नई दिल्ली: रामनाथ कोविंद 25 जुलाई को भारत के 14वें राष्ट्रपति के रूप में अपना कार्यकाल पूरा कर रहे हैं. उन्होंने छह दया याचिकाएं खारिज की हैं, एक भी लंबित नहीं छोड़ी. वह भी प्रणब मुखर्जी का अनुसरण कर रहे हैं जिन्होंने अपने कार्यकाल के दौरान सभी 34 दया याचिकाओं का निपटारा किया था. आम तौर पर भारत के सभी पूर्व राष्ट्रपति के पास कम से कम कुछ लंबित दया याचिकाओं को पारित करने का रिकॉर्ड होता है. लेकिन राष्ट्रपति कोविंद अपने उत्तराधिकारी के लिए कोई लंबित याचिका नहीं छोड़ रहे हैं.
राष्ट्रपति सचिवालय के अनुसार, कोविंद ने 2017 से अब तक अपने कार्यकाल के दौरान आई सभी छह याचिकाओं का निपटारा किया. सभी दया याचिकाओं को खारिज करते हुए कोविंद ने 2018 से 2020 तक सभी मामलों का निपटारा किया. उन्होंने पहली दया याचिका अप्रैल 2018 में जगत राय की खारिज की थी. राष्ट्रपति सचिवालय के अनुसार, राष्ट्रपति कोविंद द्वारा खारिज की गई अंतिम दया याचिका संजय की थी. एमएचए से सिफारिश मिलने के तीन महीने के भीतर, कोविंद ने जुलाई 2020 में संजय की दया याचिका को खारिज कर दिया. राष्ट्रपति सचिवालय के अनुसार, कोविंद के उत्तराधिकारी के लिए न तो कोई नामांतरण हुआ और न ही कोई लंबित मामला बचा.
हालांकि, कोविंद के उत्तराधिकारी को कार्यभार संभालने के तुरंत बाद चार दया याचिका मिलने की संभावना है क्योंकि गृह मंत्रालय ने अभी तक पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री बेअंत सिंह के हत्यारे बलवंत सिंह राजोआना सहित ऐसी याचिकाओं पर राष्ट्रपति को कोई सिफारिश नहीं की है. गौरतलब है कि एक संगठन की ओर से दायर याचिका जिसमें राजोआना की मौत की सजा को उम्रकैद में बदलने की अपील की गई थी. सुप्रीम कोर्ट ने मई में केंद्र सरकार से दो महीने के भीतर उस पर फैसला लेने को कहा था.
दया याचिका की प्रक्रिया: एक बार जब सर्वोच्च न्यायालय किसी दोषी को मौत की सजा सुनाता है, तो वह गृह मंत्रालय, राष्ट्रपति कार्यालय या राज्य के राज्यपाल को दया याचिका प्रस्तुत कर सकता है. राष्ट्रपति भारत के संविधान के अनुच्छेद 72 के तहत मौत की सजा को माफ कर सकते हैं. कम कर सकते हैं. राष्ट्रपति, हालांकि, कार्यपालिका-प्रधानमंत्री और उनके मंत्रिमंडल की सलाह पर कार्य करते हैं. गृह मंत्रालय के एक अधिकारी ने कहा, 'राष्ट्रपति की सहमति के लिए राष्ट्रपति कार्यालय भेजने से पहले ऐसी सभी दया याचिकाओं पर अंतिम फैसला केंद्रीय मंत्रिमंडल करता है.'
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