोर्ट में कहा गया कि बिहार, गोवा, दिल्ली, कर्नाटक, मध्य प्रदेश (कुछ विभागों तक सीमित), महाराष्ट्र, मेघालय, मिजोरम, ओडिशा, राजस्थान और तमिलनाडु सहित केवल 11 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में आरटीआई आवेदन दाखिल करने के लिए ऑनलाइन पोर्टल हैं.

(पीटीआई-भाषा)

ABOUT THE AUTHOR

...view details