नई दिल्ली : भारत छोड़ो आंदोलन को आजादी के दिनों का एक बड़ा जन- आंदोलन माना जाता है, जिसमें लाखों आम लोगों ने अपने आप हिस्सा लिया. इस आंदोलन ने देश के आंदोलनकारियों के साथ-साथ युवाओं, कृषकों, महिलाओं व मजदूर वर्ग को भी बड़ी संख्या में अपनी ओर आकर्षित किया. इससे यह आन्दोलन व्यापक होने लगा. वहीं कांग्रेस के द्वारा भारत छोड़ो प्रस्ताव को पारित होने की खबर मिलते ही ब्रिटिश हुकूमत ने अपनी रणनीति बनानी शुरू कर दी और सरकार ने 'ऑपरेशन जीरो आवर' चलाने का फैसला किया. इसका उद्देश्य कांग्रेस के साथ साथ अन्य आंदोलनकारी नेताओं को अरेस्ट करना था.
'ऑपरेशन जीरो आवर'
भारत छोड़ो आंदोलन की शुरुआत 8 अगस्त 1942 की रात में कांग्रेस कार्यसमिति में अंग्रेजों के खिलाफ भारत छोड़ो आंदोलन का प्रस्ताव पारित होने के बाद शुरू हो गया था. 9 अगस्त की सुबह सबेरे मुंबई और पूरे देश में कई स्थानों पर कांग्रेस के नेताओं की गिरफ्तारियां शुरू हो गयीं और अंग्रेजी हुकूमत ने इन लोगों पर शिकंजा कसने की कोशिश की. इसीलिए 'ऑपरेशन जीरो आवर' शुरू किया गया. अंग्रेजी हुकूमत ने 'ऑपरेशन जीरो आवर' के तहत कांग्रेस के सभी बड़ी नेताओं को गिरफ्तार कर लिया, जिसमें महात्मा गांधी भी शामिल थे. इसके अलावा कुछ ऐसे भी नेता थे जो भूमिगत हो गए. ऐसे नेताओं में जयप्रकाश नारायण जैसे समाजवादी नेता शामिल थे, जो भूमिगत होकर अपने गतिविधियों में एक्टिव रहे.
अंग्रेजों ने 'ऑपरेशन जीरो आवर' के तहत महात्मा गांधी, कस्तूरबा गांधी, सरोजिनी नायडू, भूला भाई देसाई जैसे कई लोगों को गिरफ्तार कर पुणे के आगा खान पैलेस में नजर बंद कर दिया. इसके साथ ही साथ पंडित गोविंद बल्लभ पंत को गिरफ्तार करके अहमदनगर के किले में रखा गया. वहीं जवाहरलाल नेहरू को अल्मोड़ा जेल में भेज दिया गया, जबकि राजेंद्र प्रसाद को बांकीपुर तथा मुस्लिम नेता मौलाना अबुल कलाम आजाद को बांकुरा जेल भेजा गया.