नई दिल्ली :शीर्ष अदालत ने 'औपनिवेशिक काल' के राजद्रोह संबंधी दंडात्मक कानून के 'भारी दुरुपयोग' पर गुरुवार को चिंता व्यक्त की और केंद्र से सवाल किया कि स्वतंत्रता संग्राम को दबाने के वास्ते महात्मा गांधी जैसे लोगों को 'चुप' कराने के लिए ब्रिटिश शासनकाल में इस्तेमाल किए गए प्रावधान को समाप्त क्यों नहीं किया जा रहा है?
मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना, न्यायमूर्ति एएस बोपन्ना और न्यायमूर्ति ऋषिकेश रॉय की पीठ ने भारतीय दंड संहिता की धारा 124 ए (राजद्रोह) की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली एक पूर्व मेजर जनरल और एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया की याचिकाओं पर गौर करने पर सहमति जताते हुए कहा कि उसकी मुख्य चिंता 'कानून का दुरुपयोग' है. साथ ही पीठ ने मामले में केंद्र को नोटिस जारी किया है.
सर्वोच्च अदालत के इस रुख पर कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने कहा, 'हम सुप्रीम कोर्ट की इस टिप्पणी का स्वागत करते हैं.'
तृणमूल कांग्रेस की सांसद महुआ मोइत्रा और स्वराज इंडिया के अध्यक्ष योगेंद्र यादव समेत कुछ नेताओं ने इस ओर इशारा किया कि किसानों के प्रदर्शन के दौरान हरियाणा विधानसभा के उपाध्यक्ष की कार पर हमले के सिलसिले में राज्य में करीब 100 किसानों पर राजद्रोह के आरोप लगाए गए हैं.
मोइत्रा ने कहा कि अब उन्हें आखिरकार उम्मीद है कि इस पुरातनकालीन कानून का भारत सरकार द्वारा दुरुपयोग समाप्त होगा. यादव ने कहा, कल ही सिरसा में एक मंत्री की गाड़ी के शीशे तोड़ने पर किसानों के खिलाफ राजद्रोह का मामला दर्ज किया गया था.
किसानों पर राजद्रोह के आरोप लोकतांत्रिक परंपराओं का अपमान
पूर्व कानून मंत्री अश्विनी कुमार ने सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी पर सीधी प्रतिक्रिया नहीं दी, लेकिन ट्वीट किया कि हरियाणा के किसानों के खिलाफ राजद्रोह के आरोप भारत की लोकतांत्रिक परंपराओं का अपमान हैं. उन्होंने कहा, सरकार को फौरन और बिना शर्त आरोप वापस लेने चाहिए.